सहकारिता आधारित विकास को बढ़ावा देने के लिए बन रही राष्ट्रीय नीतिः अमित शाह
'सहकार से समृद्धि' के नारे को साकार करने, सहकारिता आधारित आर्थिक विकास मॉडल को बढ़ावा देने और जमीनी स्तर तक इसकी पहुंच को मजबूत करने के मकसद से केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय स्तर पर एक समिति का गठन किया है। सुरेश प्रभु की अध्यक्षता में गठित इस समिति में सहकारी क्षेत्र के विशेषज्ञ, सहकारी समितियों के प्रतिनिधि, राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के सहकारिता सचिव और आरसीएस, केंद्रीय मंत्रालयों एवं विभागों के अधिकारी शामिल होंगे।
'सहकार से समृद्धि' के नारे को साकार करने, सहकारिता आधारित आर्थिक विकास मॉडल को बढ़ावा देने और जमीनी स्तर तक इसकी पहुंच को मजबूत करने के मकसद से केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय स्तर पर एक समिति का गठन किया है। सुरेश प्रभु की अध्यक्षता में गठित इस समिति में सहकारी क्षेत्र के विशेषज्ञ, सहकारी समितियों के प्रतिनिधि, राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के सहकारिता सचिव और आरसीएस, केंद्रीय मंत्रालयों एवं विभागों के अधिकारी शामिल होंगे। केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने मंगलवार को लोकसभा में 'सहकारिता पर राष्ट्रीय नीति' पर एक लिखित प्रश्न का जवाब देते हुए यह जानकारी दी।
केंद्रीय सहकारिता मंत्री ने अपने लिखित जवाब में बताया कि नई राष्ट्रीय सहकारिता नीति तैयार करने के लिए पहले सहकारी क्षेत्र से जुड़े लोगों से परामर्श किया गया था। इसके अलावा केंद्रीय मंत्रालयों, विभागों, राज्यों, संघ शासित प्रदेशों, राष्ट्रीय सहकारी संघों, संस्थानों और आम जनता से भी सुझाव मांगे गए थे। राष्ट्रीय समिति नई नीति का प्रारूप तैयार करने के लिए इन सुझावों और सिफारिशों का विश्लेषण करेगी। उन्होंने बताया कि सहकारिता मंत्रालय के गठन के बाद सहकारी ढांचे को देश की आर्थिक और सामाजिक आवश्यकताओं के साथ समन्वित करते हुए कई कदम उठाए गए हैं। इनमें पैक्स का कंप्यूटरीकरण, पैक्स को कॉमन सेवा केंद्र (सीएससी) के रूप में संचालित करने, सहकारी चीनी मिलों को राहत देने, सहकारी समितियों के लिए विभिन्न टैक्स की दरों में कटौती जैसे उपाय शामिल हैं। जबाव में बताया गया है कि 2,516 करोड़ रुपये के व्यय के साथ ईआरपी आधारित सामान्य राष्ट्रीय सॉफ्टवेयर पर 63,000 कार्यशील पैक्स ऑनबोर्ड करने की प्रक्रिया शुरू हुई है। साथ ही पैक्स को डेयरी, मत्स्य पालन, गोदामों की स्थापना, एलपीजी/पेट्रोल/हरित ऊर्जा वितरण एजेंसी, बैंकिंग संवाददाता, सीएससी आदि जैसी 25 से अधिक व्यावसायिक गतिविधियों को करने में सक्षम बनाने के लिए संबंधित राज्य सहकारिता अधिनियम के अनुसार मॉडल उपनियम तैयार किए गए हैं। पैक्स को सीएससी के रूप में संचालित करने से उसकी व्यवहार्यता में सुधार करने, ग्रामीण स्तर पर ई-सेवाएं देने और रोजगार सृजन करने में मदद मिलेगी।
अमित शाह ने अपने जवाब में कहा कि सहकारी समितियों के प्रामाणिक और अद्यतन डेटाबेस बनाने की तैयारी शुरू हो गई है। इससे नीति निर्माण और कार्यान्वयन में सुविधा मिलेगी। राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम (एनसीडीसी) द्वारा स्वयं सहायता समूहों के लिए 'स्वयंशक्ति सहकार', लंबी अवधि के कृषि कर्ज के लिए 'दीर्घावधि कृषक सहकार', डेयरी के लिए 'डेयरी सहकार' और मत्स्य पालन के लिए 'नील सहकार' जैसी नई योजनाएं शुरू की गई हैं। वित्त वर्ष 2021-22 में इसके लिए 34,221 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता दी गई है। इसके अलावा सहकारी समितियों को जीईएम (जेम) पोर्टल पर 'खरीदार' के रूप में पंजीकरण करने की अनुमति दी गई है। इससे वे अधिक पारदर्शी तरीके से लगभग 40 लाख विक्रेताओं से किफायती दर पर सामान और सेवाएं खरीद सकेंगी।
प्रो. अच्युतानंद सामंत द्वारा पूछे गए लिखित सवाल के जवाब में सहकारी मंत्री अमित शाह ने बताया कि एक से 10 करोड़ रुपये तक की आय वाली सहकारी समितियों के लिए अधिभार 12 फीसदी से घटाकर 7 फीसदी कर दिया गया है। इसी तरह न्यूनतम वैकल्पिक कर (मैट) को 18.5 फीसदी से घटाकर 15 फीसदी किया गया है। इसी तरह नई सहकारी समितियों के लिए टैक्स की दर कम करने की घोषणा 2023-24 के बजट में की गई है। 31 मार्च, 2024 तक विनिर्माण गतिविधियां शुरू करने वाली नई सहकारी समितियों के लिए 30 फीसदी की मौजूदा दर की तुलना में 15 फीसदी की दर से टैक्स वसूलने की घोषणा की गई है। जबकि सहकारी समितियों के लिए नकद निकासी की सीमा को बिना टीडीएस के 1 करोड़ से 3 करोड़ रुपये सालाना करने की घोषणा की गई है। बजट में पैक्स और प्राथमिक सहकारी कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंकों (PCARDBs) द्वारा नकद जमा और कर्ज के लिए प्रति सदस्य सीमा 20 हजार रुपये से बढ़ाकर 2 लाख रुपये करने की भी घोषणा की गई है।
सहकारिता मंत्री के जवाब में बताया गया है कि सहकारी चीनी मिलों को किसानों को उचित और लाभकारी मूल्य (एफआरपी) या राज्य परामर्शित मूल्य (एसएपी) तक गन्ने के अधिक मूल्य का भुगतान करने के लिए अतिरिक्त आयकर के अधीन नहीं लाया जाएगा। साथ ही उन्हें निर्धारण वर्ष 2016-17 से पहले की अवधि के लिए गन्ना किसानों को उनके बकाया भुगतान को व्यय के रूप में दावा करने की अनुमति देने की घोषणा की गई है। इससे उन्हें लगभग 10 हजार करोड़ रुपये की राहत मिली है।