वैश्विक अनाज ट्रेड में अहम साबित हो सकता है ब्रिक्स ग्रेन एक्सचेंज, फिलहाल चुनौतियां कई

ब्रिक्स के शुरुआती पांच सदस्य देशों ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका का विश्व अनाज अर्थव्यवस्था में एक अनोखा स्थान है। वे चावल, गेहूं, मक्का और जौ जैसे अनाज और इनके उत्पादों के सबसे बड़े उत्पादकों के साथ सबसे बड़े उपभोक्ताओं में भी शामिल हैं। ये प्रमुख अनाज निर्यातक के साथ बड़े आयातक भी हैं।

वैश्विक अनाज ट्रेड में अहम साबित हो सकता है ब्रिक्स ग्रेन एक्सचेंज, फिलहाल चुनौतियां कई

ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के बाद जारी घोषणापत्र में नया ग्रेन एक्सचेंज स्थापित करने की बात कही गई है। यह प्रस्ताव रूस की तरफ से आया था, जिस पर संगठन के बाकी सदस्य देशों ने भी सहमति जताई। अगर यह एक्सचेंज स्थापित होने के बाद सफल रहा तो यह अंतरराष्ट्रीय अनाज व्यापार में अहम मोड़ साबित होगा। करीब छह महीने पहले रशियन यूनियन ऑफ ग्रेन एक्सपोर्टर्स (RUSGRAIN Union) ने यह एक्सचेंज स्थापित करने का प्रस्ताव राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को दिया था।

मूल रूप से देखा जाए तो ब्रिक्स के शुरुआती पांच सदस्य देशों ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका का विश्व अनाज अर्थव्यवस्था में एक अनोखा स्थान है। वे चावल, गेहूं, मक्का और जौ जैसे अनाज और इनके उत्पादों के सबसे बड़े उत्पादकों के साथ सबसे बड़े उपभोक्ताओं में भी शामिल हैं। ये प्रमुख अनाज निर्यातक के साथ बड़े आयातक भी हैं।

उदाहरण के तौर पर दुनिया का आधे से अधिक चावल का उत्पादन भारत और चीन करते हैं। दोनों चावल की सबसे अधिक खपत करने वाले देश भी हैं। चीन मक्का, सोयाबीन, गेहूं, जौ, सूरजमुखी का सबसे बड़ा आयातक है तो रूस दुनिया का सबसे बड़ा गेहूं निर्यातक है। यही नहीं, चीन, रूस और भारत मिलकर दुनिया का 40% से अधिक गेहूं उत्पादन करते हैं। ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका का भी गेहूं, मक्का और सोयाबीन के बड़े निर्यातकों में स्थान है।

अनाज के अंतरराष्ट्रीय व्यापार में ब्रिक्स देशों का अपने संगठन से बाहर भी अहम स्थान है। चीन एक बड़ा खाद्यान्न आयात है और वह आस्ट्रेलिया, अर्जेंटीना, यूरोपियन यूनियन और अमेरिका से भी गेहूं, मक्का तथा सोयाबीन का आयात करता है। इसके अलावा, ब्राजील और रूस 100 से अधिक देशों को अनाज निर्यात करते हैं। लेकिन फिलहाल इनके आयात-निर्यात की कीमतें उत्तर अमेरिका और यूरोप के एक्सचेंज से तय होती हैं। रूस सबसे बड़ा गेहूं निर्यातक तो है, लेकिन वहां अंतरराष्ट्रीय स्तर का कोई एक्सचेंज नहीं है। पश्चिमी एक्सचेंजों में सौदे होने के कारण रेट और सेटलमेंट भी ज्यादार डॉलर में होते हैं। यूक्रेन पर हमले के बाद लगे प्रतिबंधों के कारण रूस को डॉलर सौदों में परेशानी हो रही है। इसलिए वह नया एक्सचेंज स्थापित करना चाहता है।

