रिकॉर्ड उत्पादन के आंकड़ों के बावजूद गेहूं को लेकर क्यों खड़ी हो सकती हैं मुश्किलें
देश में बढ़ती आबादी और खानपान में बदलाव के चलते गेहूं की खपत बढ़ रही है जबकि जलवायु परिवर्तन के कारण गेहूं उत्पादन पर मौसम की मार पड़ने की घटनाएं बढ़ रही हैं।
रिकॉर्ड गेहूं उत्पादन के सरकारी आंकड़ों के बीच गेहूं की कीमतों का लगातार बढ़ना, सरकारी खरीद का तीसरे साल लक्ष्य से कम रहना और केंद्रीय पूल में गेहूं के स्टॉक का निचले स्तर पर पहुंचना, एक बड़े गेहूं संकट की आहट है। यह ऐसा मसला है जो गेहूं-चावल के फसल चक्र को तोड़ने की धारणा को भी बदल सकता है। एक अगस्त, 2024 को केंद्रीय पूल में 268.1 लाख टन गेहूं था जो 2022 में इसी समय के 266.5 लाख टन से तो अधिक है लेकिन 2008 के बाद 16 साल में सबसे कम है। गेहूं के स्टॉक की यह स्थिति भारत के खाद्यान्न सरप्लस होने के दावे को कमजोर करती है। क्योंकि सरकार ने पिछले दो साल से गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगा रखा है और घरेलू बाजार में स्टॉक लिमिट जैसी पाबंदियां लागू कर रखी हैं।
वहीं, चावल के मामले में स्थिति गेहूं के उलट है। पिछले दो साल को छोड़ दें तो अगस्त में आमतौर पर केंद्रीय पूल में गेहूं का स्टॉक चावल से अधिक होता था। गेहूं की रबी फसल आने के बाद जून में सरकारी खरीद बंद होती है और स्टॉक उच्च स्तर पर रहता है, जबकि चावल के मामले में सरकारी खरीद सीजन सीजन अक्टूबर से शुरू होता है, इसलिए अगस्त में स्टॉक कम रहता है। लेकिन अब ऐसा नहीं है। साल 2015 में एक अगस्त को केंद्रीय पूल में चावल का स्टॉक गेहूं से लगभग आधा था जबकि इस साल एक अगस्त को केंद्रीय पूल में गेहूं का स्टॉक चावल के मुकाबले लगभग 60 फीसदी है।
केंद्रीय पूल में 1 अगस्त तक का स्टॉक (लाख टन)
|
गेहूं |
चावल |
2015 |
367.78 |
186.61 |
2016 |
268.79 |
221.39 |
2017 |
300.59 |
237.02 |
2018 |
408.58 |
249.44 |
2019 |
435.88 |
328.85 |
2020 |
513.28 |
350.97 |
2021 |
564.80 |
444.59 |
2022 |
266.45 |
409.88 |
2023 |
280.39 |
374.37 |
2024 |
268.12 |
454.83 |
स्रोत: खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग
एक अगस्त, 2024 को केंद्रीय पूल में 454.8 लाख टन चावल था। गैर-बासमती व्हाइट राइस के निर्यात पर लगा प्रतिबंध भी इसकी वजह है। भारत ने वर्ष 2021-22 में 212.10 लाख टन चावल का निर्यात किया था। वहीं 2022-23 में निर्यात 223.5 लाख टन रहा और भारत विश्व का सबसे बड़ा चावल निर्यातक देश रहा। भारत की हिस्सेदारी वैश्विक बाजार में 40 फीसदी तक पहुंच गई थी। लेकिन उसके बाद घरेलू बाजार में कीमतें बढ़ने और खराब मानसून के चलते उत्पादन में कमी को देखते हुए सरकार ने गैर-बासमती व्हाइट राइस के निर्यात पर रोक लगा दी। वहीं, सेला राइस पर 20 फीसदी निर्यात शुल्क और बासमती पर 950 डॉलर प्रति टन का न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) लागू कर रखा है। इसके चलते 2023-24 में भारत का चावल निर्यात घटकर 163.6 लाख टन रह गया था।
