डीएपी और कॉम्प्लेक्स उर्वरकों का स्टॉक तीन साल के निचले स्तर पर, बढ़ सकती है सरकार की चिंता
सरकारी आंकडों के मुताबिक अगस्त के अंत में डीएपी समेत कई उर्वरकों का देश में स्टॉक तीन साल के निचले स्तर पर आ गया है। इसकी वजह अंतरराष्ट्रीय बाजार में उर्वरकों और उनके कच्चे माल की कीमतों आई भारी तेजी के चलते आयात में कमी आना है। यह स्थिति सरकार के लिए राजनीतिक चिंता पैदा कर सकती है। आगामी फरवरी- मार्च में पंजाब, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में विधान सभा के चुनाव होने हैं और इन राज्यों में किसानों का वोट बहुत मायने रखता है। अगर रबी सीजन में उर्वरकों की उपलब्धता का संकट पैदा होता है तो वह सरकार के लिए राजनीतिक नुकसान का कारण बन सकता है।
चालू मानसून सीजन में सितंबर में अच्छी बारिश का भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) का अनुमान आगामी रबी सीजन के लिए बेहतर संभावाएं लेकर आ रहा है जिससे रबी में फसलों का रकबा बढ़ेगा। लेकिन इस बेहतर स्थिति के रास्ते में किसानों के लिए डीएपी, एमओपी और कॉम्प्लेक्स उर्वरकों की उपलब्धता का संकट खड़ा हो सकता है। सरकारी आंकडों के मुताबिक 31 अगस्त, 2021 को डीएपी समेत कई दूसरे उर्वरकों का देश में स्टॉक तीन साल के निचले स्तर पर आ गया है। इसकी वजह अंतरराष्ट्रीय बाजार में उर्वरकों और उनके कच्चे माल की कीमतों आई भारी तेजी के चलते आयात में कमी आना है।
यह स्थिति सरकार के लिए राजनीतिक चिंता पैदा कर सकती है। आगामी फरवरी- मार्च में पंजाब, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में विधान सभा के चुनाव होने हैं और इन राज्यों में किसानों का वोट बहुत मायने रखता है। अगर रबी सीजन में उर्वरकों की उपलब्धता का संकट पैदा होता है तो वह सरकार के लिए राजनीतिक नुकसान का कारण बन सकता है।
उर्वरक विभाग के ताजा आंकड़ों के मुतापबिक 31 अगस्त, 2021 को देश में डाई अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) का स्टॉक 21.59 लाख टन था। जबकि पिछले साल इसी तिथि को डीएपी का स्टॉक 46.85 लाख टन था। वहीं 2019 में अगस्त के अंत में डीएपी का स्टॉक 62.48 लाख टन और 2018 में इस तिथि को डीएपी का स्टॉक 45.05 लाख टन था। म्यूरेट ऑफ पोटाश (एमओपी) का स्टॉक 31 अगस्त, 2021 को 10.12 लाख था जो 2020 में इसी समय 20 लाख टन, 2019 में 24.76 लाख टन और 2018 में 18.20 लाख टन पर था।
नाइट्रोजन (एन), फॉस्फोरस (पी), पोटेशियम (के) और सल्फर (एस) से तैयार होने वाले कॉम्प्लेक्स उर्वरकों के स्टॉक की स्थिति भी डीएपी और एमओपी की तरह ही है। अगस्त, 2021 के अंत में कॉम्प्लेक्स उर्वरकों का स्टॉक भी 31.32 लाख टन पर तीन साल पिछले तीन की इसी अवधि के मुकाबले सबसे कम स्तर पर है। बढ़ती अंतरराष्ट्रीय कीमतों के चलते उर्वरकों का आयात घट गया है। अप्रैल से अगस्त, 2021 के बीच इस साल डीएपी का आयात 24 लाख टन रहा है जो इसके पहले साल इसी अवधि में 35 लाख टन रहा था। इसी तरह एमओपी का आयात भी 22.2 लाख टन से घटकर 8.87 लाख टन और एनपी व एनपीके कॉम्प्लेक्स उर्वरक का आयात पिछले साल के 12.1 लाख टन से घटकर 6.30 लाख टन रह गया है।
