रूरल वॉयस परिचर्चा: विशेषज्ञों ने दिया कोऑपरेटिव को मजबूत बनाने पर जोर, कहा सरकारी हस्तक्षेप इनकी विफलता का एक कारण
कॉरपोरेट्स में सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं होता है। जबकि कोऑपरेटिव की मदद करने के नाम पर सरकार उसमें किसी ब्यूरोक्रेट को एमडी बना देती है। वह व्यक्ति उनके प्रति जवाबदेह नहीं होता जिनके पैसे के बल पर वह काम कर रहा है
अगर सरकार कोऑपरेटिव की सफलता चाहती है तो वह उनका समर्थन करे, उनके कामकाज में हस्तक्षेप ना करे। यह कहना है इंस्टीट्यूट ऑफ रूरल मैनेजमैंट, आणंद (इरमा) के प्रोफेसर डॉ. शाश्वत विश्वास का। डॉ. विश्वास रूरल वॉयस और सहकार भारती द्वारा पिछले दिनों 'सहकार से समृद्धि: मैनी पाथवेज' विषय पर आयोजित एक परिचर्चा में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि कोऑपरेटिव 1841 में शुरू हुए थे। तब से अब तक दुनिया काफी बदल गई है। अब इनके बारे में नए तरीके से सोचने का समय आ गया है। कृषि कोऑपरेटिव की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि उनके पास मोलभाव करने की कोई क्षमता नहीं होती है। कृषि कमोडिटी के दाम में काफी उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। इसलिए कोऑपरेटिव मैनेजमेंट को तत्काल फैसला लेना पड़ता है। लेकिन यहां व्यक्ति के पास ना तो यह अधिकार होता है ना उसके पास इसकी योग्यता होती है। डॉ विश्वास 'कोऑपरेटिव को प्रासंगिक कैसे बनाया जाए' विषय पर आयोजित तीसरे सत्र में बोल रहे थे। ऊपर दिए वीडियो लिंक पर क्लिक करके आप इस सत्र को सुन सकते हैं।
सरकारी हस्तक्षेप की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि सरकार के समर्थन के बिना कोई भी कॉरपोरेट्स या इंडस्ट्री नहीं चल सकती है। देश के दो बड़े कॉर्पोरेट घरानों ने सरकारी बैंकों से पांच लाख करोड़ रुपए का कर्ज लिया है। लेकिन कॉरपोरेट्स में सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं होता है। जबकि कोऑपरेटिव की मदद करने के नाम पर सरकार उसमें किसी ब्यूरोक्रेट को एमडी बना देती है। वह व्यक्ति उनके प्रति जवाबदेह नहीं होता जिनके पैसे के बल पर वह काम कर रहा है। सरकारी हस्तक्षेप को कोऑपरेटिव की विफलता के का एक कारण बताते हुए डॉ विश्वास ने कहा की कंपनी रजिस्ट्रार कभी किसी कॉरपोरेट से यह नहीं पूछता है कि वह किसे नियुक्त कर रहा है, जबकि कोऑपरेटिव में रजिस्ट्रार की अनुमति के बिना कोई नियुक्ति नहीं की जा सकती है।
उन्होंने कहा कि भारत में कोऑपरेटिव अब भी पुराने तौर-तरीकों से चल रहे हैं। वह जुरासिक पार्क युग में हैं। टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से उनके कामकाज में पारदर्शिता लाई जा सकती है। कोऑपरेटिव के गवर्नेंस में सुधार पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि कई बार इनके चुनाव सामान्य चुनावों से भी बदतर हो जाते हैं। जिन लोगों का कॉपरेटिव से कोई लेना देना नहीं होता वह भी इनमें चुनाव लड़ते हैं और जीत भी जाते हैं।
कोऑपरेटिव अपना ब्रांड बनाएं और मार्केटिंग करें: नायकनवरे
एनएफसीएसएफ लिमिटेड के मैनेजिंग डायरेक्टर (एमडी) प्रकाश नायकनवरे ने कहा कि इस साल भारत के 100 लाख टन चीनी निर्यात में 55 फ़ीसदी हिस्सा कोऑपरेटिव का है। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र में शुगर कोऑपरेटिव ने प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों रूप से अनेक रोजगार का सृजन किया है। वह न सिर्फ चीनी मिल चला रहे हैं बल्कि अस्पताल, मेडिकल कॉलेज, अन्य शिक्षण संस्थान, कंजूमर स्टोर, कोऑपरेटिव बैंक आदि भी चला रहे हैं। यह अन्य सेक्टर और अन्य जगहों पर भी हो सकता है।
