आज लखीमपुर की आठ सीटों पर भी मतदान, जानिए किस हाल में है हिंसा पीड़ित परिवार
लखीमपुर जिले में आठ विधान सभा सीटे हैं, 2017 में सभी सीटें भाजपा ने जीती थीं। इस बार किसान आंदोलन बड़ा मुद्दा है। लखीमपुर हिंसा के बाद एक समय यह किसान आंदोलन की धुरी बन गया था। इसलिए भाजपा को इस बार मुश्किल होने वाली है
चौखड़ा फार्म, पलिया, लखीमपुर खीरी से
बुधवार को उत्तर प्रदेश के नौ जिलों की 59 विधान सभा सीटों पर चौथे चरण का मतदान हो रहा है। इनमें लखीमपुर खीरी जिले की वह पलिया कलां विधान सभा सीट भी शामिल है, जहां 19 साल की उम्र में लखीमपुर खीरी हिंसा में जान गंवाने वाले लवप्रीत का घर है। पलिया कस्बे से थोड़ा पहले निघासन रोड से करीब तीन-चार किलोमीटर अंदर जाने पर है चौखड़ा फार्म। यहीं लवप्रीत का घर है। घर अभी अधूरा है। दिखने में वैसा ही जैसा दो-ढाई एकड़ वाले छोटे किसान का घर होता है। अब यहां बहुत कुछ बदल चुका है। लवप्रीत के पिता सतनाम सिंह, उसकी मां सतविंदर कौर और दो छोटी बहनों अमनदीप और गगनदीप अभी तक अपने बेटे और भाई को गंवा देने के गम से बाहर नहीं निकल पाए हैं।
केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे आशीष मिश्रा को हाई कोर्ट से जमानत मिलने से किसानों में भारी नाराजगी है, क्योंकि किसानों पर गाड़ी चढ़ाने के मामले में वह मुख्य अभियुक्त है। जबकि उस घटना के बाद मौके पर हुई हिंसा के चलते गिरफ्तार हुए चार किसान अब भी जेल में हैं। जमानत को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है।
तीन अक्तूबर, 2021 की लखीमपुर खीरी हिंसा ने किसान आंदोलन को झकझोर कर रख दिया था। 13 माह से अधिक चले इस आंदोलन में किसानों के खिलाफ हिंसा का यह सबसे भयावह मंजर था। देश और दुनिया ने स्कीन पर देखा कि किस तरह एक थार जीप किसानों को कुचलती हुई चली जाती है। उस घटना में चार किसानों की मौत हो गयी थी।
लवप्रीत के पिता सतनाम सिंह
लखीमपुर के तिकुनिया चौराहे के पास हुए इस हादसे में मारे गये लोगों में लवप्रीत सबसे कम उम्र का था। उसके पिता सतनाम सिंह बहुत ही छोटे किसान हैं। परिवार की दस एकड़ जमीन में उनके हिस्से ढाई-तीन एकड़ ही आती है। इससे उनकी आर्थिक स्थिति का भी अंदाजा लगाया जा सकता है। 47 साल के सतनाम अपनी उम्र से काफी बड़े दिखते हैं। जब यह लेखक उनके घर पहुंचा तो वहां कोई भीड़ या लोगों का जमावड़ा नहीं मिला। बस उनका परिवार है और कुछ पुलिस वाले, जो परिवार की सुरक्षा के लिए तैनात थे। यह कोई गांव नहीं है। यहां लोगों ने अपने खेतों में ही घर बना रखे हैं और आसपास के घरों से बहुत छोटा है उनका घर।
लवप्रीत की बात शुरू होते ही उसकी मां सतविंदर कौर की आंखों में आंसू आ जाते हैं। एकमात्र बेटे की मौत का गम उन्हें छोड़ नहीं रहा है। यही हाल दोनों बहनों का है। बहुत कम बात करने वाली दोनों बहने अभी ग्रेजुएशन में हैं और निघासन के एक कॉलेज से बीए कर रही हैं। सतनाम कहते हैं कि आगे की पढ़ाई के लिए लवप्रीत आस्ट्रेलिया जाना चाहता था और उसी की तैयारी कर रहा था। लेकिन अब परिवार और लवप्रीत का सपना अधूरा रह गया है। आनलाइन गेम और इंटरनेट पर काफी बेहतर कर रहा था। खुद के खर्च और परिवार के लिए भी वह कुछ पैसा कमाने लगा था।
