उत्तर प्रदेश में पहले चरण के मतदान में भाजपा और सपा-रालोद गठबंधन के बीच सीधा मुकाबला
पिछले तीन चुनावों में पहले चरण का मतदान इस इलाके में ही हुआ था और वह भाजपा के लिए फायदेमंद रहा था। लेकिन इस बार की परिस्थितियां भाजपा के लिए मुश्किलें खड़ी करती दिख रही हैं। किसान आंदोलन और जाट-मुस्लिम समीकरण के साथ आने के अलावा बेरोजगारी ने युवाओं को इस चुनाव के केंद्र में ला दिया है
बागपत, बड़ौत और शामली से
उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव के पहले चरण में पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 58 सीटों के लिए आज मतदान हो रहा है। चुनिंदा सीटों को छोड़ दें तो अधिकांश सीटों पर भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय लोक दल-समाजवादी पार्टी गठबंधन के बीच सीधा मुकाबला है। किसान आंदोलन और जाट-मुस्लिम समीकरण के साथ आने के अलावा बेरोजगारी ऐसा बड़ा मुद्दा है जिसने युवाओं को इस चुनाव के केंद्र में ला दिया है। पिछले तीन चुनावों 2014 के लोक सभा चुनाव, 2017 के विधान सभा चुनाव और 2019 के लोक सभा चुनावों में पहले चरण का मतदान भी इस इलाके में ही हुआ था और वह भाजपा के लिए फायदेमंद रहा था। लेकिन इस बार की परिस्थितियां भाजपा के लिए मुश्किलें खड़ी करती दिख रही हैं। बागपत, गाजियाबाद, मेरठ, शामली, हापुड़ और मुजफ्फरनगर जिलों की विधान सभा सीटों पर बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) चुनाव लड़ती नहीं दिख रही है। ऐसे में मुकाबला भाजपा और रालोद-सपा गठबंधन के बीच ही दिख रहा है।
बागपत में जूते की दुकान चलाने वाले सुनील जैन कहते हैं कि इस सीट पर रालोद प्रत्याशी अहमद हमीद और भाजपा प्रत्याशी योगेश धामा के बीच सीधा मुकाबला है। वह नहीं जानते कि यहां बसपा से कौन चुनाव लड़ रहा है। ऑनलाइन रिटेल कंपनियों और जूते पर जीएसटी दरों में बढ़ोतरी के चलते कमजोर पड़ते कारोबार से परेशान सुनील जैन कहते हैं कि कोरोना के बाद से कारोबार पटरी पर नहीं आ रहा है। महंगाई एक बड़ा मुद्दा है। किसान आंदोलन का असर इस चुनाव पर वह देखते हैं। साथ ही उनका कहना है एक बेटा है जो कामकाज की उम्र का हो चुका है। नौकरी नहीं मिली इसलिए उसने इसी दुकान का काम देखना शुरू कर दिया है। भाजपा समर्थक जैन बताते हैं कि इस सीट पर जाट मत चुनाव तय करेंगे। अगर योगेश धामा अधिक जाट वोट ले गये तो अहमद हमीद के लिए मुश्किल हो सकती है।
इससे थोड़ा आगे बड़ौत सीट है। यहां मौजूदा भाजपा विधायक कृष्ण पाल मलिक अपनी ही पार्टी के लोगों की बेरुखी से परेशान हैं। हालांकि वह आश्वस्त हैं कि चुनाव जीत रहे हैं। लेकिन बड़ौत में रालोद कार्यालय का माहौल बहुत आशावादी है। वहां विक्रम सिंह आर्य समझाते हैं कि 80 हजार जाट वोट और 55 हजार मुस्लिम वोट से नतीजा हमारे पक्ष में होगा। उनका दावा है कि बसपा का दलित वोट भी हमारे पास आ रहा है। वैसे बसपा वोटों के लिए भाजपा और रालोद-सपा गठबंधन दोनों अपने अपने-अपने दावे करते हुए पश्चिमी उत्तर प्रदेश दिख जाते हैं। यहां से थोड़ा आगे बावली गांव में जिस तरह रालोद प्रत्याशी का सैकड़ों लोगों का काफिला चलता दिखता है वह चुनाव के माहौल को काफी हद तक साफ करता है।
