पॉम ऑयल के आयात में दी गई छूट पर घरेलू खाद्य तेल उद्योग को आपत्ति
सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया का कहना है कि पॉम ऑयल के मुक्त आयात की अनुमति देने से कीमतों में कोई गिरावट नहीं आएगी बल्कि घरेलू तेल उद्योग बरबाद हो जाएगा। देश में रिफाइनिंग मिलें पहले से ही कम क्षमता और कम लाभ पर काम कर रही हैं। पिछले डेढ़ साल से रिफाइंड पॉम ऑयल के प्रतिबंधित सूची में होने से इस उद्योग में निवेशकों की अधिक रुचि बढ़ी है। सरकार के इस निर्णय से इसमें निवशकों का मनोबल गिरेगा और इससे किसानों पर भी विपरीत असर पड़ेगा क्योंकि इससे उद्योग पर घरेलू तिलहन की कीमतों को कम करने का दबाव बढ़ेगा
घरेलू खाद्य तेल उद्योग के संगठनों का कहना है कि रिफाइंड पॉम ऑयल के आयात पर प्रतिबंध हटाने के सरकार के फैसले का देश में खाद्य तेल उद्योग और तिलहन उत्पादक किसानों पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। खाद्य तेल उद्योग के संगठन द सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीईए) और सेंट्रल आर्गनाइजेशन ऑफ ऑयल इंडस्ट्री एंड ट्रेड (कॉएट) ने बयान जारी कर यह बात कही है। इन संगठनों का कहना है कि सरकार को रिफाइंड पॉम ऑयल औऱ पॉमोलीन के प्रतिबंध मुक्त आयात के फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए । इन उत्पादों के आय़ात को खुली छूट देने के फैसले से देश मे तेल की घरेलू इकाइयां बर्बाद हो जाएंगी और तिलहन उत्पादक किसानों पर इसका प्रतिकूल असर पड़ेगा।
असल में पिछले एक साल में खाद्य तेलों के दाम बहुत तेजी से बढ़े हैं और खाद्य महंगाई दर में बढ़ोतरी की यह एक बड़ी वजह रही है। कुछ खाद्य तेलों के मामले में खुदरा कीमतें लगभग दो गुनी हो चुकी हैं। इस महंगाई पर अंकुश के लिए सरकार आयात के मोर्चे पर कई फैसले लिए। इनमें पॉम ऑयल की कुछ श्रेणियों को प्रतिबंधित सूची से हटाकर मुक्त आयात की सूची में रखने का आदेश 30 जून को जारी किया। इसी कदम का उद्योग विरोध कर रहा है।
इस संबध में कॉएट के अध्यक्ष सुरेश नागपाल ने रूरल वॉयस कि हमे डर है कि सरकार के इस फैसले से घरेलू तेल उद्योग पर बुरा प्रभाव पड़ेगा । दूसरी तरफ सार्क देशो से आयात की शुल्क मुक्त सुविधा के चलते भी खाद्य तेल आय़ात में भारी बढोतरी होगी। इस आयात से सरकार को राजस्व का भी नुकसान हो रहा है। नागपाल का कहना है कि पिछले साल सार्क देशों से आयात के चलते लगभग 1200 करोड़ रुपये के राजस्व नुकसान हुआ था।
वहीं वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल को लिखे एक पत्र में सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीईए) ने मांग की है कि आऱबीडी पॉम ऑयल औऱ आरबीडी पॉमोलीन के आय़ात को प्रतिबंधित श्रेणी में रखा जाना चाहिए।
एसईए के अध्यक्ष अतुल चतुर्वेदी ने इस पत्र में कहा है कि तेल तिलहन उद्योग 31 दिसंबर, 2021 तक आरबीडी पॉमोलिन और आरबीडी पॉम ऑयल के मुक्त आयात को अनुमति देने के सरकार के फैसले से हैरान है।
एसईए का कहना है कि 8 जनवरी, 2020 से डीजीएफटी की अधिसूचना के माध्यम से आरबीडी पॉमोलीन और आरबीडी पॉम ऑयल के आयात को प्रतिबंधित श्रेणी में रखा गया था जिसका परिणाम यह रहा देश में पामोलीन का आय़ात 2018-19 में 27.3 लाख टन से घटकर साल 2019-20 में 4.21 लाख टन रह गया।
चालू विपणन साल में नवम्बर, 2020 से मई, 2021 की अवधि के दौरान मुश्किल से इस तेल की 21 हजार टन मात्रा ही भारत में आय़ात हुई है।
चतुर्वेदी ने कहा कि हमे लगता है कि खाद्य तेल की बढ़ी कीमतों से मुद्रसफीति पर होने वाले प्रभाव से सरकार की चिंता थोड़ी बढ़ी है। मगर थोक मूल्य सुचकांक (डब्ल्यूपीआई) मे खाद्य तेल का भार केवल 2.64293 फीसदी ही है। ऐसे में तेल की कीमतों को लेकर ज्यादा चिंता नही करनी चाहिए। सरकार को किसानों औऱ उपभोक्ताओं के हितों को ध्यान में रखते हुए संतुलन बनाने की जरूरत है।
अतुल चतुर्वेदी ने कहा कि वनस्पति तेल की बढ़ी कीमतें देश के किसानों के लिए वरदान साबित होंगी क्योंकि इससे देश में निश्चित रूप से तिलहन की खेती का क्षेत्रफल बढ़ेगा जो तेल के आय़ात की निर्भरता को कम करने के लिए सहायक होगा। उन्होंने कहा कि पिछले दो महीनों में वनस्पति तेलों की कीमतों में 25 फीसदी की गिरावट आई है ।
एसईए के अनुसार पॉम ऑयल के मुक्त आयात की अनुमति देने से कीमतों में कोई गिरावट नहीं आएगी बल्कि घरेलू तेल उद्योग बरबाद हो जाएंगे। संगठन का कहना है कि देश में रिफाइनिंग मिलें पहले से ही कम क्षमता और कम लाभ पर काम कर रही हैं। पिछले डेढ़ साल से रिफाइंड पॉम ऑयल के प्रतिबंधित सूची में होने से इस उद्योग में निवेशकों की अधिक रुचि बढ़ी है। सरकार के इस निर्णय से इसमें निवशकों का मनोबल गिरेगा और इससे उन तक एक गलत संदेश जाएगा। इसके साथ आरबीडी पॉमोलीन औऱ आरबीडी पॉम ऑयल को खुली आयात की छूट देने से किसानों पर विपरीत असर पड़ेगा क्योंकि इससे घरेलू तिलहन की कीमतों को कम करने का दबाव बढ़ेगा ।
एसईए ने यह भी कहा कि जहां 2 जुलाई, 2021 से लेकर क्रूड पॉम ऑयल (सीपीओ) पर इंडोनेशिया की लेवी और निर्यात शुल्क 291 डॉलर है वहीं आरबीडी पॉमोलीन पर 187 डॉलर प्रति टन का शुल्क है। साथ ही मलयेशिया मे भी रिफायंड पॉम ऑयल की तुलना में सीपीओ पर निर्यात शुल्क 90 डॉलर है। इसलिए हम सरकार से आग्रह करते हैं कि 30 जून,2021 की डीजीएफटी अधिसूचना को वापस लेने और घरेलू खाद्य तेल रिफाइननरों के हित में अन्य रिफायंड तेलो को “प्रतिबंधित” श्रेणी मे रखने का फैसला लिया जाए।