भारत की एग्रोकेमिकल इंडस्ट्री में 2027-28 तक हर साल 9% ग्रोथ की संभावना
भारत की एग्रोकेमिकल इंडस्ट्री इस समय करीब 10.3 अरब डॉलर की है, यह वित्त वर्ष 2027-28 तक 14.5 अरब डॉलर की हो जाएगी। वर्ष 2022-23 में भारत से 5.4 अरब डॉलर के एग्रोकेमिकल का निर्यात हुआ। वर्ष 2018-19 से लेकर 2022-23 तक इसमें सालाना 14% की वृद्धि हुई।
भारत की एग्रोकेमिकल इंडस्ट्री के मौजूदा वित्त वर्ष से लेकर 2027-28 तक हर साल 9% बढ़ने की उम्मीद है। सरकारी समर्थन, उत्पादन क्षमता का विस्तार, घरेलू और निर्यात बाजार में वृद्धि तथा लगातार इनोवेटिव प्रोडक्ट के आने से यह संभव हो सकेगा। रिस्क मैनेजमेंट और मॉनिटरिंग कंपनी रूबिक्स डाटा साइंसेज ने अपनी मासिक रिपोर्ट में यह जानकारी दी है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की एग्रोकेमिकल इंडस्ट्री इस समय करीब 10.3 अरब डॉलर की है, यह वित्त वर्ष 2027-28 तक 14.5 अरब डॉलर की हो जाएगी। वर्ष 2022-23 में भारत से 5.4 अरब डॉलर के एग्रोकेमिकल का निर्यात हुआ। वर्ष 2018-19 से लेकर 2022-23 तक इसमें सालाना 14% की वृद्धि हुई।
रिपोर्ट में कहा गया है कि निर्यात में यह वृद्धि आयात के बिल्कुल विपरीत है। समान अवधि में निर्यात में औसतन 6% सालाना की वृद्धि हुई है। इस तरह देखा जाए तो शुद्ध निर्यातक के रूप में भारत की स्थिति मजबूत हुई है।
रिपोर्ट के अनुसार एग्रोकेमिकल सेक्टर में हर्बिसाइड का निर्यात काफी बेहतर रहा है। इसके निर्यात में वर्ष 2018-19 से 2022-23 के दौरान हर साल औसतन 23% की वृद्धि हुई है। इस अवधि में भारत के कुल एग्रोकेमिकल निर्यात में हर्बिसाइड का हिस्सा 31% से बढ़कर 41% हो गया है।
भारत से एग्रोकेमिकल का निर्यात कई प्रमुख बाजारों में हुआ है। ब्राजील, अमेरिका, वियतनाम, चीन और जापान इनका आयात करने वाले शीर्ष पांच देश हैं। भारत से एग्रोकेमिकल के कुल निर्यात में इन देशों का हिस्सा 2018-19 में 48% था जो अब 65% के आसपास पहुंच गया है।
भारत में घरेलू स्तर पर एग्रोकेमिकल का प्रयोग सिर्फ 0.6 किलो प्रति हेक्टेयर के आसपास है। यह एशियाई देशों के औसत और विश्व औसत दोनों से बहुत कम है। विश्व औसत 2.4 किलो प्रति हेक्टेयर और एशियाई देशों का औसत 3.6 किलो प्रति हेक्टेयर है। रिपोर्ट के अनुसार कम इस्तेमाल यह दर्शाता है कि भारत में इसके बाजार के विस्तार की अभी अनेक संभावनाएं हैं।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इस सेक्टर के लिए आगे की राह में कई चुनौतियां भी हैं। एक तो विश्व अर्थव्यवस्था में जो अनिश्चितता है, वह अपने आप में एक जोखिम है। चीन जैसे स्थापित खिलाड़ी की ओर से प्रतिस्पर्धा का दबाव बढ़ रहा है। जलवायु परिवर्तन भी परिस्थितियों में बदलाव ला रहा है। बारिश का अनुमान लगाना मुश्किल होता जा रहा है, जिससे कृषि का पैटर्न बाधित हुआ है। इन वजहों से फसलों की उत्पादकता प्रभावित हुई है।