कोऑपरेटिव के कामकाज में पेशेवर तौर-तरीकों की कमी का जिक्र करते हुए नायकनवरे ने कहा कि प्रशिक्षण और टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से इसे सुधारा जा सकता है। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र में कोऑपरेटिव राजनीतिक सत्ता की सीढ़ी के तौर पर काम करती है। इसलिए कोऑपरेटिव में छोटी-छोटी बातों पर भी बड़े समारोह आयोजित किए जाते हैं और उन पर पैसा जाया होता है। गुजरात की कोऑपरेटिव ऐसा नहीं करती है।
उन्होंने शुगर कोऑपरेटिव से दीर्घकालिक लक्ष्य बनाकर काम करने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि अभी हम सिर्फ आग लगने पर कुआं खोदने की नीति पर चल रहे हैं। कोऑपरेटिव को मार्केटिंग पर भी ध्यान देना चाहिए जो अभी नहीं हो रहा है। उन्हें अपना ब्रांड बनाना चाहिए और घरेलू तथा विदेशी बाजारों में उसकी मार्केटिंग करनी चाहिए। कोऑपरेटिव में काम करने वालों के प्रशिक्षण का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि अक्सर ऐसे मौकों पर निचले स्तर के कर्मचारियों को भेज दिया जाता है जबकि प्रबंधन के लोगों को प्रशिक्षण की ज्यादा जरूरत होती है। उन्होंने कहा कि नवगठित सहकारिता मंत्रालय काफी तेजी से काम कर रहा है और यह स्वागत योग्य है।
किसानों को आत्मनिर्भर बनाना जरूरी: राम इकबाल सिंह
नैकॉफ के वर्किंग चेयरमैन राम इकबाल सिंह ने परिचर्चा के आयोजन का स्वागत करते हुए कहा कि यहां विशेषज्ञों की तरफ से दिए गए सुझावों पर सरकार को अमल करना चाहिए। उन्होंने कहा कि दूसरे देशों की नकल करने के बजाय हमें अपनी समस्याओं को पहचानना और उनका समाधान तलाशना चाहिए। सरकारी कामकाज के तौर-तरीके में भी बदलाव की जरूरत बताते हुए उन्होंने कहा कि किसी भी छोटे किसान के लिए अधिकारी से मिलना या उससे उस तक अपनी बात पहुंचाना बड़ा मुश्किल होता है क्योंकि अधिकारी के पास छोटे किसानों से मिलने का समय ही नहीं होता।
उन्होंने कहा कि जरूरत सब्सिडी की नहीं बल्कि किसानों को आत्मनिर्भर बनाने की है। कोऑपरेटिव का कोई विकल्प नहीं है इसलिए राज्य स्तरीय और राष्ट्र स्तरीय कोऑपरेटिव को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। उन्होंने कोऑपरेटिव नियमों में भी संशोधन की जरूरत बताई।
कोऑपरेटिव बाहरी कारणों से विफल होते हैं: डीएन ठाकुर
सहकार भारती के नेशनल प्रेसिडेंट डॉ. डीएन ठाकुर ने इस मौके पर कहा कि आज तक कोई भी कोऑपरेटिव अपनी वजह से विफल नहीं हुई है। विफलता का कारण बाहरी रहा है। उन्होंने कहा कि जब कोऑपरेटिव विफल हो नहीं सकती तो वह अप्रासंगिक कैसे हो सकती है। कोऑपरेटिव हमेशा प्रासंगिक रहे हैं और रहेंगे। चाहे खाद्य सुरक्षा की बात हो, उर्जा सुरक्षा की या सामाजिक सौहार्द की यह सब कोऑपरेटिव के माध्यम से ही सुनिश्चित किया जा सकता है।
डॉ. ठाकुर ने कहा कि कम्युनिटी आधारित मॉडल कभी फेल नहीं हो सकता क्योंकि सभ्यता की शुरुआत के साथ ही इसकी भी शुरुआत हुई। प्रकृति भी कोऑपरेशन की तरह कार्य करती है जिससे संतुलन बना रहता है। उन्होंने कहा कि अगर आप इस मूल सिद्धांत को समझ लें तो आप कभी कोऑपरेटिव को अप्रासंगिक नहीं कहेंगे और ना कभी ऐसा होने देंगे। उन्होंने कहा कि कोऑपरेटिव का कोई विकल्प नहीं है, इनके ना होने से समस्या बढ़ेगी। उन्होंने कहा कि अगर कोऑपरेटिव को अधिक प्रासंगिक बनाना है तो इसकी ओनरशिप इसके सदस्यों के हाथ में ही होनी चाहिए।