बजट से उम्मीदें: पैदावार बढ़ाने के लिए कृषि शोध में निवेश बढ़ाना जरूरी
फिलहाल एग्रीकल्चर रिसर्च इन्वेस्टमेंट एग्रीकल्चर जीडीपी का 0.3-0.4 फीसदी ही है। इसे बढ़ाकर 1 फीसदी करने की मांग पिछले 20 साल से की जा रही है। प्रत्येक नीति में इसे शामिल किया जाता है और इस पर चर्चा होती है मगर अभी तक यह मांग पूरी नहीं हुई है। इस पर ध्यान देने की आवश्यकता है ताकि हम टेक्नोलॉजी का फायदा उठा सकें और एग्रीकल्चर ग्लोबलाइजेशन में विकसित देशों के साथ खड़े रह सकें।
वित्त वर्ष 2023-24 का बजट पेश होने में अब एक दिन ही बाकी रह गया है। कृषि क्षेत्र ने इस बार के बजट से काफी उम्मीदें लगा रखी हैं। ग्लोबल खाद्य सुरक्षा संकट को देखते हुए भारत के लिए यह जरूरी हो गया है कि पैदावार बढ़ाने पर विशेष ध्यान दिया जाए। इसके लिए एग्रीकल्चर रिसर्च में निवेश बढ़ाना जरूरी है। कृषि विशेषज्ञ भी मानते हैं कि फसलों की नई-नई प्रजातियां विकसित कर और टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से ही पैदावार में बढ़ोतरी संभव है।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के पूर्व महानिदेशक, इंडियन साइंस कांग्रेस के चेयरमैन रहे और मौजूदा समय में एग्रीकल्चर साइंसेज एडवांसमेंट के लिए काम करने वाले संगठन तास के चेयरमैन पद्मभूषण डॉ. आर एस परोदा का कहना है कि फिलहाल एग्रीकल्चर रिसर्च इन्वेस्टमेंट एग्रीकल्चर जीडीपी का 0.3-0.4 फीसदी ही है। इसे बढ़ाकर 1 फीसदी करने की मांग पिछले 20 साल से की जा रही है। प्रत्येक नीति में इसे शामिल किया जाता है और इस पर चर्चा होती है मगर अभी तक यह मांग पूरी नहीं हुई है। इस पर ध्यान देने की आवश्यकता है ताकि हम टेक्नोलॉजी का फायदा उठा सकें और एग्रीकल्चर ग्लोबलाइजेशन में विकसित देशों के साथ खड़े रह सकें।
डॉ. परोदा के मुताबिक, हालांकि एग्रीकल्चर रिसर्च में इन्वेस्टमेंट किसी और इन्वेस्टमेंट के मुकाबले ज्यादा रहा है। इसी की बदौलत हरित क्रांति आ पाई और पैदावार में 10 से 15 गुना तक की बढ़ोतरी हुई है। मगर जिस रफ्तार से हमारी आबादी बढ़ रही है और ग्लोबल स्तर पर हम जिस मुकाम पर खड़े हैं उसे देखते हुए पैदावार और बढ़ाना जरूरी है। पिछले 10 सालों में एग्रीकल्चर रिसर्च में इन्वेस्टमेंट 8,500 करोड़ रुपये से आगे नहीं बढ़ पाया है। यह चिंता की बात है। अगर हम विकसित देशों की बात करें तो अमेरिका इस मामले में हमसे 10 गुना आगे है, जबकि ऑस्ट्रेलिया छह गुना आगे है। एग्रीकल्चर रिसर्च इन्वेस्टमेंट में चीन भारत से दोगुना आगे है। उन्होंने कहा कि भारतीय कृषि क्षेत्र के सामने समस्याएं कम नहीं हैं, फिर भी हमारा सिस्टम अब काफी सुदृढ़ हो चुका है। ऐसे में शोध एवं विकास पर ध्यान केंद्रित कर भविष्य के लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है।
देश के कृषि क्षेत्र को आगे ले जाने में डॉ. परोदा का योगदान पांच दशक से भी ज्यादा का है। दुनियाभर के कृषि वैज्ञानिकों में उनका नाम महत्वपूर्ण है।