कृषि निर्यात बढ़ाने के लिए क्षेत्रीय अवसरों पर ध्यान देना जरूरी
राजस्थान कृषि निर्यात में 1.5 प्रतिशत का योगदान करता है। सरसों, ग्वार, चना, दाल, सोयाबीन, तिलहन और बीज मसालों के उत्पादन में इसका बड़ा हिस्सा है
केंद्र सरकार की व्यापक कृषि निर्यात नीति 2018 में प्रसंस्करण, मूल्यवर्धन और निर्यात पर जोर दिया गया था। इसका लक्ष्य कृषि प्रसंस्करण के बुनियादी ढांचे के विकास के लिए निवेश बढ़ाना और कृषि की निर्यात क्षमता का दोहन करना था। इस नीति को राज्य और जिला स्तर पर लागू करने के लिए राज्य विशिष्ट कृषि निर्यात कार्ययोजनाएं तैयार की गईं और विभिन्न योजनाओं के माध्यम से सहायता प्रदान की गई। इसके साथ प्रसंस्करण, मूल्यवर्धन, निर्यात और आयात प्रतिस्थापन के प्रचार-प्रसार पर भी जोर दिया गया।
केंद्र और राज्य सरकारों के विभिन्न मंत्रालयों और एजेंसियों को शामिल करके कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) ने निर्यात को बढ़ावा देने के लिए समूहों की पहचान की। एक जिला, एक उत्पाद (ओडीओपी) और मेगा फूड पार्क (एमएफपी) को लागू किया जिससे विभिन्न जिलों से कृषि निर्यात में तेजी लाने के लिए आधुनिक ढांचागत सुविधाएं उपलब्ध कराई जा सकें।
राजस्थान से कृषि निर्यात की संभावनाएं
2019-20 में राजस्थान के जीएसडीपी में कृषि और संबद्ध क्षेत्रों ने 25.56 प्रतिशत का योगदान दिया। राज्य से कृषि निर्यात को बढ़ावा देने के लिए राजस्थान कृषि प्रसंस्करण, कृषि व्यवसाय और कृषि निर्यात संवर्धन नीति 2019 के साथ एपीडा ने जीरा, इसबगोल और धनिया के फसल विशिष्ट समूहों पर विशेष जोर दिया। कृषि निर्यात को बढ़ावा देने के लिए बुनियादी सुविधाओं के विकास और राज्य विशिष्ट नीतियां तैयार करने के लिए अतिरिक्त संसाधन आवंटित किए गए।
एपीडा ने फसल विशिष्ट समूहों और भारतीय मसाला बोर्ड ने पहली बार राजस्थान से बीजीय मसालों का निर्यात बढ़ाने के लिए टास्क फोर्स का गठन किया है। सभी जानते हैं कि फिलहाल बीजीय मसालों के उत्पादन में राजस्थान का हिस्सा 60 प्रतिशत है और प्रदेश को बीजीय मसालों का हब कहा जाता है। अब एपीडा और भारतीय मसाला बोर्ड ने बीजीय मसालों, मूंगफली, तिल, ग्वार जैसी अन्य फसलों, औषधीय पौधों और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों का निर्यात बढ़ाने के लिए राजस्थान को एक संभावित राज्य के रूप में प्राथमिकता दी है। राजस्थान सरकार ने हाल ही मसाला प्रकोष्ठ स्थापना की है, जिससे राज्य में मसालों का उत्पादन, विपणन, प्रसंस्करण, अनुसंधान एवं निर्यात को बढ़ावा दिया जा सके।
राजस्थान के दूरदराज के मरुस्थलीय क्षेत्रों में स्थित विषम जलवायु में भी मसाला उत्पादन किया जा रहा है। कम लागत में अच्छी पैदावार के साथ ही इससे अच्छी आय मिल जाती है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा बीज मसाला उत्पादक देश है। दुनिया की करीब 60 प्रतिशत मसाला आपूर्ति भारत से ही होती है। देश में हर साल अनुमानित 12.50 लाख हैक्टेयर में मसालों की खेती होती है, जिससे करीब 10.5 लाख टन मसालों का उत्पादन होता है। इनमें जीरा और धनिया करीब 10 लाख हैक्टेयर क्षेत्र में उगाया जाता है।
मसाला मूलतः वनस्पति उत्पाद या उनका मिश्रण होता है, जो खाद्य पदार्थों को सुगंधित बनाने तथा स्वाद बढ़ाने में इस्तेमाल किया जाता है। यह अनेक बीमारियों से छुटकारा दिलाता है। राजस्थान के किसानों ने राज्य को एक समृद्ध कृषि केंद्र में बदलने का एक उत्कृष्ट उदाहरण पेश किया है।
राजस्थान कृषि निर्यात में 1.5 प्रतिशत का योगदान करता है। सरसों, ग्वार, चना, दाल, सोयाबीन, तिलहन और बीज मसालों के उत्पादन में इसका बड़ा हिस्सा है। खाद्य तेल और प्रोटीन का एक महत्वपूर्ण स्रोत, मूंगफली और तिल, राजस्थान में व्यापक रूप से उगाई जाने वाली महत्वपूर्ण तिलहन फसलें हैं। इसी तरह, बागवानी फसलों के मामले में राजस्थान में अजवायन, मेंहदी, इसबगोल, सब्जियों और फलों में संतरे और अनार का उत्पादन काफी उत्पादन होता है।
वर्षों से यहां संरक्षित खेती में उच्च तकनीक वाले बुनियादी ढांचे को अपनाया गया है, जिसने क्लस्टर आधारित और मांग उन्मुख उत्पादन योजना का मार्ग प्रशस्त किया है। साथ ही पशुपालन में भी इसका योगदान उत्कृष्ट है। हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा भारत से अमेरिका को अनार (पॉमग्रेनेट) और अनार के दानों (पॉमग्रेनेट एरिल) के निर्यात की अनुमति राजस्थान के अनार किसानो के लिए मील का पत्थर साबित होगी।
