टेक्नोलॉजी और कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से ढाई लाख करोड़ सालाना की इंटीग्रेटेड इंडस्ट्री बन गई पोल्ट्री फार्मिंग
जिस तरह से पोल्ट्री फार्मिंग एक बड़े कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग और इंटीग्रेटेड बिजनेस के रूप में स्थापित हुई है, उसके पीछे टेक्नोल़ॉजी, रिसर्च, निवेश और मार्केट का एक मिक्स है। बेहतर कमाई और कम जोखिम के चलते अनेक किसान पर्यावरण नियंत्रित और ओपन फार्म में निवेश कर अच्छी कमाई कर रहे हैं।
राजनांदगांव, छत्तीसगढ़
पोल्ट्री फार्मिंग और बिजनेस को लेकर कुछ आंकड़े आपको चौंका सकते हैं। हर हफ्ते देश के संगठित पोल्ट्री फार्म्स में 14 करोड़ चिक्स प्लेस होते हैं। यानी साल में करीब 728 करोड़ चिक्स। करीब दस फीसदी मोर्टेलिटी रेट्स को शामिल करने के बाद औसतन दो किलो की 650 करोड़ बर्ड हर साल बाजार में बिकने के लिए तैयार होती है। उनका कुल वजन करीब 1300 करोड़ किलो बैठता है। औसतन 200 रुपये किलो के खुदरा मूल्य के आधार पर पोल्ट्री का सालाना कारोबार ढाई लाख करोड़ रुपये से अधिक तक पहुंच गया है। इससे पोल्ट्री फार्मिंग किसानों को 15 हजार करोड़ रुपये अधिक की कमाई हो रही है, जो उनको एक दिन के चूजे यानी डे ओल्ड चिक्स (डीओसी) के फार्म में आने से 40 से 45 दिन के साइकल में उसे दो किलो या उससे अधिक की बर्ड के रूप में तैयार करने के लिए ग्रोइंग चार्जेस (जीसी) और इंसेंटिव के रूप में मिलती है। डीओसी सप्लाई करने वाली इंटीग्रेटर कंपनी बर्ड को फार्म से ही खरीदारों को बेच देती है, जहां से यह देश भर के पोल्ट्री मार्केट्स में पहुंचती है।
राजनांदगांव जिले के मुंडगांव स्थित हैचरीज में पोल्ट्री फार्म में भेजने के तैयार डे ओल्ड चिक (डीओसी)। फोटो: हरवीर सिंह, रूरल वॉयस
देश में कुछ दशक पहले तक मुर्गी पालन को छोटे और भूमिहीन किसानों द्वारा घर के पिछवाड़े की जाने वाली एक असंगठित फार्मिंग के रूप में ही देखा जाता था। बचे हुए खाने और मामूली फीड के सहारे मुर्गियों को तैयार कर बेचा जाता था। अब भी भूमिहीन किसानों के लिए बैकयार्ड पोल्ट्री की सरकारी योजनाओं के जरिए उनको आय के एक अतिरिक्त स्रोत देने के प्रयास जारी हैं। लेकिन जिस तरह से पोल्ट्री फार्मिंग एक बड़े कांट्रैक्ट फार्मिंग और इंटीग्रेटेड बिजनेस के रूप में स्थापित हुई है, उसके पीछे टेक्नोल़ॉजी, रिसर्च, निवेश और मार्केट का एक मिक्स है। बेहतर कमाई और कम जोखिम के चलते बड़े पैमाने पर किसान इनवार्यनमेंटली कंट्रोल्ड (ईसी) फार्म, सेमी ईसी और ओपन फार्म में निवेश कर मोटी कमाई की ओर आकर्षित हो रहे हैं। यहां किसान को इंटीग्रेटर कंपनी के सहारे ही धंधा करना है। इसके लिए जमीन तो अधिक नहीं चाहिए, लेकिन बड़ी पूंजी की जरूरत है।
