क्लस्टर अप्रोच है उत्तर प्रदेश के विकास का सही रोडमैप
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उनकी सरकार के पास फिर से एक मौका आया है कि वह उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के साथ ही वहां के लोगों के जीवन स्तर को बेहतर करे। दूसरे कार्यकाल में उसे नई रणनीति और नीतिगत पहल के साथ काम करना चाहिए। उत्तर प्रदेश में एक मजबूत अर्थव्यवस्था बनने की तमाम संभावनाएं और कौशल मौजूद हैं बशर्ते कि उनको एक बेहतर रोडमैप के जरिये उपयोग में लाया जाए। देश के कई राज्यों और खासतौर से तमिलनाडु में आर्थिक क्लस्टर अप्रोच के जरिये नतीजे हासिल किये गये हैं
उत्तर प्रदेश सरकार ने हाल ही में एक विज्ञापन दिया था कि वह राज्य की अर्थव्यवस्था को एक ट्रिलियन डॉलर पर ले जाने के लिए एक कंसल्टेंट नियुक्ति करना चाहती है। जो इस बात का संकेत है कि राज्य सरकार राज्य की अर्थव्यवस्था के तेज विकास को लेकर काफी गंभीर है। उत्तर प्रदेश में विधान सभा चुनावों के नतीजे भारतीय जनता पार्टी को दोबारा सत्ता में लेकर आए हैं और राज्य में यह कई दशकों के बाद हुआ है कि किसी पार्टी के मुख्यमंत्री की दोबारा सत्ता में वापसी हुई है। यह बात भी सही है कि पांच साल सत्ता में रहने के बावजूद राज्य की पिछली सरकार प्रदेश को आर्थिक और मानव विकास के आंकड़ों में बहुत ऊपर नहीं ला पाई थी। लेकिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उनकी सरकार के पास फिर से एक मौका आया है कि वह उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के साथ ही वहां के लोगों के जीवन स्तर को बेहतर करे। दूसरे कार्यकाल में उसे नई रणनीति और नीतिगत पहल के साथ काम करना चाहिए। उत्तर प्रदेश में एक मजबूत अर्थव्यवस्था बनने की तमाम संभावनाएं और कौशल मौजूद हैं बशर्ते कि उनको एक बेहतर रोडमैप के जरिये उपयोग में लाया जाए। देश के कई राज्यों और खासतौर से तमिलनाडु में आर्थिक क्लस्टर अप्रोच के जरिये नतीजे हासिल किये गये हैं।
इस रोडमैप के तहत उत्तर प्रदेश को आर्थिक गतिविधियों के क्लस्टरों के रूप में देखने की जरूरत है। राज्य का सबसे बड़ा उद्योग गन्ना और चीनी उद्योग है। सहारनपुर से शुरू होकर देवरिया तक राज्य के पश्चिमी और उत्तरी हिस्से में गन्ना उत्पादन होता है। यहां की भौगोलिक स्थिति व जलवायु इसके लिए अनुकूल है। साथ ही यहां गन्ने की फसल के लिए जरूरी पानी भी उपलब्ध है। पिछले करीब दो दशकों में इस पूरे इलाके में चीनी मिलों का जाल बिछ गया है। इस समय उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा चीनी उत्पादक राज्य होने के साथ ही एथनॉल का भी सबसे बड़ा उत्पादक है। एथनॉल उत्पादन के लिए उपयोग होने वाली डिस्टीलरी के अपशिष्ट में पोटाश होता है और केंद्र सरकार ने उससे बनने वाले उर्वरक को न्यूट्रिएंट आधारित सब्सिडी (एनबीएस) स्कीम के तहत सब्सिडी के लिए मान्य कर दिया है। चीनी बनाने की प्रक्रिया के तहत अलग किये जाने वाले प्रेसमड से कंप्रैस्ड सीएनजी का उत्पादन कई इकाइयां शुरू कर चुकी हैं। वहीं अतिरिक्त बगास (खोई) से बिजली का उत्पादन कर चीनी मिलें राज्य सरकार को बेच रही हैं। गन्ने से बनने वाले उत्पादों और उस पर आधारित उद्योग में संभावनाओं का तेजी से विस्तार हो रहा है। इन संभावनाओं का बेहतर उपयोग कर राज्य के करीब 45 लाख किसानों की आर्थिक स्थिति में भारी सुधार संभव है। इसलिए इस उद्योग के लिए राज्य सरकार को नए सिरे से नीति बनाने की जरूरत है। यह उद्योग ग्रामीण क्षेत्रों में ही स्थापित हैं, ऐसे में ग्रामीण इलाकों के आर्थिक कायाकल्प के लिए इनका बेहतर उपयोग करने पर काम होना चाहिए।
