राजस्थान में कांग्रेस और हनुमान बेनीवाल एक साथ, बदले सियासी समीकरण
कांग्रेस का लेफ्ट और हनुमान बेनीवाल की आरएलपी के साथ गठबंधन होने से राजस्थान की कई सीटों पर सियासी समीकरण बदल सकते हैं।
राजस्थान की नागौर लोकसभा सीट से राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलपी) के नेता हनुमान बेनीवाल इंडिया गठबंधन के उम्मीदवार होंगे। समझौते के तहत यह सीट कांग्रेस ने हनुमान बेनीवाल की पार्टी के लिए छोड़ी थी। उनका मुकाबला भाजपा उम्मीदवार डॉ. ज्योति मिर्धा से होगा। पिछली बार इस सीट पर ज्योति मिर्धा कांग्रेस की उम्मीदवार थीं और हनुमान बेनीवाल भाजपा के समर्थन से चुनाव में उतरे थे। दोनों जाट नेता इस बार पाला बदल चुके हैं।
कांग्रेस का लेफ्ट और हनुमान बेनीवाल की आरएलपी के साथ गठबंधन होने से राजस्थान की कई सीटों पर सियासी समीकरण बदल सकते हैं। विधानसभा चुनाव में गठबंधन करने में विफल रही कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव के लिए एक-एक सीट आरएलपी और सीपीएम के लिए छोड़ी है जबकि बाड़मेर सीट पर आरएलपी से आए उम्मेदाराम बेनीवाल को टिकट दिया है। कांग्रेस ने चूरू में भाजपा छोड़कर आए राहुल कस्वां को उम्मीदवार बनाकर जाट मतदाताओं को साधने का प्रयास किया है।
हनुमान बेनीवाल जमीनी पकड़ वाले जुझारू नेता माने जाते हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने नागौर से कांग्रेस उम्मीदवार ज्योति मिर्धा को करीब पौने दो लाख वोटों से हराया था। लेकिन साल 2020 के किसान आंदोलन के कारण बेनीवाल ने भाजपा से नाता तोड़ दिया था। इस बार हनुमान बेनीवाल और कांग्रेस के साथ आने से भाजपा प्रत्याशी ज्योति मिर्धा की राह आसान नहीं होगी। हालांकि, बेनीवाल भी पाला बदलने के कारण कई मोर्चों पर घिरे हुए हैं। प्रदेश कांग्रेस के नेताओं का एक धड़ा उनसे गठबंधन के खिलाफ था। कांग्रेस नेताओं के खिलाफ वे तल्ख बयानबाजी करते रहे हैं।
ज्योति मिर्धा के कांग्रेस छोड़कर भाजपा में जाने और हनुमान बेनीवाल के कांग्रेस से हाथ मिलने से जाट राजनीति के गढ़ नागौर में मुकाबला रोमांचक हो जाएगा। हनुमान बेनीवाल को साथ लेकर कांग्रेस जाट मतदाताओं को साधने का प्रयास कर रही है। जबकि भाजपा में पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया के साइडलाइन होने और चूरू में राहुल कस्वां के पार्टी छोड़ने के बाद ज्योति मिर्धा प्रमुख जाट चेहरा हैं।
यह तीसरा मौका है जब लोकसभा चुनाव में ज्योति मिर्धा और हनुमान बेनीवाल आमने-सामने होंगे। 2014 में बेनीवाल निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव में उतरे थे और उन्हें डेढ़ लाख से ज्यादा वोट मिले थे। तब उन्हें ज्योति मिर्धा की हार की वजह माना गया था। उस चुनाव में भाजपा के सीआर चौधरी की जीत हुई थी।
ज्योति मिर्धा राजस्थान के कद्दावर नेता नाथूराम मिर्धा की पोत्री हैं। कांग्रेस से लगातार दो हार के बाद वे 2023 के विधानसभा चुनाव से पहले वे भाजपा में शामिल हो गई थीं। भाजपा ने उन्हें नागौर विधानसभा से उम्मीदवार बनाया। लेकिन कांग्रेस प्रत्याशी हरेंद्र मिर्धा के सामने हार का सामना करना पड़ा था जो कांग्रेस के दिग्गज नेता रामनिवास मिर्धा के पुत्र हैं।
भाजपा से अलग होने के बाद हनुमान बेनीवाल की पार्टी भी 2023 के विधानसभा चुनाव में कोई खास प्रदर्शन नहीं कर पाई। आरएलपी से सिर्फ बेनीवाल ही विधानसभा पहुंच सके। लेकिन ज्योति मिर्धा 2014 के बाद से लगातार चुनाव हार रही हैं। इस बार हनुमान बेनीवाल के सामने भी राजस्थान की राजनीति में अपना दबदबा कायम रखने की चुनौती है।
नागौर लोकसभा सीट पर मिर्धा परिवार का लंबे समय तक वर्चस्व रहा है। अब तक वहां 11 बार कांग्रेस और चार बार भाजपा व सहयोगी दल विजयी रहे हैं। फिलहाल, नागौर लोकसभा क्षेत्र की आठ विधानसभा सीटों में से चार पर कांग्रेस, दो पर भाजपा और एक-एक सीट पर निर्दलीय व आरएलपी के विधायक हैं। देखना दिलचस्प होगा कि नागौर में इस बार किसे कामयाबी मिलती है। नागौर लोकसभा सीट पर पहले चरण में 19 अप्रैल को मतदात होगा।