सिर्फ 10 रुपए में कीजिए दूध में मिलावट की जांच, एनडीआरआई करनाल ने विकसित की स्ट्रिप
दूध से ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए दूध में एसएनएफ बढ़ाने और नकली दूध बनाने के भी नए-नए तरीके अपनाए जा रहे हैं, जिसे सिंथेटिक दूध कहते हैं। इस तरह के दूध को बनाने के लिए यूरिया, ग्लूकोज और डिटर्जेंट पाउडर, रिफाइंड तेल, स्टार्च मिलाया जाता है। इस सिंथेटिक दूध को असली दूध के साथ मिलाया जाता है ताकि यह बिल्कुल असली दूध जैसा हो जाए
यह तो सभी जानते हैं कि दूध पीना सेहत के लिए फायदेमंद होता है, लेकिन पता नहीं कब ये दूध जहर बनकर आपके सामने आ जाए। अधिक मुनाफा कमाना के लिए मुनाफाखोर दूध में ठोस पदार्थ सालिड नोट फैट यानि एसएनएफ को बढ़ाने के लिए डिटरजेंट, यूरिया और सिंथेटिक स्टार्च समेत कई ऐसी चीजें मिलाते हैं जो सेहत के लिए काफी खतरनाक होते हैं। दूध में मिलावट की जांच ग्राहक स्तर पर ना होने से मिलावट करने वाले इसका फायदा उठाते हैं। नेशनल डेयरी रिसर्च इंस्टीट्यूट (एनडीआरआई) करनाल ने ऐसा मिल्क टेस्टिंग किट बनाया है जो काफी सस्ता है और बहुत कम समय में दूध में मिलावट का पता लगाया जा सकता है। एनडीआरआई करनाल में डेयरी केमेस्ट्री प्रिंसिपल साइंटिस्ट डॉ. राजन शर्मा ने रूरल वॉयस के साथ चर्चा में मिल्क टेस्टिंग किट के बारे में जानकारी दी। इस शो को आप ऊपर दिए गए वीडियो लिंक पर क्लिक करके देख सकते हैं।
डॉ. शर्मा के अनुसार दूध में पानी मिलावट का तरीका बहुत पुराना है। लैक्टोमीटर से आप दूध में पानी की मिलावट की जांच कर सकते हैं। लेकिन अब दूध से ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए दूध में एसएनएफ बढ़ाने और नकली दूध बनाने के भी नए-नए तरीके अपनाए जा रहे हैं, जिसे सिंथेटिक दूध कहते हैं। इस तरह के दूध को बनाने के लिए यूरिया, ग्लूकोज और डिटर्जेंट पाउडर, रिफाइंड तेल, स्टार्च मिलाया जाता है। इस सिंथेटिक दूध को असली दूध के साथ मिलाया जाता है ताकि यह बिल्कुल असली दूध जैसा हो जाए। खोया और पनीर काफी मात्रा में सिंथेटिक दूध से तैयार किया जाता है, जिसकी त्यौहारों में सप्लाई की जाती है।
दूध की अम्लता यानि खट्टापन को छिपाने के लिए न्यूट्रालाइजर मिलाते हैं। इसी तरह दूध में एसएनएफ बढ़ाने के लिए चीनी की मात्रा मिलाई जाती है। दूध की सेल्फ लाइफ बढ़ाने के लिए हाइड्रोजन परऑक्साइड मिलाया जाता है, जो भारतीय खाद्य सुऱक्षा मानक एवं मानक प्राधिकरण द्वारा प्रतिबंधित है। दूध में रासायनिक मिलावट औऱ हानिकारक तत्वों की जांच करने वाली मशीनों की कीमत 5 लाख से 80 लाख तक होती है। यही कारण है कि सिर्फ चुनिंदा लैब में ही दूध की क्वालिटी जांच की जाती है। दूध जांच के सबसे पुराने तरीकों में एक केमिकल टेस्टिंग के लिए काफी स्किल की जरूरत होती है और इसे हर कोई नहीं कर सकता है।
डॉ. राजन शर्मा ने कहा, इसलिए हमें एक ऐसी तकनीक की जरूरत थी, जो न केवल सस्ती हो, बल्कि कोई भी इसका इस्तेमाल बिना किसी परेशानी के कर सके। एनडीआरआई करनाल ने एक दूध परीक्षण किट विकसित की है जो काफी सस्ती है और बहुत कम समय में दूध में मिलावट का पता लगा सकती है। स्ट्रिप की मदद से दूध में यूरिया, स्टार्टर, डिटर्जेंट पाउडर, ग्लूकोज न्यूट्रलाइजर, रिफाइंड तेल और हाइड्रोजन परऑक्साइड की मात्रा की जांच की जा सकती है। मिलावट की जांच के लिए संस्थान ने आठ तरह की स्ट्रिप विकसित की है। स्ट्रिप को दूध में डुबोया जाता है। इससे सिर्फ 8-10 मिनट में दूध में मिलावट की जांच की जा सकती है।
