एचटीबीटी कॉटन और जीएम सरसों को मंजूरी की तैयारी, 20 साल बाद मिलेगी किसी जीएम फसल को स्वीकृति
देश में बीस साल बाद जेनेटिकली मॉडिफाइड (जीएम) फसलों के व्यावसायिक उत्पादन की मंजूरी मिल सकती है। यह फसलें हैं- हर्बिसाइड टॉलरेंट बीटी कॉटन जिसे एचटीबीटी कॉटन कहा जाता है, और जीएम सरसों की किस्म। उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक इन दोनों फसलों के व्यावसायिक उत्पादन की मंजूरी का रास्ता लगभग साफ हो गया है। अब जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रेजल कमेटी (जीईएसी) की मंजूरी की औपचारिकता ही बाकी रह गई है। रूरल वॉयस को मिली जानकारी के मुताबिक जीईएसी द्वारा नियुक्त सब कमेटी ने अपनी रिपोर्ट सौंप दी है। इस रिपोर्ट में एचटीबीटी कॉटन और जीएम सरसों के कमर्शियल उत्पादन के लिए सकारात्मक सिफारिश की गई है
देश में बीस साल बाद जेनेटिकली मॉडिफाइड (जीएम) फसलों के व्यावसायिक उत्पादन की मंजूरी मिल सकती है। यह फसलें हैं- हर्बिसाइड टॉलरेंट बीटी कॉटन जिसे एचटीबीटी कॉटन कहा जाता है, और जीएम सरसों की किस्म। उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक इन दोनों फसलों के व्यावसायिक उत्पादन की मंजूरी का रास्ता लगभग साफ हो गया है। अब जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रेजल कमेटी (जीईएसी) की मंजूरी की औपचारिकता ही बाकी रह गई है। रूरल वॉयस को मिली जानकारी के मुताबिक जीईएसी द्वारा नियुक्त सब कमेटी ने अपनी रिपोर्ट सौंप दी है। इस रिपोर्ट में एचटीबीटी कॉटन और जीएम सरसों के कमर्शियल उत्पादन के लिए सकारात्मक सिफारिश की गई है। इन किस्मों की मंजूरी के लिए बैठक इसी सप्ताह होने की संभावना है।
इससे पहले साल 2002 में पहली बार कपास की जीएम किस्म बीटी कॉटन को उत्पादन के लिए मंजूरी दी गई थी। उसके बाद से अभी तक किसी भी जीएम फसल को कमर्शियल उत्पादन की मंजूरी नहीं मिली है। बीटी कॉटन की किस्में अमेरिकी कंपनी मोनसेंटो और भारतीय कंपनी म्हाइको ने तैयार की थी, जिसमें टेक्नोलॉजी मोनसेंटो की थी।
उक्त सूत्र के मुताबिक जीईएसी द्वारा नियुक्त सब-कमेटी को एचटीबीटी कॉटन की किस्म के प्रतिकूल प्रभावों पर अध्ययन कर सिफारिशें देने के लिए कहा गया था। इस कमेटी को एचटीबीटी कॉटन के संबंध में इस तरह का कोई प्रमाण नहीं मिला, इसलिए समिति ने इसकी मंजूरी के लिए सकारात्मक रिपोर्ट दी है। समिति के एक सदस्य का कहना है कि देश में पहले ही करीब 30 फीसदी रकबे में गैरकानूनी तरीके से एचटीबीटी कॉटन का उत्पादन हो रहा है। इसके लिए बीज की आपूर्ति गैरकानूनी तरीके से हो रही है। ऐसे में बेहतर होगा कि इसे मंजूरी दी जाए ताकि किसानों को सही गुणवत्ता का बीज मिल सके और किसी तरह की खामी की स्थिति में बीज विक्रेताओं की जवाबदेही तय हो सके।
जीएम सरसों को भी मंजूरी संभव
