कृषि सब्सिडी को लेकर डब्ल्यूटीओ में नए मॉडल की जरूरत
भारत में खेती पर दी जाने वाली सब्सिडी कृषि पर समझौते (AoA) के तहत विश्व व्यापार संगठन (WTO) में विवाद का विषय बन गई है। कृषि पर समझौते को एक निष्पक्ष और मार्केट ओरिएंटेड कृषि व्यापार प्रणाली स्थापित करने के लिए अपनाया गया था,
भारत में खेती पर दी जाने वाली सब्सिडी कृषि पर समझौते (AoA) के तहत विश्व व्यापार संगठन (WTO) में विवाद का विषय बन गई है। कृषि पर समझौते को एक निष्पक्ष और मार्केट ओरिएंटेड कृषि व्यापार प्रणाली स्थापित करने के लिए अपनाया गया था, जिसमें प्रोडक्शन से जुड़ी एक्टिविटी के लिए सब्सिडी को कम किए जाने के अलावा एक्सपोर्ट सब्सिडी को कम किया जाना था। एक ओर जबकि विश्व व्यापार संगठन के सदस्यों ने निर्यात सब्सिडी को काफी कम कर दिया है और आयात शुल्क को भी कुछ हद तक कम कर दिया है। दूसरी ओर विशेष रूप से बड़े देशों जिसमें अमेरिका और यूरोपीय संघ (ईयू) के सदस्य शामिल हैं, द्वारा दी जाने वाली सब्सिडी की मात्रा उच्च स्तर पर बनी हुई है।
इनमें से अधिकांश सब्सिडी का उपयोग अन्य देशों में कृषि उत्पादकों की कीमत पर व्यावसायिक लाभ बढ़ाने के लिए किया जाता है. इस पेपर में कहा गया है कि सब्सिडी पर कृषि पर समझौते के विषयों पर फिर से काम करने की आवश्यकता है; सब्सिडी का लेवल जो डब्ल्यूटीओ सदस्य सब्सिडी दे सकते हैं, वह उपयोग करने के औचित्य से संबंधित होनी चाहिए. इस तरह से सब्सिडी पर अंकुश लगाना चाहिए क्योंकि इसमें अन्य विश्व व्यापार संगठन के सदस्यों में कृषि को अस्थिर करने की क्षमता है।
अमेरिका सभी विश्व व्यापार संगठन के सदस्यों के बीच घरेलू समर्थन का सबसे बड़ा प्रोवाइडर रहा है. 2017 के डाटा के अनुसार यूएस का घरेलू समर्थन खर्च 131 बिलियन डॉलर से अधिक हो गया था. हालांकि 2013 में 147 बिलियन डॉलर के पीक स्तर पर पहुंचने के बाद से इसकी कृषि सब्सिडी में लगातार गिरावट आ रही है. 2017 में घरेलू समर्थन खर्च 1995 में दी जाने वाली सब्सिडी के मुकाबले दोगुना हो गया. दूसरी ओर यूरोपीय यूनियन ने अपनी कृषि सब्सिडी को 2009/10 तक कम कर दी थी लेकिन तब से इसकी सब्सिडी लगभग स्थिर बनी हुई है. इससे पता चलता है कि यूरोपीय संघ अपनी सब्सिडी पर लगाम लगाने में सक्षम थात्र इस घटना का एक और सबूत यह है कि 1995 में, यूरोपीय यूनियन की सदस्यता 15 थी, जबकि 2017/18 में, इसकी सदस्यता बढ़कर 28 हो गई थी।
यूरोपीय संघ/अमेरिकी घरेलू समर्थन कार्यक्रमों का एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि कमोडिटीज पर उनका फोकस रहा है, जिसमें 2 डब्ल्यूटीओ सदस्यों की वैश्विक बाजारों में मजबूत उपस्थिति है. टेबल्स 5 और 6 उन उत्पादों की सूची है जिन्हें अमेरिका और यूरोपीय संघ में हाई लेवल का मूल्य समर्थन मिला है।
टेबल: अमेरिका (सभी आंकड़े अमेरिकी डॉलर में हैं)
उत्पाद |
1995 |
2000 |
2005 |
2010 |
2015 |
2016 |
2017 |
मक्का |
32.1 |
2756.7 |
4490.0 |
15.1 |
2362.1 |
2344.8 |
2198.8 |
चीनी |
1090.9 |
1177.5 |
1199.2 |
1267.3 |
1524.9 |
1517.3 |
1576.7 |
सोयाबीन |