राज्य के केंद्रीय हिस्से में हाथरस, आगरा, कन्नौज, इटावा, एटा, फर्रूखाबाद, शिकोहाबाद, बहराइच में आलू की खेती बड़े पैमाने पर होती है और उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा आलू उत्पादक राज्य है। आलू किसानों और कारोबारियों ने यहां बड़े पैमाने पर कोल्ड स्टोर भी स्थापित किये हैं। देश में सबसे अधिक कोल्ड स्टोर इस क्षेत्र में ही हैं। आलू कीमतों में उतार-चढ़ाव को रोकने के लिए यहां आलू से स्टार्च बनाने के संयंत्र और वोदका बनाने के प्लांट स्थापित किये जा सकते हैं। साथ ही यहां बड़ी संख्या में मौजूद कोल्ड स्टोरों का उपयोग दूसरे कृषि उत्पादों के भंडारण के लिए भी किया जा सकता है।
सहारनपुर में वुड वर्क का कौशल है और यहां के उत्पाद दुनिया भर में मशहूर हैं। वहीं बिजनौर का एक अनजान का कस्बा शेरपुर पेंट ब्रश उत्पादन का देश का सबसे बड़ा केंद्र है। मेरठ में स्पोर्ट्स गुड्स इंडस्ट्री है। मुरादाबाद हैंडीक्राफ्ट उत्पादों का केंद्र है। रामपुर, मुरादाबाद, बदायूं और बरेली मैंथा उत्पादन के केंद्र हैं। दुनिया का 70 फीसदी मिंट भारत में उत्पादित होता है और इसका अधिकांश हिस्सा उत्तर प्रदेश के इन जिलों में पैदा होता है, जिसकी निर्यात संभावनाएं लगातार बढ़ रही हैं। वहीं कन्नौज इत्र उत्पादन का केंद्र है। लखनऊ में चिकनकरी है तो बनारस में साड़ियों का पारंपरिक केंद्र है। भदोही-मिर्जापुर में कालीन उद्योग है। फिरोजाबाद में ग्लासवेयर और बैंगल्स की इकाइयां हैं। कानपुर और उन्नाव में टैनरीज हैं। वहां बैग, बैल्ट, जूते और शेडलरी का उत्पादन होता है, तो आगरा का शू उद्योग लैदर का इस्तेमाल करने वाला उद्योग है। इन केंद्रों को बड़े क्लस्टरों के रूप में विकसित करने की संभवनाएं हैं।
साथ ही राज्य में पांच से छह अरब डॉलर का मीट निर्यात करने की क्षमता वाले 40 स्लॉटरहाउस यानी मीट प्लांट्स हैं। ये आटोमैटिड हैं और अपीडा में पंजीकृत हैं। निर्यात के साथ ही यह संयंत्र घरेलू लैदर इंडस्ट्री के लिए कच्चे माल (फ्रैश साल्टेड हाइड) की भी आपूर्ति करते हैं। साथ ही जिलेटिन की आपूर्ति भी ये संयंत्र करते हैं जो कैप्सूल बनाने के काम आता है। इसे एक बड़ी बिजनेस संभावना के रूप में देखते हुए नीतिगत फैसले लेने की जरूरत है।
इसके साथ ही राज्य के अधिकांश हिस्सों में एक्सप्रेसवे बनने से ढांचागत सुविधाएं मजबूत हुई हैं जो औद्योगिक विकास के लिए जरूरी है। इसके साथ ही फ्रेट कॉरीडोर बनने से ढांचागत सुविधाएं और बेहतर होंगी।
विभिन्न स्थानों पर स्थित औद्योगिक क्लस्टर्स का किस तरह फायदा उठाया जाता है, उसके लिए उत्तर प्रदेश सरकार और नीति निर्धारकों को तमिलनाडु का उदाहरण देखने की जरूरत है। तमिलनाडु का शिवकासी देश में सबसे कम बारिश वाले इलाके में है। मदुरै से करीब 50 किलोमीटर दूर यह शहर दुनिया भर में पटाखों, सेफ्टी मैच बॉक्स और प्रिटिंग का केंद्र है। यहां की अर्थव्यवस्था दस हजार करोड़ रुपये से अधिक है। जिसके चलते यहां बड़े पैमाने पर रोजगार भी उपलब्ध है और कारोबार के मौके भी हैं।
