खारे भूजल के कारण छोड़ी गेहूं-सरसों की खेती, अब मशरूम की खेती से सालाना लाखों कमा रहा ये किसान

दिल्ली के हसनपुर गांव के किसान पवन कुमार मशरूम की खेती करते हैं। अन्य किसानों की तरह पवन भी पहले पारंपरिक फसलों की खेती किया करते थे। लेकिन, अब वे मशरूम की खेती से लाखों रुपये की कमाई कर रहे हैं।

खारे भूजल के कारण छोड़ी गेहूं-सरसों की खेती, अब मशरूम की खेती से सालाना लाखों कमा रहा ये किसान

भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहां की आधे से ज्यादा आबादी आज भी रोजगार के लिए खेती पर ही निर्भर है। हालांकि, पिछले कुछ सालों में पारंपरिक खेती को छोड़ किसानों का रुझान आधुनिक खेती की ओर तेजी से बढ़ा है। पारंपरिक फसलों जैसे गेहूं, धान आदि को छोड़ किसान अब नकदी फसलों पर अपना ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। जिनसे उन्हें अच्छा मुनाफा भी हो रहा है। रूरल वॉयस की इस खबर में आज हम आपको एक ऐसे ही किसान की कहनी बताएंगे, जिन्होंने पारंपरिक फसलों को छोड़ नकदी फसलों का रूख किया। किसान ने खेती में आधुनिक तकनीक का भी इस्तेमाल किया। जिससे आज वे लाखों की कमाई कर रहे हैं। 

हम बात कर रहे हैं दक्षिण-पश्चिम दिल्ली के हसनपुर गांव के किसान पवन कुमार की, जो मशरूम (बटन मशरूम) की खेती करते हैं। अन्य किसानों की तरह पवन भी पहले पारंपरिक फसलों की खेती किया करते थे। लेकिन, इलाके में खारे भूजल के कारण खरीफ सीजन के दौरान उन्हें गेहूं और सरसों उगाने में संघर्ष करना पड़ता था। जिससे फसल के उत्पादन पर भी असर पड़ता था। खारे भूजल के कारण उनका फसल उत्पादन पहले के मुकाबले काफी कम हो गया था। जिसके बाद उन्होंने आईसीएआर-कृषि विज्ञान केंद्र, दिल्ली के वैज्ञानिकों से इस संबंध में सलाह मांगी। केवीके दिल्ली के वैज्ञानिकों ने उन्हें पारंपरिक फसलों की खेती छोड़ मशरूम फार्मिंग का सुझाव दिया। जिसके बाद पवन कुमार ने मशरूम की खेती शुरू की और आज वे इससे लाखों का मुनाफा कमा रहे हैं।  

पवन कुमार ने 2016 में केवीके दिल्ली में आयोजित मशरूम की खेती पर एक व्यावसायिक प्रशिक्षण में भाग लिया। यहां से प्रेरित होकर और वैज्ञानिकों की सलाह पर उन्होंने अपने खेत में एक मशरूम इकाई स्थापित की। पवन कुमार के लिए ये एक ट्रायल की तरह था। वे वैज्ञानिकों से नियमित सलाह लेते रहे और अपनी मशरूम इकाई में सुधार करते रहे। व्यावसायिक प्रशिक्षण पूरा करने के बाद उन्होंने 2016-17 में आईसीएआर-केवीके की देखरेख में 700 वर्ग फुट में एक बटन मशरूम उत्पादन इकाई स्थापित की। इसके लिए उन्हें केवीके की ओर से तकनीकी सहायता भी मिली। 

वहीं, अच्छी क्वालिटी के मशरूमों का उत्पादन करने के लिए उन्होंने आईसीएआर- मशरूम अनुसंधान निदेशालय, सोलन से भी संपर्क किया। जिसके बाद उन्होंने अपनी हाई-टेक मशरूम इकाई को 900 वर्ग फुट से बढ़ाकर 5000 वर्ग फुट किया। शुरुआत में उन्होंने अपनी उपज को स्थानिय बाजार में ही बेचना उचित समझा। लेकिन बाद में उन्होंने दिल्ली-एनसीआर के रेस्तरां और मॉल में भी मशरूम की आपूर्ति शुरू की। जिससे उन्हें काफी अच्छा मुनाफा हुआ। उन्होंने अनुबंध के आधार पर उपभोक्ता की मांग को पूरा किया और मशरूम आपूर्ति के लिए बुकिंग पोर्टल भी बनाया। 

अभी बाजार में मशरूम की कीमत 100 से 120 रुपये प्रति किलोग्राम है, जबकि ऑफ-सीजन में कीमत बढ़कर 160-180 रुपये प्रति किलोग्राम हो जाती है। फिलहाल, पवन कुमार अपनी इकाई से सालाना लगभग 54 हजार किलोग्राम मशरूम का उत्पादन कर रहे हैं। जिससे उन्हें 21 लाख की कमाई हो रही है। पवन ने देश भर के विभिन्न मशरूम उत्पादकों को काफी प्रभावित किया है। उन्होंने एनसीटी, दिल्ली में उच्च गुणवत्ता वाले मशरूम उत्पादक उपलब्ध कराए हैं और एक सफल कृषि उद्यमी का दर्जा स्थापित किया है। वह किसानों को बटन मशरूम में नवीनतम तकनीकों को अपनाने के लिए भी प्रेरित करते हैं। मशरूम की खेती में रुचि रखने वाले या मशरूम उत्पादन शुरू करने के इच्छुक लोग उनकी इकाई में आते रहते हैं।

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