गेहूं का निर्यात 2021-22 में 72.4 लाख टन था। उसके बाद 2022-23 में यह 46.9 लाख टन रहा और 2023-24 में 1.9 लाख टन गेहूं का निर्यात हुआ। सरकार ने मई, 2022 में गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था क्योंकि प्रतिकूल मौसम के चलते देश में गेहूं का उत्पादन प्रभावित हुआ था। तब से यह प्रतिबंध लागू है। हालांकि, सरकार रिकॉर्ड उत्पादन के आंकड़े जारी कर रही है।
गेहूं और चावल के मामले में कृषि जलवायु क्षेत्र को लेकर स्थिति अलग है। गेहूं की रबी सीजन में ही केवल एक फसल होती जबकि चावल की देश के विभिन्न हिस्सों में खरीफ और रबी दोनों सीजन में फसल होती है। गेहूं का उत्पादन उत्तरी भारत, पश्चिमी और मध्य भारत के एग्रो क्लाइमेंट क्षेत्र में ही संभव है। देश में ऐसे केवल आठ राज्य हैं जहां सालाना 20 लाख टन से अधिक गेहूं का उत्पादन होता है जबकि चावल के मामले में ऐसे राज्यों की संख्या 16 है यानी चावल की खेती का क्षेत्र काफी व्यापक है। गेहूं उत्पादक राज्यों में पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में देश का 76 फीसदी गेहूं पैदा होता है।
शीर्ष गेहूं उत्पादक राज्य (मिलियन टन)
उत्तर प्रदेश |
34.46 |
मध्य प्रदेश |
20.96 |
पंजाब |
16.85 |
|
|
हरियाणा |
11.37 |
राजस्थान |
10.69 |
बिहार |
6.32 |
गुजरात |
3.42 |
महाराष्ट्र |
2.07 |
कुल |
109.73* |
(नोट: आंकड़े 2019-20 से 2023-24 तक के पांच साल के औसत हैं। अन्य राज्यों का उत्पादन भी इनमें शामिल है।)
स्रोत: कृषि एवं किसान कल्याण विभाग।
देश में बढ़ती आबादी और खानपान में बदलाव के चलते गेहूं की खपत बढ़ रही है जबकि जलवायु परिवर्तन के कारण गेहूं उत्पादन पर हर साल मौसम की मार पड़ती है। पिछले कुछ वर्षों में दिसंबर में कम ठंड पड़ती है जबकि गेहूं की फसल में दाना बनने के समय फरवरी-मार्च में तापमान तेजी से बढ़ता है। इस तरह मौसम का बदला मिजाज गेहूं के उत्पादन को प्रभावित कर रहा है।
सरकारी अनुमानों में गेहूं की खपत को करीब 10.4 करोड़ टन के आसपास माना गया है। लेकिन हकीकत यह है कि देश में गेहूं की खपत लगातार बढ़ रही है। गेहूं की खपत अब केवल चपाती बनाने और उसके पारंपरिक राज्यों में अधिक खपत के रूप में नहीं रह गई है। अब चावल की खपत वाले राज्यों में भी गेहूं की खपत लगातार बढ़ रही है। जिस तरह से बेकरी उद्योग, पिज्जा-बर्गर से लेकर मैदा और सूजी से बनने वाले तमाम उत्पादों की खपत का दायरा बढ़ रहा है उसके चलते अब पूरे देश में गेहूं के उत्पादों की खपत बढ़ रही है।
साल 2002-23 के हाउसहोल्ड एक्सपेंडिचर सर्वे के मुताबिक, ग्रामीण क्षेत्रों में गेहूं की प्रति व्यक्ति मासिक खपत 3.9 किलो है और शहरों में यह 3.6 किलो है। लेकिन यह आंकड़ा खपत की पूरी तस्वीर पेश नही करता है। वहीं, चावल के मामले में उससे तैयार होने वाले उत्पाद सीमित हैं। साथ ही देश के कई राज्यों में सिंचाई सुविधाएं बढ़ने से चावल उत्पादन बढ़ा है। ऐसे में गेहूं और चावल के उत्पादन और खपत को अलग तरीके से देखने की जरूरत है। क्योंकि अब गेहूं-चावल चक्र को तोड़ने की नीतिगत सोच को भी बदलना पड़ सकता है। साथ ही गेहूं की बढ़ती खपत के लिए उत्पादन बढ़ाने के उन तरीकों पर काम करना होगा जो जलवायु परिवर्तन और तापमान के बदलाव के बावजूद गेहूं की पैदावार बढ़ा सकें। क्योंकि गेहूं के उत्पादन का क्षेत्र बढ़ाने की संभावना कम है।