डीएपी की कीमत 620 डॉलर पर पहुंची, कम आयात से किसानों के लिए हो सकती है किल्लत
केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित मौजूदा दरों पर डीएपी का आयात उर्वरक कंपनियों के लिए घाटे का सौदा बन गया है। यही वजह है कि इस साल डीएपी का आयात कम हुआ और रबी सीजन के लिए उपलब्धता को लेकर आशंकाएं पैदा हो रही हैं।
अक्टूबर से शुरू हो रहे आगामी रबी सीजन में डाई-अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) की उपलब्धता को लेकर किसानों की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। वैश्विक बाजार में डीएपी की कीमतों में बढ़ोतरी के चलते उर्वरक कंपनियों ने डीएपी का आयात कम किया है। इस साल अप्रैल से जून तक डीएपी का आयात पिछले साल के मुकाबले करीब 46 फीसदी घटा है। ऐसे में अगर अगले एक माह के भीतर आयात में बढ़ोतरी नहीं होती है तो गेहूं और दूसरी रबी फसलों के लिए किसानों को डीएपी की उपलब्धता को लेकर मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।
वैश्विक बाजार में डीएपी की कीमत 620 डॉलर प्रति टन पर पहुंच गई हैं। इसके चलते न्यूट्रिएंट आधारित सब्सिडी (एनबीएस) योजना के तहत सरकार द्वारा तय मौजूदा दरों पर डीएपी का आयात उर्वरक कंपनियों के लिए घाटे का सौदा बन गया है। यही वजह है कि इस साल डीएपी का आयात कम हुआ और रबी सीजन के लिए उपलब्धता को लेकर आशंकाएं पैदा हो रही हैं। ऐसे में डीएपी की उपलब्धता को लेकर राज्य सरकारों ने केंद्र सरकार के दरवाजे पर दस्तक देना शुरू कर दिया है।
केंद्र सरकार न्यूट्रिएंट आधारित सब्सिडी (एनबीएस) योजना के तहत गैर-यूरिया (विनियंत्रित उर्वरकों) के लिए नाइट्रोजन (एन), फॉस्फोरस (पी) और पोटाश (के) की सब्सिडी दरें तय करती है। कॉम्प्लेक्स उर्वरकों में इनकी मात्रा के आधार पर प्रति टन सब्सिडी दी जाती है। देश में यूरिया के बाद सबसे अधिक खपत डीएपी की होती है। एनबीएस के तहत खरीफ 2024 सीजन (1 अप्रैल से लेकर 30 सितंबर) के लिए सरकार डीएपी पर 21676 रुपये प्रति टन की सब्सिडी दे रही है। रबी सीजन के लिए सरकार एनबीएस की नई दरें घोषित कर सकती है जो 1 अक्तूबर, 2024 से 31 मार्च, 2025 की अवधि के लिए लागू होंगी।
डीएपी आयात का गणित
मौजूदा वैश्विक कीमतों पर डीएपी का आयात मूल्य करीब 52000 रुपये प्रति टन बैठता है। इसके अलावा हैंडलिंग और बैगिंग का करीब 5000 रुपये प्रति टन का खर्च अतिरिक्त है। ऐसे में कंपनियों के लिए डीएपी की आयात लागत करीब 57 हजार रुपये प्रति टन बैठ रही है। वहीं, 21676 रुपये प्रति टन की सब्सिडी और 1350 रुपये प्रति बैग (50 किलो) के अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) के हिसाब से 27 हजार रुपये प्रति टन के बिक्री मूल्य को जोड़कर भी डीएपी आयात करने वाली कंपनियों को करीब आठ रुपये प्रति टन का नुकसान उठाना पड़ रहा है।
मई से बढ़ रही कीमतें
इस साल अप्रैल में डीएपी की कीमतें घटकर 500 डॉलर प्रति टन से नीचे आ गई थीं। लेकिन उसके बाद मई में कीमतें बढ़ने लगीं। सरकारी क्षेत्र की एक उर्वरक कंपनी ने मई में 528 डॉलर प्रति टन के रेट पर आयात सौदा किया था। उसके बाद जून में कीमतें और अधिक हो गईं और एक दूसरी सरकारी उर्वरक कंपनी के टेंडर में 575 डॉलर प्रति टन की कीमत आई जिसे कंपनी ने स्वीकार नहीं किया और टेंडर रद्द कर दिया। इसके साथ ही जून के अंतिम दिनों में डीएपी के सबसे बड़े निर्यातकों में शुमार चीन ने डीएपी का निर्यात बंद कर दिया।
सब्सिडी बढ़ने पर टिकी आस
उर्वरक उद्योग से जुड़े सूत्रों का कहना है कि सरकार डीएपी पर सब्सिडी बढ़ा सकती है और इसी उम्मीद में आयात किया जा रहा है। हाल ही में भारतीय कंपनियों ने दुनिया की सबसे बड़ी डीएपी निर्यातक कंपनी मोरक्को की ओसीपी के साथ 620 डॉलर प्रति टन पर करीब पांच लाख टन डीएपी आयात के सौदे किये हैं। लेकिन अगर सरकार डीएपी सब्सिडी नहीं बढ़ाती है तो रबी सीजन में किसानों के लिए डीएपी की उपलब्धता का संकट पैदा हो सकता है। डीएपी की जरूरत फसल की बुवाई के समय अधिक होती है। इसलिए इसकी उपलब्धता के मामले में अगले दो-तीन माह काफी महत्वपूर्ण रहेंगे।
राज्यों की चिंताएं
स्थिति को देखते हुए राज्य सरकारों ने केंद्र के साथ डीएपी की उपलब्धता को लेकर बैठकें करनी शुरू कर दी हैं। सूत्रों के मुताबिक, डीएपी की सबसे अधिक खपत वाले राज्यों में शुमार पंजाब के अधिकारियों ने इसी सप्ताह दिल्ली में कृषि मंत्रालय के अधिकारियों के साथ डीएपी की आपूर्ति के मुद्दे पर बैठक की। पंजाब सरकार रबी सीजन में डीएपी की पर्याप्त उपलब्धता को लेकर चिंतित है।
उर्वरक उद्योग सूत्रों का कहना है कि अगर कंपनियां आयात सौदे नहीं करती हैं तो रबी सीजन तक डीएपी की उपलब्धता का संकट खड़ा हो सकता है। सौदों के बाद आयातित उर्वरक के किसानों के लिए रिटेल शॉप तक पहुंचने में डेढ़ से दो माह तक का समय लगता है। जबकि मध्य एशिया में तनाव के चलते शिपिंग की अवधि भी बढ़ गई है। ऐसे में केंद्र सरकार को समय रहते डीएपी की उपलब्धता सुनिश्चित कराने के उपाय करने होंगे।