आईसीएआर और निजी क्षेत्र में होगी साझेदारी, रिसर्च, एजुकेशन और एक्सटेंशन में मिलकर करेंगे कामः हिमांशु पाठक
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मॉडल को पूरी तरह से लागू करने का फैसला लिया है। इसके तहत आईसीएआर के सभी सेंटर और संस्थान कृषि शोध, शिक्षा और एक्सटेंशन सेवाओं के लिए निजी क्षेत्र के साथ साझेदारी में काम करेंगे। पीपीपी के इस मॉडल के लिए गाइडलाइन तैयार हो चुकी हैं और उन्हें जल्दी ही लागू किया जाएगा। गाइडलाइन के तहत निजी क्षेत्र के साथ टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के जरिये रायल्टी देने की व्यवस्था से आगे की साझेदारी शुरू की जाएगी।। इसमें निजी और सरकारी संस्थान मिलकर कृषि क्षेत्र के लिए शोध कर सकेंगे और उसके होने वाले आर्थिक फायदे में उनकी हिस्सेदारी होगी। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के स्थापना समारोह के समापन के दिन एक संवादादाता सम्मेलन में आईसीएआर के महानिदेशक डॉ. हिमांशु पाठक ने यह जानकारी दी
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मॉडल को पूरी तरह से लागू करने का फैसला लिया है। इसके तहत आईसीएआर के सभी सेंटर और संस्थान कृषि शोध, शिक्षा और एक्सटेंशन सेवाओं के लिए निजी क्षेत्र के साथ साझेदारी में काम करेंगे। पीपीपी के इस मॉडल के लिए गाइडलाइन तैयार हो चुकी हैं और उन्हें जल्दी ही लागू किया जाएगा। गाइडलाइन के तहत निजी क्षेत्र के साथ टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के जरिये रॉयल्टी देने की व्यवस्था से आगे की साझेदारी शुरू की जाएगी। इसमें निजी और सरकारी संस्थान मिलकर कृषि क्षेत्र के लिए शोध कर सकेंगे और उसके होने वाले आर्थिक फायदे में उनकी हिस्सेदारी होगी।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के स्थापना दिवस समारोह के समापन के दिन एक संवादादाता सम्मेलन में आईसीएआर के महानिदेशक डॉ. हिमांशु पाठक ने यह जानकारी दी। उन्होंने कहा कि इस मौके पर 17 निजी कंपनियों के साथ सहमति पत्र (एमओयू) पर हस्ताक्षर भी किए गए हैं। आईसीएआर के लिए निजी क्षेत्र के साथ समझौते सरकारी कंपनी एग्री इन्नोवेट करती है।
उन्होंने बताया कि इस साल आईसीआर ने 346 नई किस्में जारी की। इसमें 99 हार्टिलकल्चर की किस्में हैं। आईसीएआर द्वारा जारी की गई 250 किस्में जलवायु परिवर्तन को बेअसर करने वाले गुणों की किस्में हैं। जलवायु परिवर्तन के चलते मौसम में जो प्रतिकूल बदलाव हो रहे हैं उसके चलते सूखा और बाढ़ जैसी घटनाओं का हमें लगातार सामना करना पड़ेगा। जलवायु परिवर्तन एक सत्य है और हम इसे देखते हुए फसलों के शोध के जरिये ऐसी किस्में तैयार कर रहे हैं जिन पर जलवायु परिवर्तन का कम असर पड़ता है।
उन्होंने कहा कि इस साल मानसून में कुछ देरी हुई है। ऐसे में हम किसानों को सलाह दे रहे हैं कि जो किस्में देर से बोई जा सकती हैं और उनकी उत्पादकता पर कोई असर नहीं पड़ता है ऐसी किस्मों का चयन करें। डॉ. पाठक ने कहा कि एनिमल साइंस और फिशरीज के क्षेत्र के लिए भी 30 टेक्नोलॉजी की विकसित की गई हैं। साथ ही कई वैक्सीन भी तैयार किए गए हैं।
यह भी पढ़ेंः मक्का की सेमी-ड्वार्फ किस्म से फसलों के नए युग की शुरुआत, जलवायु परिवर्तन से भी बेअसर
गौवंश में फैलने वाली लंपी बीमारी लिए तैयार किए गए लंपी प्रोवेकइंड वैक्सीन को नियामक की मंजूरी में देरी की बात को स्वीकारते हुए उन्होंने कहा कि मेरी जानकारी के मुताबिक एक-दो सप्ताह के भीतर इस वैक्सीन के कमर्शियल उत्पादन के लिए डीसीजीए की मंजूरी मिल सकती है। उसके बाद इस वैक्सीन का कमर्शियल उत्पादन शुरू हो जाएगा। इसके लिए एग्री इन्नोवेट के साथ चार कंपनियों ने टेक्नोलॉजी ट्रांसफर का समझौता किया है।
जीएम सरसों के बारे में पूछे गए एक सवाल के जवाब में आईसीएआर महानिदेशक ने कहा कि यह मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। न्यायालय का जो भी फैसला होगा हम उसके अनुरूप ही काम करेंगे। आईसीएआर को जीईएसी ने जीएम सरसों के फिल्ड ट्रायल की मंजूरी मिली थी लेकिन उसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट में चला गया था। उन्होंने कहा कि आईसीएआर कार्बन क्रेडिट का किसानों को फायदा दिलाने के प्रयासों पर भी काम कर रही है। इस बारे में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) निजी क्षेत्र के साथ मिलकर काम कर रहा है।
आईएआरआई के डायरेक्टर डॉ. अशोक कुमार सिंह ने बताया कि पंजाब में निजी क्षेत्र की कंपनी म्हाइको और अमेरिकी कंपनी इंडिगो किसानों के साथ मिलकर काम कर रही है। आईएआरआई इसके लिए एक ट्रेडिंग प्लेटफार्म पर काम रहा है। अभी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कार्बन क्रेडिट के लिए वेरा प्रोटोकॉल के तहत काम होता है। हम देख रहे हैं कि हमारे देश के अनुसार किस तरह की व्यवस्था व्यवहारिक होगी। इसके लिए तय मानकों के तहत कौन से किसान योग्य होंगे उसके लिए सैटेलाइट के जरिये मैपिंग की जा रही है। अभी तक के अनुभवों से हमने पाया कि इस मैपिंग के जरिये आने वाले नतीजे 95 फीसदी तक सही हैं। आने वाले दिनों में कार्बन क्रेडिट किसानों के लिए आय का बड़ा स्रोत बन सकता है।
एक्सटेंशन में निजी भागीदारी पर डॉ. पाठक ने बताया कि हमें नई टेक्नोलॉजी और सूचना प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हुए अधिक किसानों तक पहुंचना है। इसके जरिये किसानों तक तेजी से पहुंचा जा सकता है। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि कृषि विज्ञान केद्रों के कामकाज को भी नये सिरे से तय किया जाएगा। उनके कामकाज को बेहतर करने के लिए चर्चा हुई है, जल्दी ही इस बारे में फैसला लिया जा सकता है।