हिमाचल में ड्राई स्पेल से सेब के पेड़ों में रोग फैलने का खतरा

हिमाचल में बारिश नहीं होने से सेब के पेड़ों में रोग फैलने का खतरा बढ़ गया है। अगर आगे भी यही हालात रहे तो सेब के पेड़ सूख सकते हैं, जिससे आगले सीजन में सेब की फसल पर असर पड़ सकता है। ऐसे में विशेषज्ञों ने बागवानों को सतर्क रहने की सलाह दी है।

हिमाचल में ड्राई स्पेल से सेब के पेड़ों में रोग फैलने का खतरा

हिमाचल प्रदेश में पिछले दो महीने से ड्राई स्पेल की स्थिति बनी हुई है। बारिश नहीं होने से अब सेब के बगीचे सूखे की चपेट में आ गए हैं। कई जगह बगीचों में सेब के पेड़ों की छाल उखड़ने लगी है, जिससे इनमें कैंकर रोग फैलने का खतरा बढ़ गया है। सेब का तूड़ान पूरा होने के दो महीने बाद भी प्रदेश में अभी तक बारिश नहीं हुई है, जिससे पेड़ों की ग्रोथ पर असर पड़ रहा है। अगर आगे भी यही हालात रहते हैं और बारिश नहीं होती है तो सेब के पेड़ सूख सकते हैं, जिससे आगले सीजन में सेब की फसल पर असर पड़ सकता है। इस साल पहले ही प्रदेश में सेब की पैदावार कम रहने का अनुमान है। 

बागवानी विशेषज्ञों की मानें तो अगर लंबे समय तक बारिश नहीं होती है तो इससे सेब के पेड़ सूख सकते हैं। पेड़ की ग्रोथ के लिए मिट्टी में नमी बनी रहनी चाहिए। नमी का स्तर घटने से मिट्टी सख्त हो जाती है और इसमें गुड बैक्टीरिया खत्म होने लगते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि बागवान अक्सर तूड़ान के बाद अपने बगीचों की देखभाल नहीं करते, लेकिन इस समय सतर्क रहना आवश्यक है। बागवानों को नियमित निगरानी रखनी चाहिए और समय पर अपने बागीचों की देखभाल करनी चाहिए ताकि पेड़ों को नुकसान न पहुंचे।

बागवानी विशेषज्ञ और डॉ वाईएस परमार बागवानी एवं वानिकी विश्वविद्यालय के रिटायर्ड प्रोफेसर एसपी भारद्वाज ने रूरल वॉयस को बताया पिछले दो महीने से प्रदेश में बारिश नहीं हुई है, जिससे खासकर सेब के नए पेड़ों की ग्रोथ पर असर पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि इस समय बागवानों को सतर्क रहने की जरूरत है। अपने बगीचों की समय पर निगरानी करें ताकि सेब के पेड़ों को कोई नुकसान न हो। उन्होंने कहा कि बारिश न होने से कई क्षेत्रों में कैंकर रोग फैलने का खतरा बढ़ गया है। यह समस्या उन जगहों पर अधिक है जहां पूरा दिन धूप रहती है, जिससे सेब के पेड़ों में दरारें आ रही हैं और इनमें आसानी से कैंकर रोग फैल सकता है। 

एसपी भारद्वाज ने बताया कि जिन बागवानों के बगीचे ऐसी जगह पर हैं जहां पूरा दिन धूप रहती है या जहां मिट्टी में नमी कम है, वे नियमित रूप से अपने बगीचों में सिंचाई करें। उच्च घनत्व वाले बगीचों में बागवान ड्रिप इरिगेशन का भी उपयोग कर सकते हैं। इसके अलावा, बागवान सूखी घास की मोटी परत बिछाकर मल्चिंग कर सकते हैं, जिससे सेब के पेड़ों में नमी बनी रहती है। 

कैंकर रोग की रोकथाम के लिए एसपी भारद्वाज ने कॉपर ऑक्सीक्लोराइड का छिड़काव करने का सुझाव दिया है। इसके लिए 600 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड को 200 लीटर पानी में घोलकर पेड़ों पर छिड़काव करना चाहिए। इसके अलावा, पेड़ों के तनों की वाइट वॉशिंग भी जरूरी है ताकि अन्य संक्रमण न फैले। इसके लिए 9 किलो चूना, 1 किलो कॉपर सल्फेट, और 750 मिली एचएमओ (हॉर्टिकल्चर मिनरल ऑयल) को 20 लीटर पानी में घोलकर पेंट तैयार करें और इसे पेड़ों के तनों पर लगाएं। 

एसपी भारद्वाज के अनुसार, कैंकर रोग का शुरुआती पता तनों में दरारें और रंग में बदलाव से लग सकता है। बागवानों को इन संकेतों पर नजर रखनी चाहिए और तुरंत आवश्यक उपाय करने चाहिए ताकि पेड़ स्वस्थ रहें।

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