ऐसे ही एक किसान, मिलिंद उत्तलवार राजानंदगांव जिले के सुकुदेहान गांव में ब्रॉयलर फार्म चलाते हैं। चालीस साल के उत्तलवार का राजनांदगांव में इलेक्ट्रानिक्स उत्पादों का बिजनेस भी है। उन्होंने रूरल वॉयस को बताया कि वे छह साल से पोल्ट्री फार्मिंग कर रहे हैं। उन्होंने 13 हजार मुर्गियों की क्षमता वाले दो ईसी शेड स्थापित किये हैं। शेड और इक्विपमेंट पर उन्होंने करीब 60 लाख रुपये का निवेश किया जो 450-500 रुपये प्रति बर्ड बैठता है। इन फार्म को कंप्यूटर कंट्रोल्ड पैनल से संचालित किया जाता है जो डीओसी से लेकर मुर्गी के दो किलो वजन होने तक अलग-अलग समय की जरूरत के मुताबिक तापमान, नमी, हवा और फीड व पानी की आपूर्ति को नियंत्रित करता है।
इन शेड में चारे और पीने के पानी की आटोमैटिक लाइन (प्रत्येक 30 मुर्गियों के लिए एक पैन और 10-12 मुर्गियों के लिए एक पानी का निप्पल), एग्जॉस्ट और एयर सर्कुलेशन पंखे, कूलिंग पैड, लाइटिंग और डीजल ब्रूडर (शुरुआती कुछ दिनों में चूजों को गर्म रखने के लिए) हैं। मुर्गियों के बढ़ने के लिए अधिकतम तापमान पहले तीन दिनों में 32-34 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए, जो धीरे-धीरे 12-24 दिनों के दौरान 26-28 डिग्री और 35 दिनों के बाद 24 डिग्री या उससे कम हो जाता है।
मिलिंद ने रूरल वॉयस को बताया कि वे हर साल 26 हजार मुर्गियों के छह चक्र (साइकल) निकालते हैं। उन्हें हर बैच में दस लाख रुपये तक की कमाई हो जाती है। इसमें दस रुपये प्रति बर्ड का बेसिक जीसी रेट होता है। कम फीड में ब्रॉयलर का अधिक वजन, कम मोर्टेलिटी रेट और बाजार में अधिक दाम मिलने पर कंपनी इंसेंटिव भी देती है।
आईबी ग्रुप की राजनांदगांव जिले के मुंडगांव स्थित हैचरीज में हैचिंग प्रक्रिया में उपयोग होने वाली सैटर मशीन
मिलिंद का फार्म राजानंदगांव स्थित आईबी ग्रुप ने स्थापित किया है। सालाना 11 हजार करोड़ रुपये से अधिक टर्नओवर वाले आईबी ग्रुप की मालिकाना कंपनी एबीआईएस एक्सपोर्ट्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड देश की इंटीग्रेटेड पोल्ट्री बिजनेस की सबसे बड़ी कंपनियों में शुमार है। राजनांदगांव मुख्यालय वाली एबीआईएस एक्सपोर्ट्स - जिसका पहला नाम इसके संस्थापकों आमिर, बहादुर, इकबाल और सुल्तान अली के नाम के पहले अक्षर से लिया गया है।
एबीआईएस के प्रेसिडेंट डॉ. आरके जायसवाल ने रूरल वॉयस को बताया कि कंपनी के संस्थापक एवं चेयरमैन सुल्तान अली और संस्थापक एवं मैनेजिंग डायरेक्टर बहादुर अली ने 1982-83 में राजनांदगांव में 200 बर्ड्स के छोटे से फार्म और रिटेल शॉप से पोल्ट्री बिजनेस की शुरुआत की थी। वहां से आगे बढ़ते हुए एबीआईएस देश की सबसे बड़ी इंटीग्रेटेड पोल्ट्री बिजनेस कंपनियों में शुमार हो गई।
एबीआईएस के संस्थापक एवं मैनेजिंग डायरेक्टर बहादुर अली
कंपनी ईसी और ओपन फार्म किसानों को डीओसी की आपूर्ति करने के साथ ही फीड, मेडिसिन, क्लीनिंग मेटीरियल और वेटेरिनरी सर्विस देती है। यह किसानों से ब्रॉयलर्स वापस लेकर उनकी बिक्री करती है। यानी किसान को केवल डीओसी को बिक्री के लायक तैयार करने तक का काम करना है। उसका फार्म को चलाने और रखरखाव पर ही खर्च होता है। उसे तैयार बर्ड्स की मार्केटिंग की कोई चिंता नहीं होती है। कंपनी ने सभी किसानों और बर्ड्स खरीदने वाले कारोबारियों को एप के माध्यम से जोड़ा हुआ है। किसानों की एप पर उनका हर दिन का डाटा फीड होता है। जबकि खरीदारों के एप पर उनके नजदीक के फार्म में उपलब्ध मार्केटेबल बर्ड्स की जानकारी मिलती है।