सरकार की घोषणाओं के बारे में बात करने पर सतनाम सिंह कहते हैं कि मुआवजा मिल गया है। उत्तर प्रदेश सरकार से 45 लाख रुपये का मुआवजा मिला है। कांग्रेस की पंजाब सरकार और छत्तीसगढ़ सरकारों ने 50-50 लाख रुपये का मुआवजा दे दिया है। किसानों और उत्तर प्रदेश सरकार के बीच हुए समझौते में मुआवजे के साथ परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने पर भी सहमति हुई थी। हालांकि नौकरी अभी नहीं मिली। उस पर सतनाम सिंह कहते हैं कि पिछले दिनों एसडीएम अंबरीश कुमार आये थे। उन्होंने संपूर्णानगर स्थित सरकारी चीनी मिल में नौकरी की पेशकश की थी। हमने कहा कि चीनी मिल में अधिकांश पुरुष नौकरी करते हैं, और फिर घर से दूर बेटी को कैसे भेज सकते हैं।
पलिया से रोमी साहनी भाजपा के विधायक हैं और कल होने वाले मतदान में भी वही भाजपा के प्रत्याशी हैं। इलाके में रोमी साहनी की छवि एक दबंग नेता की बताई जाती है। वह एक स्थानीय सिंधी बिजनेसमैन हैं। उनके सामने समाजवादी पार्टी के प्रीतेंद्रपाल सिंह उर्फ कक्कूभाई चुनाव लड़ रहे हैं। यहां के किसानों में बहुसंख्यक सिख परिवार हैं लेकिन कुल आबादी में उनकी हिस्सेदारी बहुत अधिक नहीं है। इसलिए वे अकेले चुनाव नतीजा तय नहीं कर सकते।
पलिया के मकनपुर फार्म के बलजीत सिंह बल्ली बताते हैं कि इस सीट पर 18 हजार से ज्यादा सिख मतदाता और करीब 40 हजार मुसलमान वोट हैं। बाकी मत दूसरी जातियों के हैं। तीन अक्तूबर, 2021 को किसानों के उपर गाड़ी चढ़ने की घटना के समय बलजीत मौके पर मौजूद थे और बाल-बाल बचने की बात कहते हैं। बलजीत सिंह लवप्रीत के परिवार के करीबी भी हैं। उनका कहना है कि अभी तक सरकार ने लोगों को सुरक्षा के लिए लाइसेंस देने के वादे पर अमल नहीं किया है।
लखीमपुर जिले में आठ विधान सभा सीटे हैं और 2017 के चुनाव में सभी सीटें भाजपा ने जीती थीं। लेकिन इस बार किसान आंदोलन यहां बड़ा मुद्दा है। लखीमपुर हिंसा के बाद एक समय यह किसान आंदोलन की धुरी बन गया था। इसलिए भाजपा को इस बार मुश्किल होने वाली है। निघासन में आपकी बैठक नाम से रेस्टोरेंट चलाने वाले अश्विनी गुप्ता भी मानते हैं कि भाजपा के लिए इस बार राह आसान नहीं है। भारतीय किसान यूनियन के लखीमपुर खीरी जिले के अध्यक्ष दिलबाग सिंह भी कहते हैं कि भाजपा को यहां भारी नुकसान उठाना पड़ेगा। केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे आशीष मिश्रा को हाई कोर्ट से जमानत मिलने से किसानों में भारी नाराजगी है क्योंकि किसानों गाड़ी चढ़ाने के मामले में वह मुख्य अभियुक्त है। जबकि किसानों के गाड़ी से कुचले जाने के बाद मौके पर हुई हिंसा के चलते हुई मौतों के मामले में गिरफ्तार हुए चार किसान अभी भी जेल में हैं। यह स्थिति किसानों को असहज कर रही है।