धान के बीज में ड्वार्फिज्म वायरस नहीं, अगले सीजन में बीज के रूप में हो सकता है इस्तेमाल
आईएआरआई के कृषि वैज्ञानिकों ने धान में बौनेपन की समस्या का हल ढूंढा है। धान के बीज में ड्वार्फिज्म वायरस नहीं पाया गया। इसके चलते अगले साल बीज के रूप में इस साल की फसल का इस्तेमाल किया जा सकता है। यह वायरस बीमार पौधे से स्वस्थ पौधे पर व्हाइट ब्राउन प्लांट हापर कीट द्वारा वायरस पहुंचता है
हाल ही में हरियाणा, पंजाब , उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में धान में आई नई अचानक बीमारी से धान के बौने हो गए हो रहे थे । किसान से लेकर राज्य सरकार से केन्द्र सरकार परेशान हो गई थी । इस रोग की समस्या के कारण और निवारण का हल कृषि वैज्ञानिकों द्वारा खोज लिया गया है। कृषि वैज्ञानिकों ने इस रोग कारण की पहचान सदर्न राइस ब्लैक-स्ट्रीक्ड ड्वार्फ वायरस (एसआरबीएसडीवी) जिसे फिजी वायरस भी कहा जाता है के रूप में की है । जिसके काऱण धान के पौधे में बौनापन हो जाता है । भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) के कृषि वैज्ञानिकों ने पौधे में वायरस की उपस्थिति की जांच हर स्तर पर की । आईएआरआई के डायरेक्टर डॉ. ए.के. सिंह के मुताबिक प्रयोगशाला में धान की दुधिया अवस्था के दानों का भी टेस्ट भी किया गया लेकिन वायरस उपस्थित पौधों के दानों में धान ड्वार्फिज्म वायरस नहीं पाया गया। इसलिए यह राहत की बात है यह बीज जनित रोग नहीं है। इसलिए अगले साल बीज के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
आईएआरआई के डायरेक्टर द्वारा इस संबंध में जारी एक सूचनात्मक विडियो के मुताबिक धान में बौनेपन की समस्या फिजी वायरस के कारण होती है। यह बीमार पौधे से स्वस्थ पौधे पर व्हाइट ब्राउन प्लांट हापर ( डब्ल्यूबीपीएच ) कीट के जरिये फैसला है। किसान इसे सफेद फूदका कीट,चेपा के नाम से जानते है यह कीट वायरस की वाहक कीट है। जो बीमार पौधे से स्वस्थ पौधे में पहुंचाता है जिसके कारण पौधे में बौनापन आ जाता है। चूंकि वायरस का निदान नहीं है इसलिए किसानों को डब्ल्यूबीपीएच कीट के नियंत्रण के लिए कीटनाशक दवा छिड़काव करना चाहिए। डब्ल्यूबीपीएच नियमित रूप से फसल की निगरानी करनी चाहिए. जिससे धान बौनापन रोग फैलने से रोका जा सके।
उन्होंने बताया कि सफेद फूदका कीट जो धान की निचली सतह पर बैठकर रस चूसते हैं। धान बीमार पौधे से स्वस्थ पौधे पर इस रोग को फैलाते हैं । इस पर उनका नियंत्रण करना जरूरी जिससे कि बौना रोग का प्रसार न हो। उन्होंने बताया कि पेक्सालान, ओशिन औऱ टोकन नामक दवा का प्रयोग करना चाहिए। इसके लिए प्रति एकड़ दवा की मात्रा संस्तुत है उसका मात्रा किसान प्रयोग करे ।
इस बीमारी से पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में धान के खेतों में पांच फीसदी से लेकर 15 फीसदी तक धान की फसल इस बीमारी से प्रभावित हुई थी जिसको लेकर सरकार से लेकर किसान और कृषि वैज्ञानिक काफी चिंतित थे।