प्राथमिक कृषि ऋण समितियों का होगा कम्प्यूटरीकरण, कैबिनेट ने मंजूर किए 2516 करोड़ रुपए
63,000 कार्यरत पैक्स को कम्प्यूटरीकृत किया जाएगा। इस कदम से लगभग 13 करोड़ किसानों को लाभ होगा जिनमें से अधिकांश छोटे व सीमांत किसान हैं। इस कदम से पैक्स के कामकाज में पारदर्शिता और दक्षता आएगी
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (पैक्स) की दक्षता बढ़ाने और उनके संचालन में पारदर्शिता एवं जवाबदेही लाने के लिए इनके कम्प्यूटरीकरण को मंजूरी दी है। इस परियोजना में कुल 2516 करोड़ रुपये का खर्च आएगा जिसमें केंद्र सरकार की हिस्सेदारी 1528 करोड़ रुपये की होगी। साथ पांच वर्षों की अवधि में लगभग 63,000 कार्यरत पैक्स के कम्प्यूटरीकरण का लक्ष्य है। कंप्यूटरीकरण से पैक्स को अपने व्यवसाय में विविधता लाने में भी मदद मिलेगी। इफको के प्रबंध निदेशक डॉ. उदय शंकर अवस्थी और अध्यक्ष दिलीप संघाणी ने कैबिनेट के इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि इससे देश की ग्रामीण और कृषि अर्थव्यवस्था को और मजबूती मिलेगी।
पैक्स देश में अल्पकालिक सहकारी ऋण (एसटीसीसी) की त्रि-स्तरीय व्यवस्था में सबसे निचले स्तर पर अपनी भूमिका निभाती हैं। लगभग 13 करोड़ किसान इसके सदस्य हैं। देश में सभी संस्थाओं द्वारा दिए गए केसीसी ऋणों में पैक्स का हिस्सा 41 प्रतिशत (3.01 करोड़ किसान) है। पैक्स के माध्यम से इन केसीसी ऋणों में से 95 प्रतिशत (2.95 करोड़ किसान) छोटे व सीमांत किसानों को दिए गए हैं। अन्य दो स्तरों अर्थात राज्य सहकारी बैंकों (एसटीसीबी) और जिला केन्द्रीय सहकारी बैंकों (डीसीसीबी) को पहले ही नाबार्ड ऑटोमेटेड कर चुका है और उन्हें साझा बैंकिंग सॉफ्टवेयर (सीबीएस) के तहत लाया गया है।
अधिकांश पैक्स को अब तक कम्प्यूटरीकृत नहीं किया गया है। परिणामस्वरूप उनके संचालन में अक्षमता और भरोसे की कमी दिखाई देती है। कुछ राज्यों में पैक्स का आंशिक कम्प्यूटरीकरण किया गया है। लेकिन उनके द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे सॉफ्टवेयर में कोई समानता नहीं है और वे डीसीसीबी एवं एसटीसीबी के साथ जुड़े हुए नहीं हैं।
पैक्स के कंप्यूटरीकरण से वित्तीय समावेशन के उद्देश्यों को पूरा करने तथा किसानों, विशेष रूप से छोटे व सीमांत किसानों को दी जाने वाली सेवाओं को मजबूत करने में मदद मिलेगी। यह परियोजना ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटलीकरण को बेहतर बनाने के अलावा बैंकिंग गतिविधियों के साथ-साथ गैर-बैंकिंग गतिविधियों के केन्द्र के रूप में पैक्स की पहुंच को बेहतर बनाने में मदद करेगी। इसके बाद डीसीसीबी खुद को विभिन्न सरकारी योजनाओं (जिसमें ऋण और अनुदान शामिल होती हैं), जिन्हें पैक्स के माध्यम से लागू किया जा सकता है, के कार्यान्वयन के महत्वपूर्ण विकल्पों में से एक के रूप में नामांकित कर सकते हैं। यह कदम ऋण के त्वरित निपटान, अपेक्षाकृत कम हस्तांतरण लागत, त्वरित ऑडिटिंग और राज्य सहकारी बैंकों एवं जिला केंद्रीय सहकारी बैंकों के साथ भुगतान व लेखांकन संबंधी असंतुलन दूर करेगा।
इस परियोजना में साइबर सुरक्षा एवं आंकड़ों के संग्रहण के साथ-साथ क्लाउड आधारित साझा सॉफ्टवेयर का विकास, पैक्स को हार्डवेयर संबंधी सहायता प्रदान करना, रख-रखाव संबंधी सहायता एवं प्रशिक्षण सहित मौजूदा रिकॉर्ड का डिजिटलीकरण शामिल है। यह सॉफ्टवेयर स्थानीय भाषा में होगा जिसे राज्यों की जरूरतों के अनुसार एडजस्ट किया जा सकेगा। केन्द्र और राज्य स्तर पर परियोजना प्रबंधन इकाइयां स्थापित की जाएंगी। लगभग 200 पैक्स के समूह में जिला स्तरीय सहायता भी प्रदान की जाएगी। उन राज्यों के मामले में जहां पैक्स का कम्प्यूटरीकरण पूरा हो चुका है, 50,000 रुपये प्रति पैक्स की दर से भुगतान किया जाएगा, बशर्ते वे साझा सॉफ्टवेयर के साथ एकीकृत होने/अपनाने के लिए सहमत हों, उनका हार्डवेयर आवश्यक निर्देशों को पूरा करता हो और उनका सॉफ्टवेयर 1 फरवरी, 2017 के बाद शुरू किया गया हो।
उर्वरक बनाने वाली विश्व की सबसे बड़ी सहकारी संस्था इफको ने पैक्स के कम्प्यूटरीकरण के ऐतिहासिक कदम का स्वागत किया है। इफको के प्रबंध निदेशक डॉ. उदय शंकर अवस्थी ने इस पहल का स्वागत करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह को धन्यवाद और बधाई दी। उन्होंने कहा कि इसके माध्यम से सुदूर क्षेत्रों में बैठा किसान भी देश की अर्थव्यवस्था से जुड़ जाएगा और इससे देश की ग्रामीण और कृषि अर्थव्यवस्था को और मजबूती मिलेगी।
इफको अध्यक्ष दिलीप संघाणी ने कहा कि यह भारतीय किसानों और ग्रामीण भारत को सशक्त बनाने के प्रधानमंत्री मोदी के 'सहकार से समृद्धि' के लक्ष्य की दिशा में एक बड़ा कदम है। उन्होंने कहा कि यह परियोजना पैक्स के संचालन में पारदर्शिता और जवाबदेही लाने के साथ ही पैक्स के विकास के लिए भी क्रांतिकारी साबित होगी।