रूरल वॉयस विशेषः जानिए किसानों के लिए कैसे फायदेमंद हो रही संरक्षित खेती तकनीक
इस तकनीक से परम्परागत खेती की तुलना में 5 गुना ज्यादा उत्पादन लिया जा सकता हैं। खीरा और शिमला मिर्च जैसी कुछ फसलों का उत्पादन तो 10 गुना तक बढ़ जाता है
परंपरागत खेती को छोड़कर आज देश के अनेक किसान नई कृषि तकनीक अपनाकर खेती से मोटा मुनाफा कमा रहे हैं। समय के साथ खेती के तौर तरीकों में नए-नए प्रयोग और परिवर्तन हो रहे हैं, जिन्हें अपनाकर खेती करना बहुत लाभकारी साबित हो रहा है। इन्हीं आधुनिक तकनीकों में एक है संरक्षित खेती यानि प्रोटेक्टेड कल्टीवेशन। इस तकनीक से की जा रही महंगी सब्जियों और फूलों की खेती किसानों के लिए बेहद लाभकारी हो रही है। सेंटर फॉर प्रोटेक्टेड कल्टीवेशन टेक्नीक आईआरएआई पूसा के प्रिंसिपल साइंटिस्ट डॉ. अवनि सिंह ने रूरल वॉयस के एग्रीटेक शो में प्रोटेक्टेड कल्टीवेशन के बारे में बताया। इस शो को आप ऊपर दिए गए वीडियो लिंक पर क्लिक करके देख सकते हैं।
डॉ अवनि सिंह ने बताया कि प्रोटेक्टेड कल्टीवेशन के तहत पॉलीहाउस, शेड नेट हाउस, लो टनल, ग्रीन हाउस में कन्ट्रोल्ड टेम्परेचर में खेती की जाती है और सिंचाई के लिए ड्रिप लगाया जाता है। इससे पानी को फिल्टर करके पौधों तक पहुंचाया जाता है। ड्रिप से ही उर्वरक भी दिया जाता है। तापमान कंट्रोल करने के लिए स्प्रिंकलर और फॉगर लगाए जाते हैं। जरूरत की हिसाब से ऑफ-सीजन या बाजार की मांग के अनुसार फसलों से उत्पादन लिया जा सकता है। इस तकनीक के माध्यम से परम्परागत खेती की तुलना में 5 गुना ज्यादा उत्पादन लिया जा सकता हैं। उन्होंने कहा कि खीरा और शिमला मिर्च जैसी कुछ फसलों का उत्पादन 10 गुना तक बढ़ जाता है।
डॉ सिंह के अनुसार प्रोटेक्टेड कल्टीवेशन की संरचना उच्च गुणवत्ता वाली सब्जियों, फूलों और औषधीय फसलों के उत्पादन के लिए अनुकूल सूक्ष्म जलवायु स्थितियां प्रदान करती हैं। प्रोटेक्टेड कल्टीवेशन में प्रति एकड़ 200 से 250 क्विंटल टमाटर 150-200 क्विंटल चेरी टमाटर, 200-250 क्विंटल खीरा और 80 से 100 क्विंटल शिमला मिर्च का उत्पादन होता है।
डॉ सिंह ने कहा कि इस तकनीक से खेती करने से ऑफ सीजन में किसानों को बेहतर मूल्य मिल जाता है। कम उपजाऊ जमीन में भी अच्छी गुणवत्ता वाली सब्जियों का अधिक उत्पादन लिया जा सकता है। पानी की समस्या से किसान परेशान रहते हैं, लेकिन प्रोटेक्टेड कल्टीवेशन में कम पानी में भी सब्जियों का बेहतर उत्पादन लिया जा सकता है क्योंकि इसमे सूक्ष्म सिंचाई पद्धति का इस्तेमाल होता है।
डॉ सिंह ने बताया कि एक भूमि में साल भर में कई फसल उगा सकते हैं। नेचुरल हवादार पॉलीहाउस में पौध नर्सरी का आसानी से विकास होता है। प्रोटेक्टेड कल्टीवेशन में कीट रोगों से भी फसलों की रक्षा होती है। साथ ही बेहतर गुणवत्ता के साथ उत्पादकता बढ़ती है।
जिस एरिया में फसलें नहीं उगती हैं वहां भी प्रोटेक्टेड कल्टीवेशन के जरिए खेती की जा सकती है। यह तकनीक हवा, बारिश, बर्फ, पक्षियों से पौधों को बचाती है। यह उन्नत कृषि तकनीकों हाइड्रोपोनिक्स, एरोपोनिक्स, वर्टिकल खेती को बढ़ावा देता है। प्रोटेक्टेड कल्टीवेशन वाली संरचनाएं किसानों के लिए काफी लाभदायक हैं क्योकि संकर बीजों की कीमत बहुत ज्यादा होती है। इसके लिए जरूरी है कि प्रत्येक बीज अंकुरित हो। इसके लिए तापमान नियंत्रित रखने की जरूरत होती है।
डॉ सिंह ने कहा, प्रोटेक्टेड कल्टीवेशन की संरचनाओं के लिए केन्द्र सरकार की तरफ से लगभग 50 फीसदी तक अनुदान मिलता है। राज्य भी अपने हिसाब 20 फीसदी तक का अनुदान देते हैं। जिससे किसानों को 70 फीसदी तक की मदद मिल जाती है।
प्रोटेक्टेड कल्टीवेशन तकनीक से खेती करने वाले हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले के किसान अभिषेक गुप्ता ने बताया कि आज के वक्त में किसानों का जोत आकार घटता जा रहा है। समय की मांग है कि उत्पादकता और किसानों की आय बढ़ाई जाए। उन्होंने बताया कि हम रंगीन शिमला मिर्च की खेती करते हैं। हम 80 से 90 क्विंटल प्रति एकड़ तक पैदावार ले रहे हैं। बाहर के वातावरण में शिमला मिर्च की खेती करने पर 40 क्विंटल तक पैदावार ही मिल पाती है।
उन्होंने बताया कि आर्थिक रूप से कमजोर और छोटे किसानों के लिए छोटे आकार के प्रोटेक्टेड कल्टीवेशन की संरचनाएं काफी लाभप्रद हैं। इसको मझोले, छोटे और सीमांत किसान अपनाकर अपनी आय बढ़ा सकते हैं।
संरक्षित खेती करने के लिए हमेशा ऐसी फसलों का चुनाव करना चाहिए जिनकी बाजार में मांग अधिक हो और वे अच्छी कीमत पर बिक सकें। सब्जियों में आप फ्रेंचबीन, शिमला मिर्च, टमाटर, खीरा जैसी फ़सलें लगा सकते हैं। आप कार्नेशन, डच रोज, ग्लेडियोलस, लिली, एंथुरियम जैसे फूलों की खेती भी कर सकते हैं।