रूरल वॉयस परिचर्चा: कोऑपरेटिव में गवर्नेंस बड़ा मुद्दा, इनमें चुनाव की जिम्मेदारी चुनाव आयोग को देने का सुझाव
सहकार भारती के राष्ट्रीय महासचिव डॉ उदय जोशी ने कोऑपरेटिव सोसाइटी में चुनाव प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने पर जोर देते हुए कहा कि चुनाव आयोग को इसकी जिम्मेदारी दी जा सकती है। इससे इन संस्थाओं में चुनाव को लेकर विवाद कम होंगे और पारदर्शिता भी आएगी
अगर कोऑपरेटिव में चुनाव की जिम्मेदारी चुनाव आयोग को दे दी जाए तो इससे ना सिर्फ चुनाव प्रक्रिया को लेकर विवाद कम होंगे बल्कि कोऑपरेटिव के कामकाज में भी पारदर्शिता आएगी। कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर फोकस करने वाले मीडिया संस्थान रूरल वॉयस और सहकार भारती की तरफ से बुधवार को 'सहकार से समृद्धि: रास्ते अनेक' विषय पर आयोजित एक परिचर्चा में यह महत्वपूर्ण सुझाव दिया गया। इस परिचर्चा का मकसद सहकारिता आंदोलन की अड़चनों को पहचानना और सहकारिता को आगे बढ़ाने के लिए नई संभावनाओं पर विचार करना था। परिचर्चा में सहकारिता क्षेत्र की कई जानी-मानी हस्तियों ने हिस्सा लिया। ऊपर दिए वीडियो लिंक पर क्लिक करके आप पूरा सत्र देख सकते हैं।
टेक्नोलॉजी से आएगी पारदर्शिता: सिराज हुसैन
'बेहतर आय के लिए कोऑपरेटिव को मजबूत करना' विषय पर पहले सत्र की शुरुआत करते हुए पूर्व कृषि सचिव सिराज हुसैन ने नए सहकारिता मंत्रालय के गठन को अच्छा कदम बताते हुए कहा कि इसे कोऑपरेटिव के कामकाज में पारदर्शिता लाने की दिशा में कदम उठाना चाहिए। उन्होंने सुझाव दिया कि कोऑपरेटिव में टेक्नोलॉजी का अधिक से अधिक इस्तेमाल किया जाना चाहिए। इससे उनके काम में पारदर्शिता आएगी। उन्होंने बताया कि तेलंगाना में सभी प्राथमिक कृषि सहकारी समितियों (पैक्स) का कंप्यूटराइजेशन हो गया है जबकि उत्तर प्रदेश में अभी तक ऐसा नहीं हुआ है। उन्होंने कहा कि अगर किसी कोऑपरेटिव में गड़बड़ी होती है तो टेक्नोलॉजी से उसका जल्दी पता लगाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि व्यापक चर्चा से ही बेहतर नीति बनेगी
पूर्व कृषि सचिव के अनुसार सरकार को सीधे कोऑपरेटिव को रेगुलेट नहीं करना चाहिए वरना इससे तनाव बढ़ेगा। सरकार इन संस्थाओं को रेगुलेट तो करें लेकिन इस तरह कि सदस्यों को कोई नुकसान ना हो। उन्होंने कहा कि जैसे-जैसे कोऑपरेटिव का आकार बढ़ता जाता है उसकी वित्तीय शक्ति भी बढ़ती है। ऐसे में उन पर नियंत्रण के लिए लोगों में होड़ मचती है।
उन्होंने कहा कि बीते दो दशक में कोऑपरेटिव का असर कम हुआ है। उदाहरण के लिए उत्तर प्रदेश में डेयरी कोऑपरेटिव का हिस्सा लगातार कम होता जा रहा है। कोऑपरेटिव में होने वाली खरीद सरकारी ई-कॉमर्स पोर्टल जैम के जरिए किए जाने के फैसले का उन्होंने स्वागत किया और कहा कि इससे पारदर्शिता आएगी।
किसानों को अधिक कीमत मिले और लागत कम हो: जयेन मेहता
अमूल के चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर जयेन मेहता ने कहा कि किसानों की आय बढ़ाने के लिए जरूरी है कि उन्हें उनके उत्पाद की अधिक से अधिक कीमत मिले और उनकी लागत कम हो। अमूल इसी मॉडल पर काम करता है। भारत में डेयरी कोऑपरेटिव की संभावनाओं का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि अभी दुनिया का 22 फ़ीसदी दूध उत्पादन भारत में होता है। 10 साल में यह 35 फ़ीसदी हो जाएगा। इन 10 वर्षों में जो अतिरिक्त दूध उत्पादन होगा उसका भी दो तिहाई भारत से आएगा। उन्होंने कहा कि कोऑपरेटिव किसानों की उत्पादकता बढ़ाने उनका खर्च घटाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
उन्होंने बताया कि अमूल उपभोक्ताओं से दूध की जो कीमत लेता है किसानों को उसका 85 फ़ीसदी मिलता है। अमूल की उपलब्धियां बताते हुए उन्होंने कहा कि करीब 36 लाख किसान इससे जुड़े हैं। कोई भी किसान इससे आसानी से जुड़ सकता है। इस संस्था का सालाना टर्नओवर 61 हजार करोड़ रुपए पहुंच गया है।
क्रेडिट कोऑपरेटिव को बीमा कवरेज मिले: डॉ उदय जोशी