ब्रिक्स देश अपने मानदंडों और हेजिंग पर आधारित अधिक पारदर्शी और निष्पक्ष अनाज व्यापार करना चाहते हैं। माना जा रहा है कि यह एक्सचेंज इन देशों को पहले अपनी-अपनी मुद्राओं में व्यापार करने और उसके बाद एक साझा ब्रिक्स मुद्रा की शुरुआत करने में सहायक हो सकता है। हालांकि इस एक्सचेंज को पहले से स्थापित अंतरराष्ट्रीय एक्सचेंजों के साथ प्रतिस्पर्धा करनी पड़ेगी।

अंतरराष्ट्रीय पत्रिका वर्ल्डग्रेन के अनुसार अभी इस प्रस्ताव को ‘राजनीतिक अतिशयोक्ति’ कहा जा सकता है, क्योंकि इसमें ठोस कुछ नहीं है। इसमें कोई सैद्धांतिक और कार्यप्रणाली का आधार भी नहीं बताया गया है। वैश्विक अनाज व्यापारी वर्ग को इस पहल के बारे में स्पष्टता की जरूरत होगी। खासकर उन चुनौतियों के संदर्भ में जिन्हें दूर करने के लिए इस एक्सचेंज को गठित करने की बात हो रही है। 

रशियन यूनियन ऑफ ग्रेन एक्सपोर्टर्स (RUSGRAIN Union) ने पहली बार दिसंबर 2023 में ब्रिक्स ग्रेन एक्सचेंज की बात कही थी और पुतिन को इसका प्रस्ताव मार्च 2024 में दिया। मॉस्को में इस साल 28 जून को ब्रिक्स कृषि मंत्रियों की 14वीं बैठक में इसे रूस की तरफ से प्रस्तुत किया गया था। तब इस एक्सचेंज को गठित करने के पीछे कृषि उपज की मांग और आपूर्ति में संतुलन बनाने, मौजूदा सप्लाई चेन को सुरक्षित करने, ब्रिक्स में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने, अनाज कीमतों पर नियंत्रण रखने और सट्टेबाजी पर लगाम लगाने को वजह बताया गया था।

ब्रिक्स ग्रेन एक्सचेंज स्थापित करने में अभी कई अड़चनें हैं। रूस के अलावा चार अन्य ब्रिक्स देशों ब्राजील, चीन, भारत और दक्षिण अफ्रीका में पहले ही अपने अनाज के एक्सचेंज चल रहे हैं। इनमें भारत का मल्टी-कमोडिटी एक्सचेंज, ब्राजील का मर्केंटाइल एंड फ्यूचर्स एक्सचेंज, चीन का डालियान कमोडिटी एक्सचेंज और दक्षिण अफ्रीका का जोहान्सबर्ग स्टॉक एक्सचेंज के अंतर्गत फ्यूचर्स एक्सचेंज प्रमुख हैं। रणनीतिक और तकनीकी दृष्टिकोण से ये सभी एक्सचेंज कृषि उपज की डेरिवेटिव ट्रेडिंग में रूस से काफी आगे हैं।

ब्रिक्स देश अक्सर घरेलू अनाज भंडार और कीमतों पर नियंत्रण लगाने के कदम उठाते रहते हैं। उदाहरण के लिए, चीन का बाजार अब भी आंशिक रूप से रूसी गेहूं और अन्य स्रोतों से आने वाले अनाज के लिए बंद है। भारत भी चावल और गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगाता रहता है। रूस गेहूं, मक्का और जौ पर निर्यात शुल्क लगाता है। इसके अलावा, कमोडिटी एक्सचेंज और डेरिवेटिव बाजार के नियमों पर भी ब्रिक्स देशों में एकरूपता नहीं है। बिना कोऑर्डिनेशन के कार्यान्वयन प्रक्रिया जटिल होगी। इस एक्सचेंज को सफल होने के लिए सदस्य देशों की अर्थव्यवस्थाओं और संगठन के बाहर के बाजारों के साथ इंटीग्रेशन भी जरूरी है।

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