राजनांदगांव जिले की ही डोंगरगढ़ तहसील के देवकट्टा गांव के रहने वाले 38 वर्षीय किसान रघुवेंद्र वर्मा के पास 2.5 एकड़ जमीन है, जिसमें से एक एकड़ में वह खेती करते हैं। बाकी 1.5 एकड़ जमीन पर वे दो पर्यावरण-नियंत्रित (ईसी) पोल्ट्री शेड में ब्रॉयलर मुर्गियां पालते हैं। एक की क्षमता11,000 और दूसरे शेड की 9,000 बर्ड्स की है। रूरल वॉयस से बातचीत में राघवेंद्र कहते हैं कि 35-45 ग्राम के एक दिन के चूजे (डीओसी) से लेकर उनके लगभग 2.5 किलोग्राम वजन तक की बर्ड तैयार होने में लगभग 37 दिन लगते हैं।
वर्मा भी साल में छह चक्र चलाते हैं, जिनमें से प्रत्येक लगभग 60 दिनों का होता है। इसमें कचरा हटाने, फर्श की सफाई और उपकरणों की प्रेशर वॉशिंग के लिए 20 दिनों का ‘डाउनटाइम’ भी शामिल है। पिछले साल (मध्य मई 2023 से मध्य मई 2024 तक) उनके छह बैच में कुल 3,20,865 किलोग्राम वजन की मुर्गियां तैयार हुईं।
कांट्रेक्ट फार्मिंग की सफलता
वर्मा के फार्म में डोंगरगढ़ तहसील के मुंडगांव में आईबी ग्रुप की ब्रॉयलर हैचरी से डीओसी आते हैं। यह कंपनी उन्हें मुर्गियों के लिए फीड और फार्म की सफाई के केमिकल्स (कॉपर सल्फेट, फॉर्मेलिन, ब्लीचिंग पाउडर और हाइड्रोक्लोरिक एसिड) भी उपलब्ध कराती है।
ब्रॉयलर फीड तीन तरह के होते हैं। इनमें प्री-स्टार्टर (जब चूजे 12 दिनों में 400 ग्राम के हो जाते हैं), स्टार्टर (12 से 25 दिन, जब वे 1,300 ग्राम तक के हो जाते हैं) और फिनिशर (25 दिनों के बाद) शामिल हैं। कुल मिलाकर एक मुर्गी दो किलोग्राम तक वजन बढ़ने के लिए लगभग 3,300 ग्राम फीड और 2.5 किलोग्राम के लिए 4,000 ग्राम फीड खाती है।
वर्मा को मुर्गियां पालने के लिए कम से कम 10 रुपये प्रति किलोग्राम मिलते हैं। जो ईसी फार्म के ग्रोइंग चार्ज का बेस रेट (आधार दर) है। बाजार में कीमत बढ़ने, कम मृत्यु दर, औसत से अधिक वजन और कम चारे की खपत के लिए उन्हें भी इन्सेंटिव मिलता है। पिछले साल वर्मा को 14.89 रुपये प्रति किलोग्राम का औसत रेट मिला। इस तरह 3,20,865 किलोग्राम के लिए उनकी कुल आय 47.78 लाख रुपये रही। मजदूरी, बिजली, डीजल और चावल की भूसी (चूजों के लिए बेड के तौर पर इस्तेमाल की जाती है) पर होने वाले खर्च को घटाने के बाद, जो लगभग 2.5 लाख रुपये प्रति चक्र या 15 लाख रुपये सालाना है, उन्होंने 32-33 लाख रुपये कमाए। वर्मा ने दो पर्यावरण-नियंत्रित शेड पर 90 लाख रुपये का निवेश किया है।
पर्यावरण नियंत्रित बनाम ओपन फार्म
