आईसीएआर का नेचुरल फार्मिंग को पाठ्यक्रम में शामिल करने का फैसला
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने देश में प्राकृतिक कृषि को बढ़ावा देने के लिए अपने सभी आईसीएआर सहयोगी संस्थानों और कृषि विश्वविद्यालयों के कुलपतियों को प्राकृतिक खेती को पाठ्यक्रम में शामिल करने के लिए पाठ्यक्रम विकसित करने के लिए कहा है। जिसे ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट कोर्सेज में पढ़ाया जाएगा
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने देश में प्राकृतिक कृषि को बढ़ावा देने के लिए अपने सभी आईसीएआर सहयोगी संस्थानों और कृषि विश्वविद्यालयों के कुलपतियों को प्राकृतिक खेती को पाठ्यक्रम में शामिल करने के लिए पाठ्यक्रम विकसित करने के लिए कहा है। जिसे ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट कोर्सेज में पढ़ाया जाएगा। आइसीएआर के असिटेंट डायरेक्टर जनरल एस पी किमोथी ने इस संबंध में अधिसूचना जारी की है। कैबिनेट सचिवालय की ओर से आईसीएआर को एक परिपत्र प्राप्त होने के बाद यह अधिसूचना जारी की गई है।
असल में जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग को लेकर देश में काफी चर्चा है। प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी नेचुरल फार्मिग को लेकर काफी आशावान दिख रहे हैं ।16 दिसंबर 2021 को वाइब्रेंट गुजरात समिट के समापन समारोह के दौरान राष्ट्र को संबोधित करते हुए प्राकृतिक खेती के फायदा बताते हुए इसे बढ़ावा देने के लिए कहा था। पहले से इसे बढ़ावा देने के लिए देश में तरह-तरह के कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। देश के किसानों को इसके लाभों से अवगत कराया जा रहा है।
आईसीएआर की अधिसूचना में कृषि अनुसंधान संस्थानों और केवीके को देश में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा के लिए किसानों के बीच प्राकृतिक खेती के लाभों को प्रदर्शित करने की दिशा में काम करने के लिए कहा गया है । शून्य बजट और प्राकृतिक खेती पर पाठ्यक्रम विकसित करने और इसे स्नातक / स्नातकोत्तर स्तर के पाठ्य पुस्तकों में इसे शामिल करने के लिए कहा गया है।
इस मामले पर परिषद में आगे चर्चा की गई है और प्राकृतिक खेती से संबधित आवश्यक अनुपालन के लिए आईसीएआर से संबद्ध सभी संस्थानों के लिए कई कदम उठाने का फैसला किया गया।
प्राकृतिक खेती पर अनुसंधान, प्रदर्शन और प्रशिक्षण संबंधित आईसीएआर संस्थानों, एसएयू और सीएयू द्वारा अनिवार्य रूप से किया जाएगा। इसके अलावा, सीएयू, एयू, संबंधित देश के आईसीएआर संस्थान और केवीके प्राकृतिक खेती के लिए उपलब्ध भूमि का एक समर्पित हिस्सा निर्धारित करेंगे और किसानों और अन्य हितधारकों के बीच प्राकृतिक खेती की टेक्नोलॉजी प्रदर्शन करेंगे।
आईसीएआर सहायक महानिदेशक एस पी किमोथी द्वारा जारी अधिसूचना में शून्य बजट प्राकृतिक खेती पर पाठ्यक्रम के विकास और स्नातक और स्नातकोत्तर स्तर पर पाठ्यपुस्तकों में इसके समावेश पर भी प्रकाश डाला गया है ।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्राकृतिक कृषि को बढ़ावा देने पर वाइब्रेंट गुजरात समिट के समापन समारोह के दौरान कहा था कि,हमें अपनी खेती को केमिस्ट्री लैब से निकालकर प्रकृति की प्रयोगशाला से जोड़ना है। यह भी पूरी तरह से विज्ञान पर आधारित है। नेचुरल फार्मिंग के समर्थकों का कहना है कि केमिकल आधारित उर्वरक औऱ पौध सुरक्षा वाली सहित अन्य कृषि इनपुट किसान ,पर्यावरण, उपभोक्ता औऱ सबके लिए हानिकारक हैं।
मोदी का कहना देश के 80 फीसदी किसान हैं। छोटे किसान जिनके पास 2 हेक्टेयर से कम जमीन है। इनमें से अधिकांश किसान रासायनिक उर्वरकों पर भारी खर्च करते हैं। ऐसे में अब समय की जरूरत ऐसी खेती शुरू करने की है जिसमें पैदा होने वाली उपज सेहत को नुकसान न पहुंचाए और किसानों को अच्छा दाम भी मिले। इसलिए अब प्राकृतिक खेती पर जोर दिया जा रहा है। इसलिए सरकार ने प्राकृतिक खेती पर ज्यादा जोर दे रही है ।
सवाल यह है कि कौन-कौन से राज्य ऐसी खेती अपनाने के लिए तैयार हैं, जबकि धारणा ये है कि इससे उत्पादन में तेजी से गिरावट होगी। यह भी प्रश्न उठ रहा है कि अचानक केंद्र सरकार का प्रेम प्राकृतिक खेती के प्रति कैसे उमड़ पड़ा? दरअसल, सरकार को प्राकृतिक खेती के जरिए खाद सब्सिडी, बिजली सब्सिडी, बढ़ती बीमारियों और जल संकट जैसी चुनौतियों से निपटने की उम्मीद की किरण नजर आ रही है।