भारत में बंपर खरीफ उत्पादन और निर्यात पर रोक हटने से 2025 में ग्लोबल मार्केट में चावल के दाम कम रहने के आसार
एसएंडपी ग्लोबल कमोडिटी इनसाइट्स के विश्लेषकों का अनुमान है कि ग्लोबल बाजार में भारत की वापसी से पाकिस्तान जैसे अन्य निर्यातकों का चावल निर्यात साल-दर-साल 12% घटने का अनुमान है। भारत से सप्लाई के कारण गैर-बासमती और बासमती किस्मों की कीमतों पर पहले ही दबाव देखा जा रहा है।
सफेद चावल (व्हाइट राइस) पर भारत के निर्यात प्रतिबंध हटाने, पारबॉयल्ड चावल पर निर्यात शुल्क समाप्त करने और बंपर खरीफ फसल के कारण अगले वर्ष वैश्विक चावल बाजार में कीमतें नरम रहने की उम्मीद है। एसएंडपी ग्लोबल ने अपनी नवीनतम कमोडिटी रिपोर्ट में यह जानकारी दी है। रिपोर्ट के अनुसार 2025 में चावल की आयात मांग भी कई देशों में कम रहेगी, इसका दबाव भी दाम पर दिखेगा।
एक भारतीय निर्यातक का हवाला देते हुए रिपोर्ट में कहा गया है, "भारतीय बाजार 2025 की पहली तिमाही तक मंदा रहेगा। जनवरी/फरवरी 2025 तक सफेद चावल का निर्यात मुख्य रूप से पाकिस्तान से होगा। उसके बाद इस बाजार पर भारत का नियंत्रण होगा। पारबॉयल्ड चावल के मामले में भी बंपर सप्लाई के बीच भारत का निर्यात प्रदर्शन अच्छा रहेगा।
एसएंडपी ग्लोबल कमोडिटी इनसाइट्स के विश्लेषकों का अनुमान है कि ग्लोबल बाजार में भारत की वापसी से पाकिस्तान जैसे अन्य निर्यातकों का चावल निर्यात साल-दर-साल 12% घटने का अनुमान है। भारत से सप्लाई के कारण गैर-बासमती और बासमती किस्मों की कीमतों पर पहले ही दबाव देखा जा रहा है।
हालांकि सिंगापुर के एक व्यापारी के हवाले से रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में अगले साल स्थानीय मांग बढ़ने की उम्मीद है, जिससे बाजार स्थिर हो सकता है। यह स्थिरता नई फसल की बंपर आपूर्ति के बावजूद संभव है, क्योंकि किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) बढ़ने से धान की कीमतें मजबूत रहने की संभावना है।
अन्य बाजारों में देखें तो म्यांमार का सफेद चावल निर्यात 2025 में कमजोर फसल के कारण गिरने की संभावना है। थाईलैंड के चावल की निर्यात कीमतें भी मार्च और अप्रैल में सफेद चावल की नई फसल आने और कमजोर मांग के कारण घटने के आसार हैं। वियतनाम से चावल निर्यात बाजार में मार्च तक सीमित आपूर्ति रहेगी। वहां अप्रैल में नई फसल आएगी। सफेद चावल की कीमतें फरवरी 2025 से आपूर्ति में वृद्धि और भारत तथा थाईलैंड के बीच प्रतिस्पर्धा के कारण भी नरम हो सकती हैं।
अमेरिका के नव-निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के जनवरी में पदभार ग्रहण करने के साथ, अमेरिकी चावल बाजार में भी बदलाव के आसार हैं। ट्रंप ने चीन से आयात पर 10% टैरिफ और मैक्सिको व कनाडा से उत्पादों पर 25% टैरिफ शामिल लगाने की बात कही है। इसका असर अमेरिकी चावल की कीमतों पर होगा। हालांकि, भारतीय से निर्यात में वृद्धि से वहां भी कीमतें स्थिर हो सकती हैं या कम हो सकती हैं।
काउंसिल ऑफ मिल्स ऑफ साउथ अमेरिका को 2025 में बंपर फसल की उम्मीद है। इसका उत्पादन अनुमान 166.6 लाख टन का है, जो 2024 से 17.5% अधिक है। रकबा 23.9 लाख हेक्टेयर तक बढ़ने की उम्मीद है। इसके साथ 6.97 मीट्रिक टन/हेक्टेयर की बेहतर उत्पादकता का भी समर्थन मिलेगा।
चावल की मांग का ट्रेंड
एसएंडपी कमोडिटी इनसाइट्स के विश्लेषकों का अनुमान है कि अल नीनो के कारण इंडोनेशिया और फिलीपींस में चावल आयात गिर सकता है। वहां सरकार के समर्थन से स्थानीय उत्पादन भी बढ़ने के आसार हैं। भारत की बंपर फसल और कम कीमत पर अधिक आपूर्ति दक्षिण अफ्रीका और थाईलैंड में मांग को प्रभावित कर सकती है।
विश्लेषकों का अनुमान है कि इंडोनेशिया का चावल आयात सालाना आधार पर 45% तक गिर सकता है। वहां 2023-24 के अंत तक स्टॉक-टू-यूज अनुपात 14% तक पहुंच गया। 2025-26 तक आयात को 20 लाख मीट्रिक टन से कम करने के लिए मंत्रालय घरेलू उत्पादन को बढ़ाने की योजना बना रहा है।
इसी तरह, कमोडिटी इनसाइट्स के विश्लेषकों का अनुमान है कि फिलीपींस का आयात 4.7% तक गिरेगा। वहां भी सरकारी समर्थन से स्थानीय उत्पादन को बढ़ावा मिलने और आयात पर निर्भरता कम होने की उम्मीद है।
सबसे बड़े आयात क्षेत्रों में से एक, पश्चिम अफ्रीका के व्यापारियों ने कहा कि बाजार में अधिक आपूर्ति के कीमतों में मंदी का रुख रहेगा। कीमतें कम से कम 2025 के मध्य तक कम रहने की उम्मीद है। यहां भारत की बंपर फसल के कारण ओवर सप्लाई की स्थिति बढ़ेगी। कीमतों में कमी से दक्षिण अफ्रीका में मांग बढ़ सकती है।