खैरागढ़-छुईखदान-गंडई जिले की खैरागढ़ तहसील के शिकारी टोला गांव के पांच एकड़ के किसान दिगेश्वर सिन्हा (30) के पास 2,500 मुर्गियों के लिए 3,300 वर्ग फुट का छोटा सा ओपन पोल्ट्री हाउस है। एक सामान्य शेड, फीडर और ड्रिंकर, पंखे, स्प्रिंकलर और गर्मी से बचने के लिए जूट के पर्दे, लकड़ी के बुरादे से जलने वाले बुखारी या गैस ब्रूडर उनके फार्म में है। दिगेश्वर सिन्हा ने रूरल वॉयस को बताया कि उन्होंने इस ओपन फार्म पर केवल नौ लाख रुपये है। एक गैस ब्रूडर 800-1,500 मुर्गियों के लिए पर्याप्त होता है, जबकि डीजल ब्रूडर 5,000 बर्ड्स के लिए पर्याप्त है।
खैरागढ़-छुईखदान-गंडई जिले की खैरागढ़ तहसील के शिकारी टोला गांव के किसान दिगेश्वर सिन्हा । फोटो: हरवीर सिंह, रूरल वॉयस
ओपन फार्म में प्रत्येक चूजे के लिए अधिक जगह की आवश्यकता होती है (ईसी शेड में 0.65 वर्ग फुट की तुलना में 1.3-1.4 वर्ग फुट)। यहां पाली जाने वाली मुर्गियों की मृत्यु दर आम तौर पर अधिक होती है (10-12% बनाम 3-5%)। मुर्गियों का वजन 2 किलोग्राम (34-35 बनाम 32-33 दिन) और 2.5 किलोग्राम होने में भी अधिक समय लगता है।
हालांकि, सिन्हा अपने परिश्रम से फार्म का प्रबंधन अच्छी तरह करते हैं। पिछले चक्र में 2,520 मुर्गियों में से केवल 71 की मृत्यु हुई। उनके यहां से बिकने वाली मुर्गियों का कुल वजन 5,954 किलोग्राम, यानी औसत 2.43 किलोग्राम था। उनके यहां 9,480 किलोग्राम फीड की खपत हुई। इस तरह उनका कन्वर्जन अनुपात 1.59 था। यह पर्यावरण-नियंत्रित शेड के लिए रहने वाली 1.45-1.6 की सीमा के भीतर था। ओपन फार्म जगहों के लिए कम से कम पालन शुल्क 8 रुपये प्रति किलोग्राम है, जबकि आईबी ग्रुप ने उन्हें 13.25 रुपये प्रति किलोग्राम का भुगतान किया। कुल 78,890 रुपये की आय में से 21,000 रुपये का खर्च घटाने के बाद उस बैच से उनका मुनाफा लगभग 58,000 रुपये रहा। वे भी एक साल में छह साइकल (चक्र) चलाते हैं।
एबीआईएस एक्सपोर्ट्स के साथ देश भर में उत्तलवार, वर्मा और सिन्हा जैसे 30,000 से ज़्यादा ब्रॉयलर किसान हैं। उन्हें एक दिन के चूजे (प्रत्येक की कीमत 28 रुपये, उन्हें गम्बोरो/संक्रामक बर्सल रोग और न्यूकैसल रोग के लिए पहले से टीका लगाया जाता है), चारा (40 रुपये प्रति किलोग्राम) और तकनीकी इनपुट (हर चक्र के दौरान 5-6 बार सुपरवाइजर आते हैं) दिए जाते हैं। कंपनी पूरी तरह विकसित मुर्गियों की भी मार्केटिंग करती है जिन्हें व्यापारी सीधे उनके फार्म से उठाते हैं।
ब्रॉयलर इंटीग्रेटर - संगठित पोल्ट्री फार्मिंग
देश में इंटीग्रेडेट पोल्ट्री फार्मिंग को एक कामयाब कांट्रैक्ट फार्मिंग में तब्दील करने की शुरुआत कोयंबटूर स्थित सुगुना फूड्स ने की थी। पूरे भारत में ब्रॉयलर फार्मों में हर सप्ताह लगभग 14 करोड़ डीओसी दिए जाते हैं। इनमें आईबी ग्रुप/एबीआईएस और सुगुना हर सप्ताह एक से 1.1 करोड़ डीओसी की सप्लाई करती हैं। अन्य प्रमुख ब्रॉयलर इंटीग्रेटर में वेंकटेश्वर हैचरीज (वीएच) ग्रुप, बारामती एग्रो और प्रीमियम चिक फीड्स (दोनों पुणे में) और शालीमार ग्रुप (कोलकाता) हैं। प्रत्येक समूह हर सप्ताह 30-60 लाख चूजों की सप्लाई करता है। आईबी समूह के 30,000 किसानों में से लगभग 40% के पास पर्यावरण-नियंत्रित शेड हैं। हर शेड में 9-10 हजार से लेकर 24-25 तक चूजे होते हैं।