16.3 |
3606.4 |
69.2 |
4.5 |
1391.5 |
1207.2 |
1626.7 |
गेहूं |
5.0 |
847.2 |
28.9 |
111.9 |
854.9 |
911.5 |
603.8 |
कपास |
32.0 |
1049.8 |
1620.7 |
81.2 |
853.1 |
833.7 |
952.1 |
ज्वार |
0.5 |
83.8 |
139.8 |
0.0 |
210.4 |
167.4 |
125.1 |
चावल |
11.6 |
624.4 |
132.5 |
9.6 |
60.1 |
86.2 |
64.9 |
टेबल: ईयू (सभी आंकड़े यूरो में हैं)
उत्पाद |
1995/96 |
2000/2001 |
2004/05 |
2009/10 |
2014/15 |
2015/16 |
2016/17 |
मक्का |
4209.7 |
4443.5 |
4084.1 |
2723.0 |
2850.4 |
2976.6 |
3075.9 |
गेहूं |
2593.1 |
2270.7 |
1842.4 |
1917.5 |
2213.7 |
2273.6 |
2119.9 |
स्किम दूध पाउडर |
1806.2 |
1507.6 |
1215.7 |
953.5 |
1476.4 |
1558.5 |
1549.3 |
दूध |
N.A. |
N.A. |
176.2 |
671.9 |
183.3 |
593.9 |
210.4 |
जैसा कि टेबल से देखा जा सकता है, यूरोपीय संघ ने कुछ महत्वपूर्ण डेयरी उत्पादों और गेहूं को हाई लेवल सब्सिडी प्रोवाइड किया. पिछले दशक के मध्य तक, चीनी के उत्पादकों को ज्यादा सब्सिडी दी गई थी. विश्व व्यापार संगठन विवाद निपटान निकाय ने पाया कि चीनी पर यूरोपीय संघ की सब्सिडी कृषि पर समझौते के तहत अपनी प्रतिबद्धता के अनुरूप नहीं थी, चीनी सब्सिडी की नीति बंद कर दी गई थी । अमेरिका ने सभी प्रमुख अनाज पर लगातार सब्सिडी दी है. यूएस में सब्सिडी का मुख्य फोकस काउंटरसाइक्लिकल यानी प्रतिचक्रिय उपायों पर किया गया था, क्योंकि अमेरिका में रिसोर्स इंटेसिव प्रोड्यूसर्स को इन वस्तुओं की कीमतें कम होने पर व्यवसाय में बने रहने के लिए हाई लेवल की सब्सिडी प्रदान की जानी थी. वास्तव में देखें तो ज्यादा सब्सिडी प्रदान करने के पीछे तर्क यह है कि यूरोपीय संघ और अमेरिका को अंतरराष्ट्रीय बाजारों में अपनी हिस्सेदारी ज्यादा बनाए रखनी थी.
टेबल : ज्यादा सब्सिडी दी जाने वाले प्रोडक्ट पर ईयू की ग्लोबल एक्सपोर्ट में हिस्सेदारी (%)
उत्पाद |
1995 |
2000 |
2005 |
2010 |
2016 |
मक्खन |
64.1 |
55.3 |
61.9 |
58.3 |
57.4 |
गेहूं |
31.7 |
27.8 |
27.6 |
35.0 |
36.0 |
स्किम्ड मिल्क पाउडर |
76.5 |
69.9 |
63.1 |
62.4 |
56.4 |
दूध |
94.2 |
93.0 |
90.4 |
90.6 |
85.8 |
टेबल : ज्यादा सब्सिडी दी जाने वाले प्रोडक्ट पर अमेरिका की ग्लोबल एक्सपोर्ट में हिस्सेदारी (%)
उत्पाद |
1995 |
2000 |
2005 |
2010 |
2016 |
मक्का |
77.0 |
58.2 |
50.1 |
46.8 |
38.0 |
सोयाबीन |
71.5 |
57.4 |
39.2 |
43.5 |
42.8 |
गेहूं |
31.9 |
23.7 |
22.6 |
19.0 |
13.1 |
कपास |
35.1 |
26.8 |
38.6 |
38.2 |
36.4 |
ज्वार |
83.6 |
77.4 |
85.2 |
61.4 |
79.2 |
यूरोपीय यूनियन और अमेरिका ने कमोडिटीज के वैश्विक निर्यात में अपेक्षाकृत ज्यादा हीस्सेदारी बनाए रखी, जिसमें उन्होंने प्रोडक्ट स्पेसिफिक सपोर्ट के महत्वपूर्ण स्तर की सूचना दी. हालांकि, उपर के टेबल में लिस्ट अधिकांश उत्पादों में, इन दोनों विश्व व्यापार संगठन के सदस्यों ने अपने निर्यात शेयरों को खो दिया. अमेरिका ने सोयाबीन और गेहूं में अपने शेयर में गिरावट को दर्ज किया. ऐसा ब्राजील और रूसी संघ की वजह से हुआ.