जीईएसी की मंजूरी के लिए दूसरी संभावित फसल जीएम सरसों है। देश में खाद्य तेलों की आपूर्ति के मामले में सरसों की अहम भूमिका है। लेकिन सरसों की उत्पादकता बढ़ाने के मोर्चे पर हम लगातार नाकाम रहे हैं। इसके लिए वैज्ञानिक तर्क दे रहे हैं कि इसका उपाय जीएम सरसों के उत्पादन को मंजूरी देना है। दिल्ली यूनिवर्सिटी के पूर्व वाइस चांसलर डॉ. दीपक पेंटल ने जीएम सरसों की किस्म धारा मस्टर्ड हाइब्रिड -11 (डीएमएच-11) विकसित की थी, जिसके कमर्शियल रिलीज की अभी तक मंजूरी नहीं मिली है। इसी किस्म के कमर्शियल रिलीज की मंजूरी के पक्ष में सब-कमेटी ने अपनी सिफारिशें दी हैं।
डॉ. पेंटल ने इस जीएम किस्म के लिए बारनेस-बारस्टार (Barnase-barstar) तकनीक को अपनाया है। इसमें बारनेस के जरिये मेल को स्टेराइल (निष्प्रभावी) किया जाता है। वहीं बारस्टार के जरिये दूसरी लाइन में मेल को एक्टिवेट किया जाता है। इस प्रक्रिया में उपयोग जीन को बीए जीन के नाम से जाना जाता है। इस जीएम इवेंट पर 1991 में अमेरिका में पेटेंट लिया गया था। डॉ. पेंटल ने इसमें बदलाव किया है जिसे वैज्ञानिक ‘ट्विक करना’ कहते हैं। उन्होंने भी इसका पेटेंट अमेरिका से हासिल कर रखा है। इस जीएम वेरायटी के लिए सरसों की वरूणा प्रजाति का उपयोग किया गया है।
एक सीनियर साइंटिस्ट ने रूरल वॉयस को बताया कि डॉ. पेंटल की बारनेस-बारस्टार तकनीक पर आधारित जीएम सरसों किस्म डीएमएच-11 को जीईएसी की 133वीं बैठक में मंजूरी भी दे दी गई थी। लेकिन इससे तुरंत बाद उसकी 134वीं बैठक में मंजूरी को रोक दिया गया।
एक वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक का कहना है कि बारनेस-बारस्टार पर आधारित कैनोला की किस्मों का कनाडा में बड़े पैमाने पर उत्पादन हो रहा है। हाइब्रिड कैनोला किस्मों का कनाडा में 21 मिलियन एकड़ में उत्पादन हो रहा है। जीएम सरसों के प्रतिकूल असर की आशंका के मूल में मधुमक्खियों पर इसके दुष्प्रभाव को बताया जाता रहा है। यह आशंका व्यक्त की गई कि इसके चलते मधुमक्खियों की तादाद घटने से प्राकृतिक रूप से परागण की प्रक्रिया को नुकसान होगा और उसका कृषि उत्पादन पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। लेकिन कनाडा में कैनोला के क्षेत्रफल में वृद्धि की तुलना में मधुमक्खियों की कालोनियां (बी कालोनी) की तादाद कहीं अधिक बढ़ी है, जो इस तर्क को गलत साबित करती है। एक रिपोर्ट के मुताबिक कनाडा में 1988 में कैनोला का उत्पादन क्षेत्रफल करीब 10 मिलियन एकड़ था जो 2019 में 21 मिलियन एकड़ तक पहुंचा है, जबकि इसी दौरान बी कालोनी की संख्या करीब 10 मिलियन के स्तर से बढ़कर करीब 25 मिलियन तक पहुंच गई थी।