ब्रॉयलर उद्योग आज यकीनन भारत का सबसे संगठित और इंटीग्रेटेड कृषि व्यवसाय है। पोल्ट्री इंटीग्रेटर्स के पास अपने स्वयं के फीड प्लांट के साथ कॉमर्शियल ब्रॉयलर हैचरी भी होती हैं। आईबी/एबीआईएस के पास 10 हैचरी हैं - दो राजनांदगांव में हैं। इनके अलावा राजपुरा (पंजाब), मुजफ्फरपुर (बिहार), जगदीशपुर (उत्तर प्रदेश), जलपाईगुड़ी (पश्चिम बंगाल), नागांव (असम), जाजपुर (ओडिशा), औरंगाबाद (महाराष्ट्र) और कोलार (कर्नाटक) में हैचरीज हैं। इनमें लगाई गई मशीनों में हर साल चूजे तैयार करने के लिए 65 करोड़ से ज्यादा अंडे लोड करने की क्षमता है। डीओसी को 12-15 घंटों के भीतर ब्रॉयलर फार्म तक पहुंचा दिया जाता है। कंपनी के पास आठ फीड प्लांट हैं। बदनावर (मध्य प्रदेश) में 2,000 टन प्रतिदन क्षमता वाली भारत की सबसे बड़ी सोयाबीन प्रसंस्करण इकाई भी है। यह डी-ऑयल्ड केक (सोयामील) की आपूर्ति करती है जो पोल्ट्री फीड में मुख्य प्रोटीन घटक है।
आईबी ग्रुप के ब्रॉयलर हैचरी आपरेशन के हेड अमन भाटिया ने रूरल वॉयस को बताया कि पेरेंट फार्म से लाये गये मुर्गियों के अंडों को कृत्रिम रूप से सेया जाता है। पेरेंट फार्म में मादा और नर दोनों होते हैं। ये अंडे 18.5 दिनों के लिए सही तापमान और नमी पर ‘सेटर’ मशीनों के अंदर रखे जाते हैं। इनके भीतर का वातावरण मुर्गियों द्वारा दिए जाने वाले प्राकृतिक वातावरण के समान होता है। वहां से, उन्हें ‘हैचर’ मशीनों में भेज दिया जाता है, जहां 2.5 दिनों के बाद चूजे बाहर आते हैं।
भाटिया ने बताया कि आईबी की सभी हैचरी मशीनें यूरोपीय कंपनियों - पीटरसाइम (बेल्जियम), हैचटेक और रॉयल पास रिफॉर्म (दोनों नीदरलैंड) से आयात की गई हैं। हैचरी में जाने से पहले अंडे (मुर्गियों में नहीं) में वैक्सीनेशन एक अलग 'इन-ओवो' मशीन के द्वारा किया जाता है। यानी डीओसी के अंडे से बाहर आने के पहले इनका वैक्सीनेशन हो चुका होता है।
बैकवर्ड और फॉरवर्ड इंटीग्रेशन
सुगुना, आईबी/एबीआईएस और वीएच जैसी कंपनियों के पास पेरेंट फार्म और ब्रॉयलर हैचरी होती हैं। पेरेंट फार्म में मादा चूजों को 24-25 सप्ताह तक पाला जाता है और फिर 64-68 सप्ताह तक अंडे देने के लिए उनका संभोग/गर्भाधान किया जाता है। ब्रॉयलर हैचरी में अंडे डीओसी में बदल जाते हैं। कंपनियों के पास मुर्गे और मुर्गियों के ग्रैंड-पेरेंट (जीपी) फार्म भी हैं, जो पेरेंट स्टॉक का उत्पादन करते हैं।
आईबी ग्रुप के पास राजनांदगांव जिले के शिवपुरी और करियागोंडी में दो जीपी फार्म-कम-हैचरी हैं। आईबी ग्रुप अपने जीपी चूजे ब्रॉयलर जेनेटिक्स में विश्व बाजार की अग्रणी कंपनी एविएजन से लेता है। अमेरिका के हंट्सविले स्थित मुख्यालय वाली कंपनी एविएजन का तमिलनाडु में कोयंबतूर के पास उदुमलपेट में एक ग्रेट-ग्रैंड-पैरेंट (जीजीपी) फार्म और हैचरी है। यहां यह अपने ‘रॉस 308 एपी’ ब्रॉयलर नस्ल के जीपी स्टॉक चूजों का उत्पादन करती है। जीजीपी को बढ़ाने और उनके अंडों को सेने के लिए शुद्ध वंशावली वाले स्टॉक चूजों का एविएजन इंडिया अमेरिका से आयात करती है।