यह साक्ष्य दिखाता है कि यूरोपीय संघ और अमेरिका में एग्रीकल्चर सेक्टर दोनों देशों के उनके हितों से प्रेरित हैं. अधिकांश प्रमुख कमोडिटीज में और विशेष रूप से अनाज के मामले में, यूरोपीय संघ और अमेरिका के पास हाई एक्सपोर्ट डिपेंडेंसी रेश्यो यानी उच्च निर्यात निर्भरता अनुपात है. दो सबसे बड़े विकासशील देशों, चीन और भारत से संबंधित आंकड़ों के साथ तुलना करने पर ये आंकड़े और भी अधिक स्पष्ट हो जाते हैं. नीचे दिया गया टेबल तीन मुख्य अनाज के लिए एक्सपोर्ट टू प्रोडक्शन रेश्यो को बताता है.
टेबल: एक्सपोर्ट टू प्रोडक्शन रेश्यो, चावल (%)
साल |
यूरोपीय संघ |
भारत |
अमेरिका |
चीन |
1995 |
54.9 |
4.3 |
38.6 |
0.0 |
2000 |
57.4 |
1.2 |
31.0 |
1.6 |
2005 |
60.3 |
3.0 |
37.5 |
0.4 |
2010 |
61.3 |
1.5 |
34.0 |
0.3 |
2016 |
65.9 |
6.0 |
32.6 |
0.2 |
टेबल: एक्सपोर्ट टू प्रोडक्शन रेश्यो, गेहूं (%)
साल |
यूरोपीय संघ |
भारत |
अमेरिका |
चीन |
1995 |
26.9 |
1.0 |
54.6 |
0.0 |
2000 |
24.4 |
1.1 |
ऊपर दिए गए टेबल से साफ संकेत मिलता है कि बड़े विकासशील देशों जैसे भारत और चीन में अनाज का उत्पादन उनकी घरेलू मांग को पूरा करता है। वहीं औद्योगिक तौर पर विकसित हो चुके देशों में हालात इसके विपरीत हैं। इस बात पर गौर किया जाना चाहिए कि चीन और भारत चावल के सबसे बड़े उत्पादक देश हैं और ये देश गेहूं का उत्पादन भी बड़े पैमाने पर करते हैं। लेकिन अगर इन जिंसो के निर्यात की बात करें तो कुल उत्पादन में निर्यात का हिस्सा बहुत छोटा है। ऐसे में ऊपर की गई चर्चा से यह निष्कर्ष निकाला जाना चाहिए कि विकसित देश जहां कृषि क्षेत्र को सब्सिडी वैश्विक बाजार में निर्यात की संभावनाओं को बेहतर बनाने के लिए देते हैं वहीं विकासशील देश कृषि क्षेत्र को सब्सिडी घरेलू खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने और ग्रामीण इलाकों में आजीविका को बढ़ावा देने के लिए देते हैं।
एओए अपनी प्रस्तावना में इस बात को मान्यता देता है कि समझौते के तहत कृषि से जुड़ी नीतियों में सुधार को इस तरह से आगे बढ़ाया जाए जहां सभी सदस्यों के साथ बराबरी का व्यवहार हो। इसके तहत खाद्य सुरक्षा सहित गैर व्यापार चिंताओं पर गौर किया जाना चाहिए। लेकिन समझौते के तहत पेश किए गए नियम और व्यवस्थाएं किसी भी तरह से गैर व्यापार चिंताओं को क्रियाशील नहीं करते। एओए के तहत सुधार प्रक्रिया को जारी रखने के लिए तैयार किया गया एजेंडा, जिसे समझौते के अनुच्छेद 20 में परिभाषित भी किया गया है , कहता है कि वार्ता के दौरान गैर व्यापार चिंताओं, विकासशील सदस्य देशों के लिए विशेष और अलग तरह के व्यवहार और उचित व बाजार उन्मुख कृषिगत ट्रेडिंग सिस्टम को स्थापित करने के मकसद को ध्यान में रखा जाना चाहिए।
दोहा मंत्रिस्तरीय घोषणापत्र विकासशील देशों में कृषि के विशेष चरित्र को मान्यता देता है। सदस्य देशों के मंत्री इस बात पर सहमत हुए थे कि विकासशीले देशों के लिए विशेष और अलग तरह का व्यवहार वार्ता के सभी तत्वों का अभिन्न हिस्सा होगा। इसके अलावा इसे रियायतों और प्रतिबद्धताओं के शेड्यूल में समाविष्ट किया जाएगा। नियम और व्यवस्थाएं तय करते समय इस का ध्यान रखा जाएगा कि विकासशील देश खाद्य सुरक्षा और ग्रामीण विकास सहित विकास से जुड़ी अपनी जरूरतों को पूरा कर पाएं।