सहकार भारती के राष्ट्रीय महासचिव डॉ उदय जोशी ने कोऑपरेटिव में सुधार को जरूरी बताते हुए कहा कि इनमें मलिन छवि की बात काफी समय से चलती आ रही है। पहले भी कहा गया है कि कोऑपरेटिव विफल हुए हैं लेकिन इन्हें सफल होना चाहिए। संविधान के 97वें संशोधन के बाद उसका ऑपरेशनल हिस्सा खारिज किया गया लेकिन यह बात खारिज नहीं हुई कि कोऑपरेटिव बनाना मौलिक अधिकार है। देश में 95000 से अधिक प्राथमिक कृषि कोऑपरेटिव सोसाइटी (पैक्स) हैं। इनमें कुछ तो काम नहीं कर रही लेकिन ज्यादातर सुचारू रूप से चल रही हैं। उन्होंने कहा कि कोऑपरेटिव के सदस्यों को ट्रस्टीशिप की भावना से काम करना चाहिए। कॉपरेटिव में रोजगार सृजन की क्षमता को देखते हुए इनकी छवि सुधारने की जरूरत है।
डॉ जोशी ने कॉपरेटिव के प्रति लोगों का नजरिया बदलने के लिए ईज ऑफ डूइंग बिजनेस को जरूरी बताया। उन्होंने कहा कि बार-बार रजिस्ट्रार के पास जाना अनुमति लेना इन सब में काफी समय जाया होता है। उन्होंने कोऑपरेटिव सोसाइटी में चुनाव की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने पर जोर देते हुए कहा कि चुनाव आयोग को इसकी जिम्मेदारी दी जा सकती है। इससे इन संस्थाओं में चुनाव को लेकर विवाद भी कम होंगे।
उन्होंने कहा कि नए मंत्रालय के गठन के बाद सहकारिता से जुड़े कानून में संशोधन के अनेक सुझाव आए हैं, लेकिन सहकार भारती का मानना है कि पहले राष्ट्रीय नीति तैयार की जानी चाहिए फिर उस नीति के आधार पर संशोधन किए जाने चाहिए। इससे आगे चलकर बार-बार बदलाव की जरूरत नहीं पड़ेगी। उन्होंने कहा कि कोऑपरेटिव में जरूरत के मुताबिक पूंजी निवेश नहीं हो रहा है। इनके लिए बांड, डिबेंचर, प्रेफरेंस शेयर आदि के जरिए धन जुटाने के रास्ते तलाशने की जरूरत है। पैक्स में डिपॉजिट मोबिलाइजेशन की सुविधा है, इसे और बढ़ाया जाए तो यह और बेहतर तरीके से काम करेंगे।
डॉ जोशी ने सभी क्रेडिट सोसाइटी को डिपॉजिट इंश्योरेंस कवरेज की जरूरत बताई। क्रेडिट सोसाइटी को काफी नकदी की हैंडलिंग करनी पड़ती है इसलिए उन्हें नेशनल पेमेंट सिस्टम में मेंबरशिप मिलनी चाहिए। इससे कैशलेस ट्रांजैक्शन को भी बढ़ावा मिलेगा। उन्होंने कहा कि पैक्स ग्रामीण क्षेत्र में एफपीओ का काम कर सकते हैं। इसके लिए नियमों में कुछ बदलाव करने पड़ेंगे। भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी बनाने के लिए पैक्स को मजबूत करना जरूरी है।
एनसीयूआई अपनी भूमिका निभाने में नाकाम: अजय जाखड़
भारत कृषक समाज के चेयरमैन अजय वीर जाखड़ ने कोऑपरेटिव से जुड़े लोगों के प्रशिक्षण की जरूरत बताई। उन्होंने कहा कि इस कार्य के लिए एनसीयूआई का गठन किया गया लेकिन उसके काम को संतोषजनक नहीं कहा जा सकता है। ज्यादातर अधिकारी कोऑपरेटिव से जुड़े कानूनों से परिचित ही नहीं हैं। अधिकारी स्तर पर पारदर्शिता नहीं होती। इन परिस्थितियों को बदलना जरूरी है। जाखड़ ने कहा कि ज्यादातर कोऑपरेटिव नहीं चाहते कि वह अपने मुनाफे का हिस्सा एनसीयूआई के साथ साझा करें। कोऑपरेटिव क्षेत्र में सफलता के लिए जरूरी है कि उन कारणों को भी समझा जाए जिनकी वजह से कोऑपरेटिव विफल हुई हैं। उन्होंने कहा कि 1965 में भी कोऑपरेटिव में सुधार के लिए एक रिपोर्ट आई थी। उसमें जो मुद्दे बताए गए थे वह मुद्दे आज भी बरकरार हैं।
उन्होंने कहा कि कोऑपरेटिव सरकार की मदद के बिना नहीं चल सकते। लेकिन सरकारी मदद के साथ सरकार यानी राजनीतिक हस्तक्षेप भी बढ़ने लगता है। कोऑपरेटिव के कामकाज में हस्तक्षेप बढ़ने के कारण ही अब एफपीओ को तरजीह दी जाने लगी है। हालांकि एफपीओ के नियमों में भी कुछ समस्याएं हैं इसकी मुख्य वजह यह है कि नियम बनाते वक्त विदेशी सलाहकारों से बात की जाती है जो जमीनी हकीकत से वाकिफ नहीं होते।
जाखड़ ने कहा कि कोऑपरेटिव बैंकों को बड़े स्केल की जरूरत है। इसके बिना वे प्रतिस्पर्धी नहीं बन सकते। इसके लिए उन्होंने जिला कोऑपरेटिव बैंकों को राज्यस्तरीय बैंकों के साथ जोड़ने का सुझाव दिया। हालांकि उन्होंने पूंजी जुटाने के लिए डॉ जोशी के डिबेंचर और शेयर जारी करने के सुझाव पर असहमति जताई। उन्होंने यह भी कहा कि जो कोऑपरेटिव काम नहीं कर रही है उन्हें चुनाव प्रक्रिया से बाहर किया जाना चाहिए।