हर मिलावटी तत्व के लिए अलग स्ट्रिप होती है। दूध में मिलावट हो तो स्ट्रिप का रंग बदल जाता है, जिसके आधार पर पता लगाया जा सकता है कि दूध में कितनी मिलावट है। उन्होंने कहा कि दूध में फैट प्रतिशत बढ़ाने के लिए वनस्पति तेल मिलाया जाता है लेकिन वनस्पति तेल दूध में नहीं घुल सकता है। इसे दूध में मिलाने के लिए डिटर्जेंट पाउडर का इस्तेमाल किया जाता है। दूध में अगर डिटर्जेंट पाउडर मिलाया गया है तो स्ट्रिप का रंग नीला हो जाता है।
दूध में यूरिया का पता लगाने के लिए एक पीले कागज की स्ट्रिप विकसित की गई है। इसे दूध में डुबोया जाता है। अगर दूध में यूरिया का मिलावट है तो पीली स्ट्रिप लाल रंग की हो जाती है। अगर दूध में यूरिया की मिलावट नही है तो स्ट्रिप गुलाबी या पीले रंग की हो जाती है । इसका परिणाम तीन मिनट में आ जाता है।
डॉ. राजन ने कहा कि मिलावटी दूध में ग्लूकोज और चीनी मिलाने से एसएनएफ की मात्रा बढ़ जाती है। उन्होंने कहा कि दूध में 100 मिलीलीटर प्राकृतिक ग्लूकोज 5 मिलीग्राम होता है। इसका परीक्षण करने के लिए स्ट्रिप को दूध में डुबोने के दस मिनट के बाद चक किया जाता है। अगर स्ट्रिप का रंग लाल हो जाए तो दूध में ग्लूकोज और चीनी की मिलावट है। मिलावट नहीं तो स्ट्रिप सफेद रहती है। इससे खोआ, दही में ग्लूकोज और चीनी के मिलावट की जांच की जा सकती है।
डॉ राजन के अनुसार मिलावट करने वाले दूध की अम्लता यानि खट्ठापन छिपाने और दूध की सेल्फ लाइफ बढ़ाने के लिए न्यूट्रालाइजर, जैसे सोडियम हाइड्रोआक्साइड , सोडियम कार्बोनेट और सोडियम बाईकार्बोनेट मिलाते हैं, जो एफएसएसएआई द्वारा प्रतिबंधित है। दूध में न्यूट्रलाइजर का पता लगाने के लिए एक स्ट्रिप विकसित की गई है। अगर दूध में न्यूट्रालाइजर मिलाया गया है तो स्ट्रिप का रंग पीला और गहरा हरा हो जाता है, अन्य़था हल्का हरा रंग का दिखता है।
डॉ राजन ने कहा कि इसका सबसे बड़ा फायदा दूध संग्रह केंद्रों पर है जहां किसान पांच से 10 लीटर दूध लेकर आते हैं। उन जगहों पर इस स्ट्रिप के माध्यम से दूध की गुणवत्ता की जांच कर सकते हैं। इसका उपयोग बड़े डेयरी फार्मों पर भी किया जा सकता है। इसके लिए लैब की जरूरत नहीं है। इससे दूध की गुणवत्ता जांचना और उपभोक्ताओं तक शुद्ध दूध पहुंचाना बेहद आसान है।
डॉ शर्मा ने कहा कि देश की डेयरी कंपनियां अपने दूध की गुणवत्ता की जांच के लिए इस स्ट्रिप का उपयोग कर रही हैं। इससे दूध में मिलावट करने वाले बिचौलियों पर अंकुश लग सकता है। उन्होंने कहा कि इस स्ट्रिप से सभी आठों जांच करने में महज 10 से 12 रुपये का खर्च आता है। सभी जांच 8 से 10 मिनट में ही पूरी कर ली जाती हैं।
रूरल वॉयस ने करनाल के एक उद्यमी किसान बब्बर सिंह से बात की, जो डालमास लिमिटेड नामक कंपनी चलाते हैं। मिल्क क्वालिटी टेस्ट स्ट्रिप किट का प्रसार करने के साथ-साथ वह स्वयं इस किट का उपयोग करते हैं। डेयरी टेक्नोल़ॉजी से बीटेक करने वाले बब्बर सिंह ने बताया, जब हमें मिल्क क्वालिटी टेस्ट स्ट्रिप के बारे में पता चला, तो मैंने एनडीआरआई करनाल से संपर्क किया। उन्होंने कहा आजकल दूध में मिलावट की बड़ी समस्या है। दूध की गुणवत्ता की जांच के लिए इस तकनीक की बाजार में अच्छी मांग है। बब्बर सिंह ने कहा कि हमने टेक्नोल़ॉजी मार्केटिग के लिए एनडीआरआई के साथ समझौता किया है और सरकारी और निजी डेयरी प्रतिष्ठानों से संपर्क करके हम उन्हें यह स्ट्रिप दे रहे हैं। इससे उनके दूध संग्रह केंद्र संग्रह पर दूध की गुणवत्ता में सुधार होता है। इस किट के माध्यम से दूध में किसी तरह की मिलावट का पता प्राथमिक स्तर पर ही लग जाता है। उन्होंने कहा, एनडीआरआई करनाल द्वारा विकसित स्ट्रिप तकनीक से दूध में कम से कम मिलावट का भी पता लग जाता है।