सतत विकास के लिए नदियों के प्रवाह को बरकरार रखना होगा
भारत ही नहीं विश्व की तमाम बारहमासी बहने वाली नदिया अब सूखने लगी है इनमे बहाव कम होने लगा है। एक अनुमान के मुताबिक जल की हमारी 65 फीसदी जरूरत नदियों से पूरी होती है। इसके अलावा नदियों और तालाबों का जल भी प्रकृति के जल चक्र को व्यवस्थित रखने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
किसी भी समाज की प्रगति जल को जमीन पर नदियों, तालाबों, और कुंओ के माध्यम से मिले स्थान से मापी जा सकती है। यही कारण है कि जल को सहजने के लिए बनायीं गयी संरचनाओं एवं मुक्त बहाव (अविरल और निर्मल ) वाली नदियों का आर्थिक, सामाजिक और धार्मिक रूप से बहुत महत्व है। भारतबर्ष में जल के स्रोत प्राकृतिक व् कृत्रिम करने के कारण सूखने लगे है।
बहुत पहले जल के गुणों के बारे में विक्टर शाबर्गर ने ऊर्जा युक्त अर्थात जीवित जल को परिभाषित किया एवं बताया कि 4 डिग्री सेंटीग्रेड पर पानी अपने सबसे बड़े घनत्व तक पहुँच जाता है, और हल्का हो जाता है। शाबर्गर ने जीवन-निर्माण भंवर-प्रत्यारोपण सिद्धांत विकसित किया। उनके सिद्धांत के अनुसार, झरने का पानी जीवन और स्वास्थ्य के लिए सबसे अच्छा विकल्प है, क्योंकि यह जल के लिए उचित वातावरण बनता है। उन्होंने भूमिगत जल और बारिश के सम्बन्धो को लेकर बताया कि भूजल, वर्षा से अधिक तेज़ी से फैलता है, जिससे पृथ्वी से हवा में एक नकारात्मक तापमान प्रवणता पैदा होती है। इसलिए, बारिश जमीन में अवशोषित नहीं हो पाती है और जल सतह से बहकर चला जाता है। जब पेड़ और पौधे मिट्टी को ढंकते हैं और ओवरहीटिंग से बचाते हैं, तो मिटटी ठंडी रहती है जिससे एक सकारात्मक तापमान ढाल बनता है। यही वजह है कि बारिश मिट्टी में फैल जाती है और बारिश का जल मिटटी के अंदर समा जाता है। इस प्रकार वर्षा जल पृथ्वी के माध्यम से आत्मसात करते हुए, स्प्रिंग्स पर परिपक्व और प्रकट होते हुए पूर्ण चक्र को प्राप्त करता है। इसके बाद कई वैज्ञानिक अध्ध्यनों से ये स्पष्ट हो चुका है कि जल में जीवन है, इसकी अपनी याददाश्त होती है।
जल के बारे में इतना कुछ जानने के बाद भी भारत ही नहीं विश्व की तमाम बारहमासी बहने वाली नदिया अब सूखने लगी है इनमे बहाव कम होने लगा है। एक अनुमान के मुताबिक जल की हमारी 65 फीसदी जरूरत नदियों से पूरी होती है। इसके अलावा नदियों और तालाबों का जल भी प्रकृति के जल चक्र को व्यवस्थित रखने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके लिए भूजल का समृद्ध होना बहुत जरूरी होता है । क्योंकि भूजल का सीधा सम्बन्ध नदी के जल बहाव से होता है। एक नए अध्ययन में पाया गया है कि पिछले तीन दशकों में, भारत में गंगा नदी में भूजल के इनपुट में गर्मी के दौरान 50 प्रतिशत की गिरावट आई है। खासतौर पर गर्मियों के महीनो के दौरान नदी का पानी कम हो गया है। यही हाल भारतबर्ष कि सभी नदियों का है। इसका एक कारण यह भी है कि नदी जल बजट के बिना नदी के जल का सिंचाई, पीने के लिए उपयोग व् रेत खनन आदि के कारण मन्दाकिनी का बहाव प्रभावित हुआ है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से अगर देखा जाय तो मुक्त-बहने वाली नदियों को एक सूचकांक (कनेक्टिविटी स्टेटस इंडेक्स ) द्वारा चार आयामों में कनेक्टिविटी के स्तर को मापने के द्वारा पहचाना जाता है:
