रूरल वॉयस विशेषः खुले में पशु प्रबंधन की आधुनिक टेक्नोलॉजी है वर्चुअल फेंसिंग, जानिए कैसे करता है काम
पहले किसान बांस और लकड़ियों, तार आदि से फेसिंग करते थे। लेकिन नई तकनीक विकसित होने के साथ पशुओं को बिना नुकसान पहुंचाए सोलर फेंसिग और इलेक्ट्रॉनिक फेंसिग का इस्तेमाल होने लगा। अब इससे आगे बढ़ते हुए वर्चुअल फेंसिग, लेजर आधारित फेंसिग, ड्रोन फेंसिग, इंट्रीग्रेटेड स्मार्ट फेंसिग का प्रचलन बढ़ रहा है
खेतों में खड़ी फसलों को पशुओं और जंगली जानवरों से नुकसान कोई नई समस्या नहीं है। उत्तर प्रदेश के किसान तो अनेक बार इस समस्या को उठा चुके हैं। खेतों को इन पशुओं से बचाना हो या उन्हें एक तय दायरे में रखना हो, इसके लिए काफी मेहनत औऱ संसाधनों की जरूरत होती है। इसके लिए फेंसिंग की जरूरत पड़ती है। पहले किसान बांस और लकड़ियों, तार आदि से फेसिंग करते थे। लेकिन नई तकनीक विकसित होने के साथ पशुओं को बिना नुकसान पहुंचाए सोलर फेंसिग और इलेक्ट्रॉनिक फेंसिग का इस्तेमाल होने लगा। अब इससे आगे बढ़ते हुए वर्चुअल फेंसिग, लेजर आधारित फेंसिग, ड्रोन फेंसिग, इंट्रीग्रेटेड स्मार्ट फेंसिग का प्रचलन बढ़ रहा है। टेक्नोलॉजी कन्सल्टेंट डॉ. शिव कुमार ने वर्चुअल फेसिंग की तकनीक और इसके फायदे के बारे में रूरल वॉयस के एग्री टेक शो में जानकारी दी। इस शो को आप ऊपर दिए गए वीडियो लिंक पर क्लिक करके देख सकते हैं।
डॉ. शिव कुमार ने बताया कि देश के अलग हिस्सों में जंगली सूअर, नीलगाय और लावारिश पशुओं से फसलों को काफी नुकसान होता है। किसानों के लिए यह बड़ी समस्या बन कर उभर रही है। वन क्षेत्र के नजदीक क्षेत्र वाले एरिया में नुकसान अधिक होता हैं। फसलों की सुरक्षा के लिए फेंसिग की विभिन्न तकनीक विकसित की गई है। पहले किसान बांस, लकड़ी, तार आदि से फेसिंग से करते थे। लेकिन इनसे पशुओं को शारीरिक नुकसान होता है। इसलिए टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करते हुए नई तकनीक विकसित हुई है। किसान सोलर फेसिंग, लेजर आधाऱित फेंसिग, वायरलेस आधारित फेंसिग, इंट्रीग्रेटेड स्मार्ट फेंसिग और बड़े एरिया के लिए ड्रोन टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर सकते हैं। इन फेसिंग में पशुओं को नुकसान नहीं होता है।
उन्होंने कहा कि हाल के दिनों में इंटरनेट ऑफ थिंग्स, इंटरनेट कनेक्टिविटी, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) ने कृषि में उत्पादन बढ़ाने से लेकर खेती में आ रही समस्याओं का समाधान आसान बनाया है। उन्होंने बताया कि आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड सहित कई देशों में पशुओं से फसलों को बचाने और खुले में निश्चित परिधि में दुधारू पशुओं को पालने के लिए वर्चुअल फेसिंग का प्रयोग किया जा रहा है। जब पशु खेत में प्रवेश करता है या दायरे से बाहर जाता है तो सेंसर से इसका पता लगाया जा सकता है।
डॉ कुमार ने ऑप्टिकल फाइबर टेक्नोलॉजी से वर्चुअल फेंसिंग के बारे में बताया कि पहले किसी डेवलपर को जीपीएस और आरएफआईडी इनेबल्ड सॉफ्टवेयर की मदद से एक वर्चुअल बाउंड्री बनानी पड़ती है। पशुओं की निगरानी की जगह पर गूगल मैप में जाकर एक बाउंड्री बना दी जाती है। इसके बाद एपीआई की मदद से मोबाइल ऐप बनाया जाता है। इसे उसी निधार्रित दायरे के अंदर सेट किया जाता है। यानी वह डिवाइस सिर्फ उसी दायरे में काम करेगी। उससे बाहर जाने या अन्दर कुछ होने पर एलर्ट नोटिफिकेशन देने लगेगी। इसकी मदद से जंगली सूअर, नीलगाय और लवारिश पशुओं को आसानी से ट्रैक किया जा सकता है। कोई पशु दायरे के अंदर या बाहर जाता है तो मोबाइल पर उसका एलर्ट मेसेज आ जाता है।
डॉ शिव कुमार ने ड्रोन फेसिंग के बारे में भी बताया। इस तकनीक का इस्तेमाल बड़े स्तर पर किया जा सकता है। पशुओं को बड़े चारागाह में रखने या पशुओं की आवाजाही पर निगरानी के लिए इसका इस्तेमाल किया जा सकता है।
भेल के पूर्व एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर डॉ. बाबूलाल, जो इस समय राजस्थान में गांव में रहकर लोगों को जागरूक कर रहे हैं, ने वर्चुअल फेंसिग टेक्नालॉजी के बारे में बताया कि वायरलेस आधारित फेंसिग सिस्टम, इंट्रीग्रेटेड स्मार्ट फेंसिग और बड़े एरिया के लिए ड्रोन टेक्नॉलोजी का इस्तेमाल करके पशुओं की आवाजाही पर निगरानी रख सकते हैं। सीसीटीवी कैमरा लगाकर पशुओं की वास्तिक स्थिति और जगह का भी पता लगाया जा सकता है। जरूरत है कि समुदाय स्तर पर गांवों में इसका इस्तेमाल किया जाए जिससे छोटे किसान भी फायदा उठा सकें।
डॉ बाबूलाल ने कहा कि इस समय गांवों में लावारिश पशुओं से किसान काफी परेशान हैं। राजस्थान में अभी भी बड़े चारागाह हैं। वहां किसान पशुओं की निगरानी के लिए वर्चुअल फेसिंग की तकनीकों का इस्तेमाल कर सकते हैं।