इस समय डीएपी की आयातित कीमत 665 डॉलर प्रति टन हो गई है जो पिछले साल इसी समय 340 से 350 डॉलर प्रति टन के बीच थी। इसी अवधि में एमओपी की कीमत 230 डॉलर प्रति टन से बढ़कर 280 डॉलर प्रति टन हो गई है। वहीं आने वाले दिनों में एमओपी की कीमतें 400 डॉलर प्रति टन तक जा सकती हैं। उर्वरकों के कच्चे माल फॉस्फोरिक एसिड की कीमत पिछले एक साल में 625 डॉलर प्रति टन से बढ़कर 1160 डॉलर प्रति टन तक पहुंच गई है। जबकि रॉक फॉस्फेट की कीमत 99 डॉलर प्रति टन से बढ़कर 150 डॉलर प्रति टन, अमोनिया की कीमत 210 डॉलर प्रति टन से बढ़कर 660 डॉलर प्रति टन तक पहुंच गई है। वहीं सल्फर की कीमतें 75-80 डॉलर प्रति टन की रेंज से बढ़कर 205-215 डॉलर प्रति टन की रेंज में पहुंच गई हैं। मौजूदा 665 डॉलर प्रति टन की आयातित कीमत पर डीएपी का देश में आयात मूल्य लगभग 48,850 रुपये प्रति टन बैठता है। इस पर पांच फीसदी सीमा शुल्क और 3800 रुपये की मार्केटिंग और वितरण लागत जोड़ने पर इसकी कीमत 55 हजार रुपये प्रति टन पर पहुंच जाती है। इस समय सरकार डीएपी पर 24,231 रुपये प्रति टन की सब्सिडी दे रही है। उसे घटाने के बाद भी डीएपी की अधिकतम खुदरा कीमत (एमआरपी) 30,800 रुपये प्रति टन बैठ रही है। वह भी तब जब कंपनी और आयातक का इसमें कोई मुनाफा नहीं है। इस समय डीएपी के 50 किलो के बैग की एमआरपी 1200 रुपये है। ऐसे में सब्सिडी में बढ़ोतरी के बिना कंपनियों के पास कीमत बढ़ाने के अलावा दूसरा कोई चारा नहीं होगा। उद्योग सूत्रों का कहना है कि अगर सरकार हमें मौजूदा कीमत पर डीएपी बेचने के लिए मजबूर करेगी तो हमें हर आयातित शिपमेंट पर 28 से 35 करोड़ रुपये का घाटा होगा। ऐसे में कौन सी कंपनी आयात करेगी। अब फैसला सरकार को लेना है कि वह सब्सिडी बढ़ाती है या कंपनियों को दाम बढ़ाने की इजाजत देती है। उद्योग सूत्रों का कहना है कि पिछले एक माह में कई कंपनियों ने कॉम्प्लेक्स उर्वरकों की कीमतों में पांच सौ रुपये से 2000 रुपये प्रति टन की बढ़ोतरी कर दी है। इसके चलते एनपीके की कीमतें 29,500 रुपये प्रति टन तक पहुंच गई हैं। लेकिन डीएपी में यह संभावना नहीं है क्योंकि यूरिया के बाद देश में दूसरा सबसे अधिक खपत वाला उर्वरक डीएपी ही है और यह राजनीतिक रूप से काफी संवेदनशील है। अब सरकार के पास विकल्प बचता है कि वह विनियंत्रित उर्वरकों पर न्यूट्रिएंट आधारित सब्सिडी में बढ़ोतरी कर इनकी अधिकतम खुदरा कीमत (एमआरपी) को अधिक न बढ़ने दे।
हालांकि यूरिया और सिंगल सुपर फॉस्फेट (एसएसपी) के स्टॉक के मामले में स्थिति बेहतर है। 31 अगस्त, 2021 को देश में यूरिया का स्टॉक 44.41 लाख टन था जबकि पिछले साल इसी समय यूरिया का स्टॉक 43.53 लाख टन था। इसी तरह एसएसपी का अभी का स्टॉक 16.6 लाख टन है जबकि पिछले साल इसी समय यह 15.1 लाख टन था।
उर्वरक उद्योग सूत्रों का कहना है कि इस मामले में सरकार के साथ पिछले दिनों कई बैठकें हो चुकी हैं। अंतरराष्ट्रीय कीमतों में भारी बढ़ोतरी की स्थिति को देखते हुए सरकार ने कूटनीतिक स्तर पर भी आयात की संभावनाएं तलाशी हैं। जिसके लिए रूस और ईरान से आयात बढ़ाने पर विचार किया जा रहा है। असल में डीएपी के सबसे बड़े निर्यातकों में शामिल चीन के निर्यात पर प्रतिबंध लगा देने के बाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतों में इजाफा हुआ है। वहीं बेलारूस पर यूरोपीय संघ के आर्थिक प्रतिबंधों के चलते भी वैश्विक बाजार में कीमतें प्रभावित हुई हैं। इस स्थिति में सरकार के पास बहुत अधिक समय नहीं है क्योंकि अक्तूबर-नवंबर में रबी सीजन की बुवाई शुरू हो जाती है और इस सीजन में डीएपी की खपत काफी अधिक होती है। ऐसे में सरकार को आयात में बढ़ोतरी के जरिये डीएपी और दूसरे कॉम्प्लेक्स उर्वरकों की उपलब्धता को बेहतर करना होगा। किसी भी तरह की किल्लत की स्थिति में पहले ही कृषि कानूनों के मुद्दे पर किसानों की नाराजगी झेल रही सरकार के लिए राजनीतिक मुश्किलें बढ़ सकती हैं।