2003 में कांकन मंत्रिस्तीय सम्मेलन की असफलता ने दोहा डेवलपमेंट एजेंडा को बाधित कर दिया। इसके बाद डब्ल्यूटीओ सदस्य कथित 1 अगस्त फैसले के जरिए पूरी प्रक्रिया को वापस पटरी पर लाए। और इस फैसले में भी विकासशील देशों के लिए उचित कृषिगत नीतियों अपनाने की जरूरत पर जोर दिया गया। “ कृषि विकासशील देशों के आर्थिक विकास के लिए बेहद अहम है और ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए जिससे ये देश ऐसी कृषि नीतियों पर अमल कर सकें जो उनके विकास से जुड़े लक्ष्यों, गरीबी उन्मूलन के प्रयासों, खाद्य सुरक्षा और आजीविका की चिंताओं को दूर करने में मददगार साबित हो।
इस परिप्रेक्ष्य में इस बात पर गौर किया जाना चाहिए कि दोहा दौर की वार्ता में एओए नियमों में संशोधन के प्रस्तावों पर विचार किया गया था। ये प्रस्ताव विकासशील देशों में खाद्य सुरक्षा और ग्रामीण विकास की जरूरतों के बारे में थे। वार्ता में दो प्रस्ताव पर काफी प्रगति हुई थी और ये प्रस्ताव बाजार पहुंच के क्षेत्र से जुड़े थे। इनके नाम विशेष उत्पाद नामित करने और विशेष सुरक्षा उपाय तंत्र के लिए प्रस्ताव थे। एक तरफ जहां विकासशील देशों के किसानों को वैश्विक बाजार की अनिश्चितता से बचाने की जरूरत पर चर्चा की गई वहीं तथ्य यह है कि विकासशील देशों में गैर व्यापार चिंताओं जैसे खाद्य सुरक्षा और अजीविका की जरूरतों को पूरा करने के लिए इन किसानों को अपनी सरकार से समुचित समर्थन की दरकार है, इस बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया।
चर्चा से एक बात स्पष्ट हो जाती है कि डब्ल्यूटीओ सदस्यों द्वारा मुहैया कराई जा रही कृषि सब्सिडी को इस आधार पर अलग तरीके से देखने की जरूरत है कि क्या देश में उत्पादन तंत्र व्यावसायिक हितों को बढ़ावा देने में लगा है या घरेलू खाद्य सुरक्षा की जरूरतों को पूरा करने में। मौजूदा समय में एओए की सब्सिडी व्यवस्थाएं कृषि से जुड़े बाजार पर घरेलू समर्थन उपायों के प्रभाव अथवा सब्सिडी से फायदा उठाने वाले उत्पादकों की कैटेगरीज को नहीं मानतीं हैं। इनके नाम हैं छोटे पैमाने पर पर उत्पादन करने वाले अथवा एग्री बिजनेस। इसलिए विकासशील देशों को उन सिद्धांतों में बदलाव करने के लिए कदम उठाने की जरूरत है जिन सिद्धांतों पर एओए ने सब्सिडी की व्यवस्थाओं को तय किया है। इसके अलावा यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि सब्सिडी विकासशील देशों में खाद्य सुरक्षा और ग्रामीण आजीविका के दोहरे मकसद को पूरा करने में योगदान करे। कृषि सब्सिडी के क्षेत्र में वास्तविक सुधार तभी हो सकता है जब एओए अपनी सरकारों के समर्थन से विस्तार कर रहे एग्री बिजनेस को रोकने में सक्षम हो जाए।
(लेखक जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ सोशल साइंसेज के सेंटर फॉर इकोनॉमिक स्टडीज एंड प्लानिंग में प्रोफेसर हैं)