सुगंधित और बीजीय मसाले वाली फसलें
कृषि जैव विविधता में समृद्ध राजस्थान अद्वितीय सुगंधित पौधों का उत्पादन करता है। यह जीरा, धनिया, सौंफ, अजवायन, तिल और सौंफ जैसे पौधों के लिए भी जाना जाता है जिनमें औषधीय गुण होते हैं। यहां क्षेत्र विशेष फसलों का भी उत्पादन होता है जिनमें मोठ बीन, ग्वार, नागौरी पान मेथी, मेथी, इसबगोल और मेहंदी शामिल हैं। मूल्यवर्धित बीजीय मसाले और कच्चे मसाले अब राजस्थान से चीन, बांग्लादेश, अमेरिका, यूरोप, मिस्र, मध्य पूर्व और दक्षिण-पूर्व एशियाई सहित 135 से अधिक देशों में निर्यात किए जाते हैं।
जैविक उत्पादन में शीर्ष पर
राजस्थान जैविक खेती में भाग लेने वाले भारत के सबसे बड़े राज्यों में से एक है, जिसमें पंजीकृत जैविक कृषि क्षेत्र 80,000 हेक्टेयर से अधिक है। इसने शुष्क पश्चिमी राजस्थान में बागवानी फसलों से आय सृजन में एक और आयाम जोड़ा है। उत्पादों के प्रमाणीकरण और विपणन, फसल कटाई के बाद प्रबंधन, कृषि प्रसंस्करण और फलों और सब्जियों के मूल्यवर्धन के साथ विशेष जैविक खेती प्रथाओं पर किसानों को शिक्षित करके इसे आगे बढ़ाया गया। एकीकृत कीट प्रबंधन (आईपीएम) आधारित उत्पादन छोटे किसानों के बीच लोकप्रिय हो रहा है, जो बाजार में प्रीमियम पर बिकता है। एग्रीगेटर और निर्यातक भी इसे किसानों से खरीदते हैं।
किसानों के हित में
हाल ही गुणवत्ता और अवशेष मुक्त उत्पादन करने और उत्पादन प्रौद्योगिकी को लोकप्रिय बनाने के प्रयास में भारत सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) ने जोधपुर में एसएबीसी में पश्चिमी शुष्क क्षेत्र के लिए बायोटेक किसान हब की स्थापना की। प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए डीबीटी-एसएबीसी बायोटेक किसान हब आधुनिक उपकरणों और तकनीकों के साथ छोटे किसानों तक पहुंचा।
इन्क्यूबेशन केंद्र
राजस्थान में कृषि प्रसंस्करण, कृषि व्यवसाय और कृषि निर्यात संवर्धन नीति, 2019 के कार्यान्वयन के साथ कृषि निर्यात का पारिस्थितिकी तंत्र धीरे-धीरे विकसित हो रहा है। किसानों को प्रोसेसर और निर्यातकों से जोड़ने जैसे बाजार प्रोत्साहन के साथ भंडारण और प्रसंस्करण सुविधाओं की स्थापना को बढ़ावा मिला है। विशिष्ट फसलों और प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों की संभावनाएं बढ़ी हैं। इसके अलावा, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के विभिन्न संस्थानों और राज्य कृषि विश्वविद्यालयों (एसएयू) में कृषि और खाद्य इन्क्यूबेशन सुविधाओं की स्थापना ने कृषि निर्यात के अवसर प्रदान किए हैं।
भविष्य में संभावनाएं
कृषि निर्यात में तेजी लाने के लिए राजस्थान को उद्यमियों, स्टार्टअप, कृषि व्यवसायों और किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) की पहचान और सुविधाओं पर ध्यान देने की जरूरत है। इससे राज्य से कृषि खाद्य निर्यात की संभावनाओं के बारे में जागरूकता पैदा होगी। गहन प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करने और मेगा कृषि खाद्य पार्कों और इन्क्यूबेशन केंद्रों में कृषि उद्यमियों को संसाधनों के आवंटन और प्रणाली के क्षमता विकास को प्राथमिकता देने में मदद मिलेगी। राज्य को गुणवत्ता मानकों, प्रमाणन, पंजीकरण और स्वच्छता उपायों और वित्तीय प्रोत्साहनों पर हितधारकों की सहायता करनी चाहिए। यह कृषि वस्तुओं और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों के निर्यात की प्रक्रिया को सुगम बनाने में सहायता करेगा।
राजस्थान के जोधपुर और कोटा में खाद्य और कीटनाशक अवशेष परीक्षण सुविधा स्थापित करने की सख्त आवश्यकता है। एपीएमसी की प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने, जैविक उत्पादन के पंजीकरण की प्रक्रिया को सरल बनाने, कृषि उद्योग को राजस्थान से कच्चे माल की आपूर्ति बढ़ाने और खाद्य तथा मसाला पार्क में बुनियादी ढांचे में बदलाव करने से वास्तविक कृषि खाद्य निर्यात को प्रोत्साहन मिलेगा।
(लेखक दक्षिण एशिया जैव प्रौद्योगिकी केंद्र के संस्थापक निदेशक और एपीडा के बोर्ड सदस्य हैं)