हूती हमलों से बढ़ सकते हैं उर्वरकों के दाम, डीएपी की कीमत 630 डॉलर तक पहुंची
उर्वरकों की कीमतों के मामले में भारत के लिए बहुत अच्छी खबर नहीं है। लाल सागर में हूती विद्रोहियों के हमलों के चलते जहाजों की आवाजाही प्रभावित हो रही है। इस कारण उर्वरकों के दाम बढ़ सकते हैं। प्रमुख उर्वरक डाई अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) की कीमतें 630 डॉलर प्रति टन तक पहुंच गई हैं। जबकि भारतीय कंपनियां डीएपी के लिए फिलहाल 595 डॉलर प्रति टन से अधिक दाम चुकाने को तैयार नहीं हैं। इसी माह के शुरू में एक भारतीय उर्वरक कंपनी ने 595 डॉलर प्रति टन पर आयात सौदा किया था।
उर्वरक उद्योग के सूत्रों ने रूरल वॉयस को बताया कि वैश्विक बाजार में डीएपी की कीमतें 600 से 630 डॉलर प्रति टन चल रही हैं। यूरोप के लिए कीमतें इससे भी अधिक हैं। पिछले तीन माह में भारत के लिए डीएपी के सौदे 595 डॉलर प्रति टन के आसपास ही हुए हैं। उद्योग सूत्रों का कहना है कि सरकार ने डीएपी के आयात के लिए 595 डॉलर की कीमत सीमा तय की हुई है। कंपनियों के इससे अधिक कीमत सौदे नहीं करने की सलाह दी गई है। वहीं लाल सागर में जो स्थिति बन रही है उसके चलते कीमतों में बढ़ोतरी होने की आशंका है। जहाजों पर हूती विद्रोहियों के हमले के चलते प्रमुख फर्टिलाइजर कंपनी ओसीपी और रूस से आयात प्रभावित हो सकता है।
जहां तक सरकार द्वारा डीएपी पर सब्सिडी दरों की बात है तो उद्योग सूत्रों का कहना है कि मौजूदा सब्सिडी दरों पर उर्वरक कंपनियों को 7-8 हजार रुपये प्रति टन का नुकसान उठाना पड़ रहा है। महंगे आयात के चलते अगर उर्वरकों के दाम बढ़ते हैं तो सरकार को सब्सिडी बढ़ाने पर विचार करना पड़ सकता है।
दिसंबर के अंत तक देश में डीएपी का करीब 18 लाख टन का स्टॉक था। फिलहाल डीएपी की बहुत अधिक मांग भी नहीं है तो ऐसे में उपलब्धता बेहतर स्थिति में है। डीएपी की मांग अब अप्रैल के बाद खरीफ फसलों के लिए ही बढ़ेगी। सरकार विनियंत्रित उर्वरकों (डिकंट्रोल फर्टिलाइजर्स) के लिए खरीफ सीजन की अप्रैल में और रबी सीजन की अक्तूबर में न्यूट्रिएंट आधारित सब्सिडी (एनबीएस) की दरें अधिसूचित करती है। जिसमें नाइट्रोजन (एन), फॉस्फोरस (पी), पोटाश (के) और सल्फर (एस) के लिए सब्सिडी दरें तय की जाती हैं। यूरिया के लिए सब्सिडी की अलग नीति है।
वैश्विक बाजार में यूरिया की कीमतें 318 डॉलर प्रति टन के आसपास चल रही हैं। पिछले दिनों भारत के पूर्वी तट के लिए 329.40 डॉलर प्रति टन और पश्चिमी तट के लिए 316.80 डॉलर प्रति टन की दर से यूरिया के सौदे हुए हैं। उर्वरकों के लिए प्रमुख कच्चे माल अमोनिया की कीमतें स्थिर बनी हुई हैं।
हाल ही में केंद्रीय उर्वरक मंत्री ने कहा था कि चालू वित्त वर्ष (2023-24) में उर्वरक सब्सिडी 1.7 से 1.8 लाख करोड़ रुपये रहने का अनुमान है। जबकि पिछले साल उर्वरक सब्सिडी 2.56 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गई थी। उर्वरक सब्सिडी में यह कमी वैश्विक बाजार में उर्वरकों की कीमतों में आई कमी के चलते आ सकती है।
भारत सालाना करीब 100 लाख टन डीएपी और करीब 75 लाख टन यूरिया आयात करता है। उर्वरकों का अधिकांश आयात रूस, सऊदी अरब, जार्डन और चीन से होता है। ऐसे में खाड़ी देशों में ताजा हालात उर्वरकों की कीमतों के मामले में भारत के लिए मुश्किलें पैदा कर सकते हैं। इसकी सीधा असर उर्वरक सब्सिडी पर पड़ेगा। क्योंकि चुनावी साल में सरकार किसानों के लिए उर्वरकों की कीमतों में भारी बढ़ोतरी का राजनीतिक जोखिम लेने से बचेगी। जल्द ही सरकार आगामी वित्त वर्ष (2024-25) का अंतरिम बजट पेश करेगी। देखना होगा कि सरकार उर्वरक सब्सिडी के लिए बजट में क्या रुख अपनाती है।