इससे आगे कैराना, शामली, थानाभवन, बुढ़ाना, चरथावल, मुजफ्फरनगर, पुरकाजी, मीरापुर, खतौली, सरधना, सिवालखास, मेरठ दक्षिण, मेरठ शहर, किठौर, मोदीनगर, मुरादनगर, हापुड़, धौलाना और लोनी समेत तमाम सीटों पर सीधा मुकाबला गठबंधन और भाजपा के बीच साफ दिख जाता है। वोटरों के बीच किसी तरह का असमंजस भी नहीं है।
मसलन कैराना सीट के आमवाली गांव के नसीम कहते हैं बच्चों को रोजगार नहीं मिल रहा है। वहीं किसान ओमवीर कहते हैं कि किसानों ने 13 महीने दिल्ली में बिताये जो हमें वोट डालते वक्त याद रहेगा। हालांकि वह कहते हैं कि बिजली तो बेहतर आ रही है और अब खेत में पानी देने के लिए रात में नहीं जागना पड़ता, लेकिन वह इतनी महंगी है कि हमारे लिए इसके दाम चुकाना भारी पड़ रहा है। ओमवीर की शिकायत गन्ना मूल्य भुगतान में देरी और योगी सरकार में राज्य परामर्श मूल्य (एसएपी) में केवल 35 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी भी है।
सरधना के योगेश उपाध्याय कहते हैं कि बेरोजगारी हमारे लिए बहुत बड़ी मुश्किल है। बैट्री रिक्शा चलाकर गुजारा करने वाले उपाध्याय कहते हैं कि कोरोना में खुद का और पत्नी का इलाज कराने में दो लाख रुपये से ज्यादा लगे, जिसके लिए कर्ज लिया था जो चुकाना मुश्किल हो रहा है। वे रिक्शा चलाते हैं और पत्नी चाय की दुकान चलाती हैं, कमाई फिर भी बहुत कम है। थानाभवन सीट में आने वाले गांव भैंसवाल के रहने वाले जिला पंचायत सदस्य उमेश पंवार का कहना है कि हमारी सीट से विधायक राज्य के गन्ना विकास मंत्री हैं, लेकिन हमारे यहां गन्ना भुगतान को लेकर स्थिति बदतर है।
महंगाई, बेरोजगारी और फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले अवारा पशु एक बड़ी समस्या है। किसान कहते हैं कि शाम को हम सभी को खेतों में जाना पड़ता है। यह मुद्दा पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में है।
चुनावों में दलित युवकों का एक बड़ा वर्ग बसपा के साथ न जाकर विपक्ष के साथ जा सकता है और उसकी वजह रोजगार की खराब होती स्थिति को माना जा रहा है। अधिकांश दलित अपनी पहचान जाहिर नहीं कर इस तरह की बातें करते हैं। यह बातें हर विधान सभा सीटों पर सुनने को मिलती हैं। असल में दलित, मुस्लिम, जाट और दूसरी जातियों के युवाओं को सरकार के खिलाफ नाराज करने का सबसे बड़ा काम बेरोजोगारी के मुद्दे ने किया है। इसका कोई ठोस जवाब भाजपा और सरकार के पास नहीं है। यह बात भी साफ होती है कि चुनावों के इस चरण में हिंदू-मुस्लिम के आधार पर मतों का बहुत बड़ा विभाजन होता नहीं दिखता है। मुस्लिम मतों में बंटवारे की संभावना भी बहुत कमजोर है।
हालांकि भाजपा नेताओं का दावा है कि कानून व्यवस्था की बेहतर स्थिति और लाभार्थियों को मिलने वाली सरकारी योजनाओं के फायदे के चलते दलित मतों का बड़ा हिस्सा भाजपा को मिलेगा। इसके चलते जाट-मुस्लिम गठबंधन का गणित गड़बड़ा जाएगा। बड़ी संख्या में कमजोर तबके के लोग भी स्वीकार करते हैं कि उन्हें मुफ्त अनाज मिल रहा है और राशन के तहत भी अनाज मिल रहा है।
पहले चरण का मतदान अगले चरणों पर असर डाल सकता है। हालांकि पहले चरण में आगरा, मथुरा, बुलंदशहर और अलीगढ़ की सीटों पर रालोद-सपा गठबंधन उतना मजबूत नहीं है जितना दोआब के उपरी हिस्से में है। अलीगढ़ और आगरा में कुछ सीटों पर जरूर बसपा भी लड़ती दिख रही है। इसलिए इस मुकाबले ने मतदान के पहले चरण को काफी दिलचस्प बना दिया है।