भारत में उत्पादित और बेची जाने वाली ब्रॉयलर मुर्गियां मुख्य रूप से रॉस, हबर्ड और कॉब नाम की विदेशी वंशावली (जेनेटिक्स) स्टॉक की होती हैं। रॉस और हबर्ड के जेनेटिक्स का स्वामित्व एविएजन के पास है, जबकि वीएच समूह का अमेरिकी पोल्ट्री जेनेटिक्स कंपनी कॉब-वेंट्रेस के साथ संयुक्त उद्यम है। इन वंशावली की मुर्गियां भारतीय कृषि-जलवायु परिस्थितियों के अनुकूल होती हैं। सुगुना फूड्स ने अपनी खुद की ‘सनब्रो’ ब्रॉयलर नस्ल विकसित की है।
भारतीय ब्रॉयलर उद्योग काफी हद तक बैकवर्ड इंटीग्रेटेड है। इस मामले में यह डेयरी से भी अधिक इंटीग्रेटेड है। लेकिन यह बिजनेस डेयरी की तरह फॉरवर्ड इंटीग्रेटेड नहीं है। डेयरियां ब्रांडेड पाउच दूध, दही, घी, मक्खन, पनीर और आइसक्रीम आदि बेचती हैं, जबकि ब्रॉयलर मुर्गियों को मुख्य रूप से थोक में पोल्ट्री मार्केट में बेचा जाता है, जहां से यह सड़कों के किनारे चलने वाली रिटेल दुकानों में भी पहुंचती हैं।
एबीआईएस एक्सपोर्ट्स की डायरेक्टर जोया आफरीन आलम
एबीआईएस एक्सपोर्ट्स की डायरेक्टर जोया आफरीन आलम ने रूरल वॉयस को बताया कि हम अब फॉरवर्ड इंटीग्रेशन पर जोर दे रहे है। हमें रेडी-टू-कुक और रेडी-टू-ईट मीट के अलावा ड्रेस्ड, चिल्ड और पैक्ड चिकन की ब्रांडेड बिक्री की ओर बढ़ना होगा। इसके लिए उपभोक्ता व्यवहार में बदलाव लाने की आवश्यकता है और इसमें समय लग सकता है। जोया ने बताया कि हम फॉरवर्ड इंटीग्रेशन के लिए दो प्रोसेसिंग प्लांट लगा रहे हैं। इनमें एक प्लांट महाराष्ट्र और दूसरा आंध प्रदेश में होगा। प्रत्येक संयंत्र में 12 हजार बर्ड प्रति घंटा की प्रसंस्करण क्षमता होगी। इनमें बोन ड्रेसिंग, चिलिंग और पैकेजिंग की सारी प्रक्रिया पूरी कर इनको बाजार में भेजा जाएगा।एफएसएसएआई के सभी मानक पूरा करने के साथ ही हमारे उत्पादों की ट्रेसिंग भी संभव होगी ताकि उपभोक्ता का भरोसा बढ़ाया जा सके। ट्रेसिंग से उपभोक्ता जान सकता है कि वह जो उत्पाद खरीद रहा है वह किस फार्म से आया है। हम साल 2026 तक इन संयंत्रों को शुरू करने की योजना पर काम कर रहे हैं। इन संयंत्रों के शुरू होने से पोल्ट्री बिजनेस में हम फॉरवर्ड इंटीग्रेशन को मजबूत कर सकेंगे।
इंडस्ट्री एक्सपर्ट्स का कहना है कि पोल्ट्री बिजनेस को डेयरी उद्योग की तरह फारवर्ड इंटीग्रेशन को बढ़ावा देना होगा। इस मामले में यह अभी उस दौर में जो जिसमें डेयरी उद्योग आठवें दशक में था। फारवर्ड इंटीग्रेशन बढ़ने से जहां पोल्ट्री कंपनियों की प्रति बर्ड अधिक कमाई हो सकेगी वहीं इसका फायदा पोल्ट्री फार्मर्स और उपभोक्ता दोनों को होगा। फिलहाल पोल्ट्री बिजनेस का बैकवर्ड इंटीग्रेशन तो करीब 90 फीसदी तक पहुंच गया है जबकि फॉरवर्ड इंटीग्रेशन का स्तर अभी पांच फीसदी के करीब ही है।