सब कमेटी के एक सदस्य ने रूरल वॉयस को बताया कि सरसों का उत्पादन बढ़ाने के लिए बेहतर गुणवत्ता की हाइब्रिड किस्मों की जरूरत है। कई निजी कंपनियों की हाइब्रिड किस्में बाजार में बिक रही हैं। लेकिन उत्पादकता का उच्च स्तर जीएम किस्म की मंजूरी से ही हासिल किया जा सकता है। परंपरागत तरीके से सरसों की हाइब्रिड किस्में तैयार करना काफी लंबा और मुश्किल काम है। जीएम तकनीक के जरिये इसकी प्रक्रिया को छोटा किया जाना संभव है। भारत खाद्य तेलों के आयात पर निर्भरता का चक्र नहीं तोड़ पा रहा है। ऐसे में जीएम सरसों की मंजूरी के बाद बेहतर जीएम किस्में तेल उत्पादन में तेजी से बढ़ोतरी कर सकती हैं। कॉटन के मामले में भी यही हुआ। जीएम कॉटन के जरिए आयात पर निर्भरता खत्म हुई ही है, भारत एक बड़ा कॉटन निर्यातक देश भी बन सका है।
नेशनल अकादमी ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज के सचिव और नेशनल ब्यूरो ऑफ प्लांट जेनेटिक रिसोर्सेज के पूर्व डायरेक्टर प्रो. के.सी. बंसल ने रूरल वॉयस को बताया, “सरसों में हाइब्रिड किस्म विकसित करने के लिए बारनेस-बारस्टार एक सफल जीएम टेक्नोलॉजी है। किसानों, उपभोक्ताओं और खाद्य तेल आयात पर निर्भरता कम करने के लिए हमें इस टेक्नोलॉजी और इससे तैयार जीएम सरसों हाइब्रिड को बढ़ावा देना चाहिए। बारनेस-बारस्टार जींस के प्रयोग से तैयार ट्रांसजेनिक सरसों से ज्यादा उत्पादकता वाली दूसरी हाइब्रिड किस्में तैयार करने में भी मदद मिलेगी।”
जहां तक जीएम फसलों का मसला है तो यह देश में एक विवादित मुद्दा रहा है। एक बड़ा वर्ग इसके विरोध में खड़ा होता रहा है। जीएम बीटी कॉटन के कमर्शियल उत्पादन को 2002 में मंजूरी के बाद दूसरी जीएम फसल बीटी बैंगन को 2009 में जीईएसी की मंजूरी मिली थी। इसे निजी बीज कंपनी म्हाइको ने यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज, धारवाड़, तमिलनाडु एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, कोयंबतूर और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ वेजिटेबल रिसर्च, वाराणसी के साथ मिलकर विकसित किया था। लेकिन उसके कमर्शियल उत्पादन पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त टेक्निकल एक्सपर्ट कमेटी (टीईसी) ने 10 साल के लिए मोरेटोरियम (स्थगन) लगा दिया था जो अभी तक जारी है। कुछ समय पहले कृषि मंत्री ने संसद में बताया था कि घरेलू स्तर पर विकसित बीटी बैंगन किस्म के फील्ड ट्रायल को 2022-23 सीजन के लिए मंजूरी दी गई है। लेकिन इसके लिए राज्यों से अनापत्ति प्रमाण पत्र लेने की शर्त लगाई गई है।
सरकार ने मार्च में जीनोम एडिटेड प्लांट की एसडीएन1 और एसडीएन2 श्रेणी के जरिये नई प्रजातियों को विकसित करने की मंजूरी दी थी। उसके लिए मई में गाइडलाइन आ गई थी और सितंबर में इस संबंध में एसओपी भी जारी कर दिया गया। सरकार के इन कदमों से संकेत मिल रहा है कि सरकार जीएम फसलों की किस्मों को मंजूरी देने के मामले में अपना रवैया बदल रही है। अगर जीईएसी द्वारा एचटीबीटी कॉटन और जीएम सरसों की किस्मों के कमर्शियल रिलीज को हरी झंडी मिलती है तो यह देश में जीएम फसलों की खेती के लिए 20 साल बाद मिलने वाली मंजूरी होगी।