हरियाणा में भाजपा के सामने हर सीट पर कांटे की टक्कर
किसानों के आक्रोश, अग्निवीर योजना, स्थानीय मुद्दों और जातिगत समीकरणों के चलते इस बार लगभग हर सीट पर भाजपा के सामने कांटे का मुकाबला है।
देश के उत्तरी राज्यों में कांग्रेस अगर कहीं सबसे मजबूत लड़ रही है तो वह हरियाणा है। राज्य की दस में से जिन नौ सीटों पर कांग्रेस खुद चुनाव लड़ रही है जबकि एक सीट पर इंडिया गठबंधन के तहत आम आदमी पार्टी को समर्थन दिया है। 2019 के चुनाव में हरियाणा की सभी 10 सीटों पर भाजपा ने जीत हासिल की थी। लेकिन इस बार किसानों के आक्रोश, अग्निवीर योजना, स्थानीय मुद्दों और जातिगत समीकरणों के चलते इस बार लगभग हर सीट पर भाजपा के सामने कांटे का मुकाबला है।
कांग्रेस की ओर से चुनाव अभियान की कमान पूर्व मुख्य मंत्री और नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने संभाल रखी है। इस बार वे खुद चुनाव नहीं लड़ रहे हैं। उनका पूरा जोर दीपेंदर हुड्डा और कांग्रेस के बाकी उम्मीदवारों को चुनाव जीतवाने पर है। कांग्रेस ने इस बार भूपेंद्र सिंह हुड्डा को पूरी छूट दी है। टिकट बंटवारे से लेकर कांग्रेस की चुनावी रणनीति पर हुड्डा की छाप दिख रही है। जबकि भाजपा ने चुनाव से ठीक पहले मुख्यमंत्री बदलकर वोटरो की नाराजगी को कम करने का प्रयास किया है।
कृषि कानूनों के खिलाफ 2020-21 के किसान आंदोलन से लेकर एमएसपी की कानूनी गारंटी को लेकर फरवरी में शुरू हुए किसान आंदोलन 2.0 तक भाजपा के खिलाफ किसानों की नाराजगी बढ़ती गई है। यही वजह है कि भाजपा और जेजेपी के उम्मीदवारों को गांवों में किसानों के विरोध का सामना करना पड़ रहा है। यह भाजपा के लिए बड़ी चुनौती है। बड़ी तादाद में फौज में शामिल होने वाले हरियाणा के लोगों में अग्निवीर योजना को लेकर नाराजगी भी चुनाव में असर डाल सकती है।
किसानों की नाराजगी को देखते हुए ही भाजपा ने मनोहर लाल खट्टर को सीएम पद से हटाकर उनकी जगह नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनाया जो एक ओबीसी कृषक जाति से आते हैं। दूसरी तरफ भाजपा की कोशिश जाट मतों में बिखराव की है, जिसके लिए जेजेपी से गठबंधन तोड़कर अलग चुनाव लड़ रही है।
उधर, कांग्रेस की कोशिश है कि चुनाव को किसी भी तरह जाट बनाम गैर-जाट ना बनने दिया जाए। इसके लिए कांग्रेस ने सिर्फ दो जाट उम्मीदवार दीपेंदर सिंह हुड्डा और जयप्रकाश को टिकट दिया। जबकि दो टिकट पंजाबी, दो अनुसूचित जाति, एक यादव, एक गुर्जर और ब्राह्मण उम्मीदवार को मैदान में उतारा है। जातिगत समीकरण साधने के लिए कांग्रेस ने नौ में से आठ सीटों पर अपने पिछली बार के उम्मीदवार बदल दिए हैं।
लोकसभा चुनाव से पहले तीन निर्दलीय विधायकों ने नायब सैनी सरकार से समर्थन वापस लिया और कांग्रेस के पाले में आए, उससे कांग्रेस का मनोबल बढ़ा है जबकि नायब सैनी सरकार के भविष्य को लेकर संशय पैदा हो गया है। इसका फायदा कांग्रेस को मिल सकता है।
