दक्षिण अमेरिका में ला नीना जैसे हालात का खतरा, कुछ फसलें प्रभावित होने की आशंका

हालांकि ला नीना अब तक विकसित नहीं हुआ है, जबकि विभिन्न पूर्वानुमान मॉडलों ने इसे आसन्न बताया था। फिर भी समुद्र की सतह के तापमान में बदलाव के कारण पारंपरिक ला नीना की परिस्थितियां दुनिया भर में दिखने लगी हैं।

दक्षिण अमेरिका में ला नीना जैसे हालात का खतरा, कुछ फसलें प्रभावित होने की आशंका

ला नीना जैसे हालात दक्षिण अमेरिकी देशों अर्जेंटीना, उरुग्वे, दक्षिणी पराग्वे और ब्राजील के सुदूर दक्षिणी हिस्सों में फसलों के लिए खतरा पैदा कर रहे हैं। हालांकि ला नीना अब तक विकसित नहीं हुआ है, जबकि विभिन्न पूर्वानुमान मॉडलों ने इसे आसन्न बताया था। फिर भी समुद्र की सतह के तापमान में बदलाव के कारण पारंपरिक ला नीना की परिस्थितियां दुनिया भर में दिखने लगी हैं।  

वर्ल्ड ग्रेन पत्रिका ने अपने जनवरी अंक में प्रकाशित एक रिपोर्ट में बताया है कि ला नीना आधिकारिक रूप से शायद विकसित न हो। अगर यह विकसित होता भी है तो एक या दो महीने तक ही टिक पाएगा, क्योंकि इस सर्दी और वसंत में पूर्वी भूमध्य रेखीय प्रशांत महासागर में तापमान गर्म होने की भविष्यवाणी की गई है। दिसंबर के दौरान समुद्र की सतह के तापमान में महत्वपूर्ण बदलाव से इंडोनेशिया, दक्षिण अफ्रीका से लेकर ब्राजील के मध्य-दक्षिण तक बारिश हुई है। वहीं अर्जेंटीना, उरुग्वे, दक्षिणी पराग्वे और ब्राजील के सुदूर दक्षिणी हिस्सों में स्थिति सूखे की बन रही है।

वर्ल्ड वेदर के वरिष्ठ कृषि मौसम विज्ञानी ड्रू लेर्नर की इस रिपोर्ट के अनुसार, दिसंबर के अंत में सामान्य से अधिक शुष्क परिस्थितियों ने मिट्टी की ऊपरी सतह को सख्त कर दिया, लेकिन उसके नीचे की परत में नमी के कारण फसलों को ज्यादा नुकसान नहीं हुआ। इसके विपरीत हाल ही बोई गई फसलों में ऊपरी सतह में कम नमी के कारण अंकुरण खराब हो रहा है। ऊपरी सतह में नमी अंकुरण और पौधों के विकास के लिए जरूरी है। इसमें कमी के कारण बुवाई में कुछ देरी भी हो सकती है। मिट्टी की ऊपरी सतह में नमी 31 दिसंबर को सामान्य से कुछ कम जबकि कुछ क्षेत्रों में बहुत कम थी। जनवरी की शुरुआत में गर्मी बढ़ने और बारिश लगभग न होने के कारण सूखे की प्रवृत्ति तेज होने की आशंका थी।

जनवरी के मध्य में छिटपुट बारिश और गरज के साथ छींटे पड़ने की संभावना थी। लेकिन ला नीना जैसी स्थितियां बनी रहने के कारण इस महीने के अंत से मिट्टी शुष्क होने और फसलों की स्थिति फिर से बिगड़ने की आशंका अधिक है। वर्ल्ड वेदर को उम्मीद नहीं है कि मौसम में बदलाव लंबे समय तक रहेगा, और जो राहत मिलेगी वह केवल अस्थायी होगी। इस महीने के अंत में ला नीना जैसी परिस्थितियों का अधिक प्रभाव देखने को मिल सकता है, जिससे उत्पादन और फसल स्वास्थ्य पर कुछ दबाव बना रहेगा।  

आमतौर पर जब ला नीना सक्रिय होता है तो अर्जेंटीना के पूर्वी हिस्सों, उरुग्वे, दक्षिणी ब्राजील और दक्षिणी पराग्वे में ग्रीष्मकालीन फसलों की पैदावार कम हो जाती है। किसी-किसी साल (विशेषकर जब ला नीना पूरी तरह से विकसित होता है) उत्पादन में भारी गिरावट हो सकती है। हालांकि इस साल स्थिति थोड़ी अलग रहने की संभावना है क्योंकि शुरुआती सीजन में फसल का विकास अत्यंत अनुकूल रहा है और फरवरी में ला नीना जैसी परिस्थितियों के कम होने की संभावना है।

दुर्भाग्यवश, दक्षिण अमेरिकी किसानों के लिए यह राहत तब आएगी जब शुरुआती ग्रीष्मकालीन फसलों का काफी समय बीत चुका होगा। हालांकि, देर से बोई गई फसलों को समय पर बारिश और कम भीषण गर्मी का लाभ मिलेगा, जिससे उनकी पैदावार बेहतर हो सकती है। कुल मिलाकर, दक्षिण अमेरिका में उत्पादन में गिरावट हो सकती है, लेकिन इसका प्रभाव अपेक्षाकृत हल्का होगा। बशर्ते फरवरी में परिस्थितियां अधिक प्रतिकूल न बनें।  

सफरीन्हा मक्का पर प्रभाव

दक्षिण अमेरिका में बड़ा प्रभाव सफरीन्हा (दूसरे सीजन) मक्का फसल पर हो सकता है, जो आमतौर पर जनवरी और फरवरी में सोयाबीन की कटाई के बाद बोई जाती है। सफरीन्हा मक्का की कुछ फसलें देर से बोई जा सकती हैं क्योंकि मौसमी बारिश में देरी और शुरुआती सीजन की सोयाबीन की बुवाई में देरी हुई है। इसके अलावा, शुरुआती सीजन की सोयाबीन की कटाई में भी देरी हो सकती है क्योंकि जनवरी के मध्य में ब्राजील के कुछ हिस्सों में अत्यधिक बारिश भी हुई, जो ला नीना जैसी परिस्थितियों का एक और परिणाम है। सफरीन्हा मक्का की बुवाई में देरी के कारण इसका रकबा कम रह सकता है। पूर्ण ला नीना की घटना अक्सर बारिश के मौसम को बढ़ा देती है। ऐसा हुआ तो सफरीन्हा फसलों की देर से बुवाई का प्रभाव उतना गंभीर नहीं होगा। 

रिपोर्ट में बताया गया है कि दक्षिण अमेरिका में अक्टूबर के अंत से मौसम की स्थिति आदर्श रही है, लेकिन जनवरी में मुश्किलें बढ़ी हैं। इससे पूर्वी अर्जेंटीना, उरुग्वे, रियो ग्रांडे डो सुल और पराग्वे की गर्मी की फसलों की पैदावार कम हो सकती है। सफरीन्हा फसल पर भी इसका असर पड़ सकता है। हालांकि इसका प्रभाव ज्यादा बुरा नहीं होगा, लेकिन अल्पकालिक मौसम से संबंधित उतार-चढ़ाव से कमोडिटी वायदा की कीमतें बढ़ जाएंगी।

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