विश्व में बढ़ रही दालों की मांग, सतत कृषि में भूमिका के कारण हो रहा बाजार का विस्तार

वर्ल्ड ग्रेन पत्रिका द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट में राबोबैंक के हवाले से कहा गया है कि मिट्टी का स्वास्थ्य सुधारने वाली दालों की विशेषता तो है ही, इनमें ग्रीनहाउस गैसों को अवशोषित करने की भी क्षमता है। इससे वे टिकाऊ कृषि का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गई हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि दालें कृषि को अधिक टिकाऊ बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण बन गई हैं।

विश्व में बढ़ रही दालों की मांग, सतत कृषि में भूमिका के कारण हो रहा बाजार का विस्तार

दालों का उत्पादन दुनियाभर में अब भी सीमित बना हुआ है। इसका सालाना वैश्विक उत्पादन लगभग 10 करोड़  टन है। लेकिन राबोबैंक की हाल की एक रिपोर्ट के अनुसार इनमें उत्पादन बढ़ाए जाने के साथ इनका ट्रेड बढ़ने की भी काफी संभावना है। इस रिपोर्ट में सस्टेनेबिलिटी के लाभों और उपभोक्ता रुचि में वृद्धि के कारण दालों की बढ़ती मांग को रेखांकित किया गया है। 

वर्ल्ड ग्रेन पत्रिका द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट में राबोबैंक के हवाले से कहा गया है कि मिट्टी का स्वास्थ्य सुधारने वाली दालों की विशेषता तो है ही, इनमें ग्रीनहाउस गैसों को अवशोषित करने की भी क्षमता है। इससे वे टिकाऊ कृषि का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गई हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि दालें कृषि को अधिक टिकाऊ बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण बन गई हैं।

गेहूं (120 करोड़ टन) और मक्का (80 करोड़ टन) जैसे मुख्य अनाजों की तुलना में दालों का उत्पादन कम होता है। इसके बावजूद विशेष रूप से चना, मटर और मसूर के ट्रेड और मांग में वृद्धि हो रही है। ये तीनों दालें कुल दाल उत्पादन का लगभग 40% हिस्सा होती हैं। इनके प्रमुख उत्पादक देशों में भारत (चना), रूस, अमेरिका, कनाडा, यूरोपीय संघ और यूक्रेन (मटर) और कनाडा, ऑस्ट्रेलिया तथा अमेरिका (मसूर) शामिल हैं।

वैश्विक दाल व्यापार विकसित हो रहा है और इसमें नए खिलाड़ी उभर रहे हैं। रूस ने सूखी मटर के निर्यात में अपनी भूमिका बढ़ाई है। मिस्र फावा बीन्स का सबसे बड़ा खरीदार बन गया है तो अर्जेंटीना ने विभिन्न प्रकार की बीन्स के निर्यात में वृद्धि की है। तुर्की ने मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका में दाल प्रसंस्करण और वितरण के एक प्रमुख केंद्र के रूप में खुद को स्थापित किया है।

वर्ष 2015 से वैश्विक दाल व्यापार में 29% की वृद्धि हुई है। इसकी औसत वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) 3% है। इंटरनेशनल ग्रेन्स काउंसिल (IGC) का अनुमान है कि 2024 में दालों का व्यापार 2.1 करोड़ टन तक पहुंच गया, जो कुल दाल उत्पादन का लगभग 20% है। ये आंकड़े वैश्विक गेहूं व्यापार की तुलना में बहुत कम हैं। पिछले वर्ष गेहूं का व्यापार 21 करोड़ टन तक पहुंच गया था।

विकासशील देशों के लिए दालें किफायती प्रोटीन का स्रोत हैं और मांस तथा डेयरी प्रोडक्ट का विकल्प भी। दालें सस्टेनेबल पर्यावरण में भी महत्वपूर्ण योगदान देती हैं। उनकी नाइट्रोजन-फिक्सिंग क्षमता हवा से नाइट्रोजन अवशोषित करके मिट्टी की उर्वरता में सुधार करती हैं। इससे रासायनिक उर्वरकों की आवश्यकता कम हो जाती है। उनकी गहरी जड़ें मिट्टी की संरचना के साथ उसकी जल धारण और उसमें वायुसंचलन की क्षमता को बढ़ाती हैं। ये जैव विविधता को भी बढ़ावा देती हैं।

इन लाभों के बावजूद दाल उद्योग के सामने कई चुनौतियां हैं जो इसके बाजार के विकसित होने में बाधा डालती हैं। मुख्य अनाजों के विपरीत दालों को अभी तक वैश्विक कमोडिटी के रूप में नहीं माना जाता है। इसके मूल्यों में अस्थिरता रहती है, प्राइस डिस्कवरी में पारदर्शिता की कमी है, साथ ही वैश्विक व्यापार डेटा भी सीमित है। राबोबैंक ने निवेश आकर्षित करने, व्यापार बढ़ाने और बाजार की बेहतर कार्यक्षमता के लिए पारदर्शिता बढ़ाने की आवश्यकता पर जोर दिया है।

दालों के कारोबार की क्षमता को पहचानते हुए कई प्रमुख एग्रीबिजनेस कंपनियों ने इस क्षेत्र में प्रवेश किया है। अमेरिका स्थित प्रमुख कंपनियां जैसे एडीएम, बंज, कारगिल, कोलंबिया ग्रेन इंटरनेशनल और रेडवुड, जर्मनी की म्यूलर'स म्यूल ने दालों के ऑपरेशंस का हाल में विस्तार किया है। नीदरलैंड्स की लुइस ड्रेफस कंपनी ने अगस्त 2024 में दालों के व्यवसायीकरण के लिए एक अलग इकाई बनाने की घोषणा की। बढ़ती मांग, बढ़ती बाजार रुचि, और सस्टेनेबिलिटी के लाभों की बढ़ती मान्यता के साथ दालें जल्द ही वैश्विक मुख्यधारा में विकसित हो सकती हैं।

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