१. पार्श्व, ताकि मछली और अन्य प्रजातियाँ कैम ऊपर की ओर बढ़ें, जबकि पानी, पोषक तत्व और तलछट नीचे की ओर जाएँ
२. अनुदैर्ध्य,ताकि नदी अपने बाढ़ के मैदान में आगे बढ़ सके, अन्य निवास स्थान में मछली को महत्वपूर्ण पोषक तत्व पहुंचा सके और पोषक तत्वों को नदी में वापस ला सके
३. ऊर्ध्वाधर (भूजल के साथ कनेक्टिविटी), ताकि नदी बह सके और भूजल और जलवाही स्तर (अक्यूफर्स ) के साथ संपर्क कर सके
- अस्थायी (समय के साथ प्रवाह पैटर्न पर आधारित कनेक्टिविटी), ताकि समय के साथ नदी जल द्वारा प्रदान की जाने वाली महत्वपूर्ण पारिस्थितिक कार्यो में बाधा न हो। नदियों व् अन्य जल स्रोतों का स्वस्थ रहना कितना महत्वपूर्ण है वो एक अध्धयन बताता है कि नदियाँ और झीलें पृथ्वी की सतह के 1% से कम भाग को को कवर करते हैं, लेकिन 17,000 मछली की प्रजातियां सभी कशेरुकियों की एक चौथाई का प्रतिनिधित्व करती हैं, साथ ही साथ लाखों लोगों के लिए भोजन, रोज़गार व् स्वच्छ पानी प्रदान करती हैं।नदी के जल प्रवाह के घटने से भविष्य में खाद्य उत्पादन में संभावित गिरावट के साथ, अन्य तमाम पर्यावरणीय, सामाजिक और आर्थिक समस्याएं जन्म ले सकती है। इतना ही नहीं विकास के पैमाने संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों द्वारा निर्धारित किये गए है उनको भी हम पूरा करने में असमर्थ होंगे।
विश्व जल दिवस पानी का महत्व बताता और वैश्विक जल संकट के बारे में जागरूकता बढ़ाता है, और 2030 तक सभी के लिए सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) 6: "पानी और स्वच्छता" का समर्थन भी करता है। विश्व जल दिवस 2021 का विषय जल का मूल्यांकन है। पानी का मूल्य उसकी कीमत से बहुत अधिक है - हमारे घरों, भोजन, संस्कृति, स्वास्थ्य, शिक्षा, अर्थशास्त्र और हमारे प्राकृतिक वातावरण की अखंडता के लिए पानी का बहुत ज्यादा महत्व है। राज और समाज को साथ मिलकर कुछ ठोस कदम उठाने होंगे। तभी हम सब इस बर्ष की थीम "पानी का मूल्यांकन" करने में सफल होंगे। वर्ना नदी के नाम पर प्रोजेक्ट लाने के लिए चिल्लाने और शंख फूकने से काम नहीं होगा। मतलब साफ़ है कि जिस तरीके से हम जीवन यापन कर रहे है, अगर इसमें सुधार नहीं लाया गया तो निश्चित है कि हमारी आने वाली पीढ़ियों को सूखी हुयी नदिया व् मरते हुए तमाम जल स्रोत तो दिख जायेगे लेकिन पानी की लाश कही नहीं मिलेगी। यानी यही कहती मिलेगी कि अब तो पानी की लाश भी नहीं मिलती है।
(गुंजन मिश्रा पर्यावरणविद हैं और बुंदेलखंड में काम करते हैं, लेख में व्यक्त विचार उनके निजी हैं)