दुनिया की 26 फीसदी आबादी पीने के सुरक्षित पानी से वंचित, 46 फीसदी के पास साफ-सफाई के लिए नहीं है सुविधाः यूएन रिपोर्ट
रिपोर्ट में बताया गया है कि पिछले 40 वर्षों में विश्व स्तर पर लगभग एक फीसदी सालाना की दर से पानी का उपयोग बढ़ रहा है। जनसंख्या वृद्धि, सामाजिक-आर्थिक विकास और पानी की खपत के तरीके में परिवर्तन के बावजूद 2050 तक इसी दर से इसके बढ़ने की उम्मीद है। कॉनर के मुताबिक, मांग में वास्तविक वृद्धि विकासशील देशों और उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में हो रही है जहां औद्योगिक विकास और विशेष रूप से शहरों की जनसंख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है। शहरी क्षेत्र वास्तव में मांग में बड़ी वृद्धि कर रहे हैं।
दुनिया की 26 फीसदी आबादी आज भी पीने के साफ और सुरक्षित पानी से वंचित है, जबकि 46 फीसदी आबादी के पास साफ-सफाई के लिए पानी की सुविधा नहीं है। पानी पर संयुक्त राष्ट्र की ताजा रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है। आज विश्व जल दिवस है। लोगों को पानी का महत्व बताने और इसका संरक्षण करने के लिए हर साल इसी तारीख को विश्व जल दिवस मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा विश्व जल दिवस पर सालाना सम्मेलन आयोजित होता है जो इस बार 22 से 24 मार्च तक न्यूयॉर्क में हो रहा है। इसका मकसद लोगों में जल संरक्षण को लेकर जागरूकता फैलाना है। पानी को लेकर संयुक्त राष्ट्र 45 वर्ष बाद बड़ा सम्मेलन आयोजित कर रहा है।
विश्व जल दिवस की पूर्व संध्या पर जारी संयुक्त राष्ट्र विश्व जल विकास रिपोर्ट 2023 में 2030 तक सभी के लिए पीने का साफ पानी और साफ-सफाई के लिए पानी की उपलब्धता तक पहुंच सुनिश्चित करने का लक्ष्य रखा गया है। रिपोर्ट में पानी की अनुपलब्धता के विशाल अंतर की स्पष्ट तस्वीर पेश की गई है। रिपोर्ट के प्रधान संपादक रिचर्ड कॉनर ने कहा कि लक्ष्यों को पूरा करने की अनुमानित लागत 600 अरब अमेरिकी डॉलर से 1 खरब डॉलर के बीच है। समान रूप से महत्वपूर्ण निवेशकों, फाइनेंसरों, सरकारों और जलवायु परिवर्तन समुदायों के साथ संयुक्त राष्ट्र साझेदारी कर रहा है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि पर्यावरण को बनाए रखने के तरीकों और उन 2 अरब लोगों को पीने योग्य पानी और 3.6 अरब लोगों को स्वच्छता के लिए पानी उपलब्ध कराने पर निवेश किया जाए जिन्हें इसकी जरूरत है।
रिपोर्ट में बताया गया है कि पिछले 40 वर्षों में विश्व स्तर पर लगभग एक फीसदी सालाना की दर से पानी का उपयोग बढ़ रहा है। जनसंख्या वृद्धि, सामाजिक-आर्थिक विकास और पानी की खपत के तरीके में परिवर्तन के बावजूद 2050 तक इसी दर से इसके बढ़ने की उम्मीद है। कॉनर के मुताबिक, मांग में वास्तविक वृद्धि विकासशील देशों और उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में हो रही है जहां औद्योगिक विकास और विशेष रूप से शहरों की जनसंख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है। शहरी क्षेत्र वास्तव में मांग में बड़ी वृद्धि कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि वैश्विक स्तर पर 70 फीसदी पानी का उपयोग कृषि क्षेत्र में हो रहा है। फसलों की सिंचाई के लिए ज्यादा कारगर तरीके अपनाने की जरूरत है ताकि पानी की बचत हो सके। कुछ देशों में अब ड्रिप सिंचाई का इस्तेमाल होता है जिससे पानी की बचत होती है। इससे शहरों को पानी उपलब्ध हो सकेगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से बारिश के पानी की कमी उन क्षेत्रों में बढ़ेगी जहां यह वर्तमान में प्रचुर मात्रा में है जैसे कि मध्य अफ्रीका, पूर्वी एशिया और दक्षिण अमेरिका के कुछ हिस्सों में। जबकि पश्चिम एशिया और अफ्रीका के सहारा क्षेत्रों में स्थिति और भी बदतर हो जाएगी जहां पहले से पानी की कमी है।
यूनेस्को, यूएन एजुकेशनल, साइंटिफिक और सांस्कृतिक संगठन द्वारा जारी इस रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक आबादी की औसतन 10 फीसदी आबादी ज्यादा या गंभीर जल संकट वाले देशों में रहती है। दुनिया के करीब 3.5 अरब लोग साल में कम से कम एक महीने पानी के संकट की स्थिति में रहते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2000 के बाद से उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में बाढ़ की समस्या चार गुना बढ़ गई है, जबकि उत्तरी मध्य अक्षांशों में बाढ़ 2.5 गुना बढ़ गई है। सूखे के रुझान को प्रमाणित करना अधिक कठिन है। हालांकि जलवायु परिवर्तन के प्रत्यक्ष परिणाम के रूप में अधिकांश क्षेत्रों में सूखे की तीव्रता या आवृत्ति और गर्मी में तेज वृद्धि की उम्मीद की जा सकती है।
कॉनर ने कहा कि जहां तक जल प्रदूषण की बात है तो प्रदूषण का सबसे बड़ा स्रोत गंदे पानी को बिना साफ किए प्राकृतिक जल स्रोतों में छोड़ा जाना है। वैश्विक स्तर पर 80 फीसदी गंदा पानी बिना साफ किए ही नदियों, तालाबों, समुद्रों जैसे प्राकृतिक स्रोतों में छोड़ दिया जाता है। कई विकासशील देशो में तो 99 फीसदी तक गंदा पानी इन जल स्रोतों में बहा दिया जाता है।