हाल ही में रूरल वॉयस के साथ बात करते हुए कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता कहा कि हमने अपना चुनावी अभियान पांच सीटों पर कड़े मुकाबले से शुरू किया था लेकिन अब हम सभी सीटों पर कांटे की टक्कर की उम्मीद कर रहे हैं। कांग्रेस ने जिस तरह टिकटों का बंटवारा किया है उसमें कोशिश की है कि चुनाव को जाट बनाम गैर जाट के ध्रुवीकरण से बचाने की कोशिश की है। जबकि भाजपा का दारोमदार परंपरागत शहरी वोट बैंक के अलावा यादव, गुर्जर और सैनी आदि ओबीसी जातियों के समर्थन पर टिका है। भाजपा ने इस बार अपने 10 में से छह सांसदों को टिकट नहीं दिया है।
रोहतक, सोनीपत, सिरसा, भिवानी और अंबाला में कांग्रेस उम्मीदवार मजबूत स्थिति में है। वहीं गुरुग्राम में भाजपा उम्मीदवार राव इंद्रजीत सिंह मजबूत हैं। लेकिन अगर वहां दलित, मुसलमान और जाट वोट कांग्रेस के साथ एकजुट होता है तो कांग्रेस उम्मीदवार राज बब्बर मुश्किल पैदा कर सकते हैं। गुरुग्राम में पंजाबी वोट भी काफी है और राज बब्बर उन्हें साधने की कोशिश में लगे हैं।
कुरुक्षेत्र में इंडिया गठबंधन के तहत आम आदमी पार्टी (आप) के सुशील गुप्ता उम्मीदवार हैं जबकि भाजपा ने कांग्रेस से आये नवीन जिंदल को टिकट दिया है। कुरुक्षेत्र से इनेलो के नेता अभय सिंह चौटाला भी मैदान में हैं। चौटाला को जाट और किसान मतों का भरोसा है। भारतीय किसान यूनियन (चढ़ूनी) उनके साथ खड़ी है और भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत भी अभय चौटाला के पक्ष में बयान दे चुके हैं। इस सीट पर ग्रामीण मतदाता अधिक संख्या में हैं। ऐसे में मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है।
हिसार सीट पर कांग्रेस के जयप्रकाश, जेजेपी की नैना चौटाला और भाजपा के रंजीत चौटाला के बीच मुकाबला है जिसमें मुख्य मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच ही होना है। फरीदाबाद सीट पर कांग्रेस के महेंद्र प्रताप सिंह से भाजपा के कृष्ण पाल गुर्जर को कड़ी की टक्कर मिल रही है।
करनाल में पूर्व मुख्य मंत्री मनोहर लाल खट्टर के सामने कांग्रेस ने एक युवा उम्मीदवार दिव्यांशु बुद्धिराजा को टिकट दिया है। करनाल में रोड समुदाय के वीरेंद्र मराठा ने चुनाव को पेचीदा बना दिया है। मराठा एनसीपी पार्टी के सिंबल पर चुनाव लड़ रहे हैं और वे भाजपा के मतों में सेंधमारी कर सकते हैं।
हरियाणा की इंडस्ट्रियल बेल्ट में राज्य से बाहर के मतदाताओं की भी अच्छी खासी तादाद है। इन्हें भाजपा का वोट बैंक माना जाता है। लेकिन हरियाणा की नौकरियों में स्थानीय लोगों को प्राथमिकता देने की नीति से बाहरी मतदाताओं में काफी नाराजगी है। यह फैक्टर भी भाजपा के खिलाफ जा सकता है। जबकि भाजपा मोदी फैक्टर के बूते बाकी सारे मुद्दों को निष्प्रभावी करना चाहती है।
हरियाणा की राजनीति को समझने वाले लोगों का कहना है कि इस बार भाजपा और कांग्रेस के बीच मुकाबला बराबरी पर भी छूट सकता है हालांकि हरियाणा के मतदाता एक तरफा फैसला देते रहे हैं। यही वजह है कि भाजपा ने 2019 में सभी 10 सीटें जीती थी। लेकिन 2024 में हवा कुछ बदली-बदली सी दिख रही है।