तमिलनाडु का तिरुपुर जो कोयंबतूर से करीब 40 किलोमीटर दूर है, निटेड गारमेंट्स के निर्यात का देश का सबसे बड़ा केंद्र है। दुनिया के सभी बड़े ब्रांड यहां से गारमेंट्स की आउटसोर्सिंग करते हैं। हर घर कहीं न कहीं इस कारोबार से जुड़ा है और बड़े पैमाने पर गारमेंट मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स हैं जो बेहतर कार्य करने की सुविधाओं वाले उद्योगों के सभी मानकों को पूरा करती हैं और कर्मचारियों को बेहतर वेतन के साथ काम का बेहतर माहौल देती हैं। खासतौर से महिला कर्मचारियों की यहां बड़ी तादाद है। एक समय लुधियाना से निटिंग मशीन लाकर यहां काम शुरू करने वाले बिजनेसमैन अब दुनिया की सबसे बेहतर तकनीक का इस्तेमाल करते हैं। यहां कई ऐसे समूह हैं जो यार्न उत्पादन से लेकर गारमेंट मैन्युफैक्चरिंग तक का सारा काम खुद करते हैं जो उनके मुनाफे को बढ़ाने के साथ वैश्विक बाजार में उन्हें अधिक प्रतिस्पर्धी बनाता है।
तमिलनाडु का कोयंबतूर इंजीनियरिंग और टेक्सटाइल का पुराना हब है और यहां के उत्पादों की मार्केट देश भर में है। इरोड हल्दी प्रोसेसिंग का बड़ा केंद्र है साथ ही सेलम पावरलूम का सेंटर है तो करूर बस कोच बिल्डिंग का केंद्र है। नामक्कल देश की अंडा राजधानी है। देश के सबसे बड़े लॉरी फ्लीट ट्रांसपोर्टर यहां से ही हैं। तमिलनाडु के रानीपेट और आम्बूर में लैदर बैल्ट का उत्पादन होता है तो छत्रपति में सर्जिकल कॉटन उत्पाद बनते हैं जो पूरे देश की जरूरत पूरी करते हैं। नायम में व्हाइट शर्ट का उत्पादन होता है जो कीमत के मामले बहुत ही किफायती हैं।
तमिलनाडु के यह उदाहरण इसलिए दिये गये हैं ताकि जिस तरह तमिलनाडु ने अलग-अलग आर्थिक क्लस्टरों का उपयोग कर राज्य को आर्थिक रूप से मजबूत किया है, उसी तर्ज पर उत्तर प्रदेश सरकार यहां मौजूद क्लस्टरों को मजबूत करे, कारोबार की स्थिति को बेहतर बनाने के लिए जरूरी कदम उठाए और नीतिगत फैसले करे। उसके लिए राज्य के आर्थिक विकास का एक ऐसा रोडमैप बनाना होगा जो इन क्लस्टरों को केंद्र रखकर तैयार किया गया हो।
पिछले कुछ बरसों से उत्तर प्रदेश में वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रॉडक्ट स्कीम को लेकर काफी चर्चा हुई और उसे बहुत महत्वाकांक्षी माना गया है। लेकिन सही मायने में यह बेहतर रणनीति नहीं है। हर जिले को अलग इकाई मानने की बजाय पहले से मौजूद क्लस्टरों में मौजूद संभावनाओं का फायदा उठाया जाए। साथ ही खास बात यह है कि यह क्लस्टर राज्य के सभी हिस्सों में मौजूद हैं, न कि केवल किसी एक हिस्से में। इसलिए इनके जरिये पूरे राज्य में आर्थिक गतिविधियों को मजबूत करना संभव है।
उत्तर प्रदेश की आर्थिक गति के रास्ते में कुछ प्रशासनिक बाधाएं भी हैं। यहां सब फैसले दो जगह होते हैं लखनऊ और इलाहबाद। इन दोनों जगह पर जो फैसले होते हैं वह पूरे राज्य पर असर छोड़ते हैं। लखनऊ की नौकरशाही और इलाहबाद की अदालतों का विकेंद्रीकरण जरूरी है ताकि फैसलों के केंद्र राज्य के दूसरे हिस्से भी बन सकें। राज्य केवल लखनऊ या इलाहबाद से न चलकर बाकी जगहों से भी चले तो राज्य में मौजूद आर्थिक संभावनाओं को बेहतर तरीके से उपयोग में लाया जा सकता है। नई सरकार के रोडमैप में सत्ता विकेंद्रीकरण का एजेंडा भी शामिल किया जाना चाहिए।