डेयरी स्टार्टअप अक्षयकल्प ऑर्गेनिक का इस वित्त वर्ष 400 करोड़ रुपये रेवेन्यू का लक्ष्य

डेयरी स्टार्टअप अक्षयकल्प ऑर्गेनिक के संस्थापक शशि कुमार ने टेक्नोलॉजी की चकाचौंध भरी दुनिया छोड़ कर अपने परिवार के पारंपरिक पेशे कृषि को अपनाया है। टेक्नोलॉजी क्षेत्र में 17 साल गुजारने के बाद वे न सिर्फ कृषि परिदृश्य को बदल रहे हैं, बल्कि किसानों का जीवन भी बेहतर बना रहे हैं।

डेयरी स्टार्टअप अक्षयकल्प ऑर्गेनिक का इस वित्त वर्ष 400 करोड़ रुपये रेवेन्यू का लक्ष्य

डेयरी स्टार्टअप अक्षयकल्प ऑर्गेनिक के संस्थापक शशि कुमार ने टेक्नोलॉजी की चकाचौंध भरी दुनिया छोड़ कर अपने परिवार के पारंपरिक पेशे कृषि को अपनाया है। टेक्नोलॉजी क्षेत्र में 17 साल गुजारने के बाद वे न सिर्फ कृषि परिदृश्य को बदल रहे हैं, बल्कि किसानों का जीवन भी बेहतर बना रहे हैं। किसानों को स्थायी आजीविका प्रदान करने के लिए 2010 में उन्होंने अक्षयकल्प ऑर्गेनिक की स्थापना की। रूरल वॉयस के एडिटर-इन-चीफ हरवीर सिंह के साथ बातचीत में उन्होंने बताया कि अक्षयकल्प ने कर्नाटक, तमिलनाडु और तेलंगाना में अब तक 1,200 से अधिक किसानों को समृद्ध किया है। ऑर्गेनिक तौर-तरीकों और वैल्यू एडेड डेयरी उत्पादों पर उनका जोर पर्यावरण के लिहाज से भी बेहतर है। उनका लक्ष्य 2024-25 में अक्षयकल्प का टर्नओवर 400 करोड़ रुपये पहुंचाना है, जो पिछले साल 286 करोड़ रुपये था। बातचीत के मुख्य अंश:-

अक्षयकल्प शुरू करने के पीछे क्या विचार था?
मैंने कंप्यूटर विज्ञान में स्नातक की डिग्री ली और विप्रो टेक्नोलॉजीज में करियर शुरू किया। बाद में, मैंने शिकागो में इलिनोइस इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से टेलीकॉम इंजीनियरिंग में मास्टर्स किया। टेक इंडस्ट्री में 17 साल बिताने के बाद मैंने अपने जड़ों की ओर लौटने का फैसला किया। मैं कृषि क्षेत्र में ऐसे बदलाव लाना चाहता हूं जिससे लाखों छोटे और सीमांत किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार हो सके।
मैं किसान परिवार से हूं और दूसरे परिवारों की तरह मेरे पिता भी नहीं चाहते थे कि मैं किसान बनूं। मेरी हमेशा यही इच्छा थी कि मैं अच्छी तरह से पढ़ाई करूं और अच्छी नौकरी हासिल करूं। लेकिन इस क्षेत्र में वर्षों बिताने के बाद, मुझे अपनी जड़ों की ओर लौटने और कृषि क्षेत्र में बदलाव लाने की तीव्र इच्छा महसूस हुई, जिसके कारण अक्षयकल्प की स्थापना हुई।

आप आईटी छोड़कर कृषि में आए तो इसकी शुरुआत कैसे हुई?
मैं बैंगलोर के बाहरी इलाके अट्टीबेले से आता हूं, जो तमिलनाडु की सीमा के पास है। यहीं मेरा जन्म और पालन-पोषण हुआ। मेरे माता-पिता अभी तक वहां खेती करते हैं। मैंने विप्रो के 27 लोगों के साथ खेती में बदलाव पर अनौपचारिक चर्चा की। कॉफी टेबल पर बातचीत के रूप में शुरू हुई यह चर्चा धीरे-धीरे गंभीर होती गई। हम 27 लोगों ने मिलकर 2010 में काम शुरू करने का फैसला किया। उसके लिए हमने ही एक तरह से क्राउड फंडिंग की।
हमने एक एनजीओ शुरू किया और उन गांवों पर ध्यान केंद्रित किया जहां महिलाओं और बच्चों को सहायता की आवश्यकता थी। इनमें से कई लोगों के पास बहुत छोटी जमीन है- एक एकड़ या उससे भी कम जहां पारंपरिक खेती व्यवहार्य नहीं है। हमारा इरादा कृषि उद्यम स्थापित करने में उनकी मदद करना था, जिससे उन्हें स्थायी आजीविका मिल सके।
पहले वर्ष हमने लगभग 25 महिलाओं को एकत्र किया और उनके साथ काम करने लगे। हमने महसूस किया कि इन महिलाओं को अलग-अलग तरह की मदद की आवश्यकता थी। हर कोई उद्यमी नहीं बनना चाहती थीं। उनमें से कई को मनोवैज्ञानिक समर्थन की आवश्यकता थी, क्योंकि वे अपने जीवन में बेहद चुनौतीपूर्ण अनुभवों से गुजरी थीं।
उसके बाद हम किसानों और उनके परिवारों से मिलने लगे। हमने एक परेशान करने वाली प्रवृत्ति देखी कि अनेक लोग खेती छोड़ रहे थे। खेत के मालिक होने के बावजूद वे विभिन्न कारणों से खेती से दूर जा रहे थे, क्योंकि खेती से उन्हें कमाई नहीं हो रही थी। वे नियमित कमाई वाली नौकरी तलाश रहे थे। भले ही कैब ड्राइवर या सिक्युरिटी गार्ड की नौकरी हो, लेकिन उससे नियमित कमाई होती रहे। खेती करने वाले परिवारों को भी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए एक नियमित मासिक आय की आवश्यकता होती है। इन परिवारों के पास एकमात्र संपत्ति उनकी जमीन थी, और इस जमीन से ही उनको स्थिर आय उत्पन्न करने की आवश्यकता थी।
हमने इस बारे में सोचना शुरू किया। हमारा समाधान डेयरी फार्मिंग को एक उद्यम के रूप में स्थापित करना था। डेयरी फार्मिंग किसानों को रोजाना आय देती है। इसके अतिरिक्त खाद के लिए मवेशियों का गोबर होता है जो जैविक कार्बन के साथ मिट्टी को फिर से जीवंत करने में मदद कर सकता है। इससे खेती टिकाऊ और लाभदायक दोनों हो सकती है। पिछले 14 वर्षों में यही हमारा फोकस रहा है। हमने लगभग 1,200 किसानों के साथ काम किया है। उन्हें डेयरी फार्मिंग के माध्यम से एक स्थिर आय हासिल करने में मदद की है।
हमने छोटी डेयरी इकाइयों के साथ छोटी बैकयार्ड पोल्ट्री की भी शुरुआत की। इस तरह के और प्रयास किए। समग्र और टिकाऊ खेती को ध्यान में रखकर इन मॉडलों को विकसित किया गया था। हमने 2011 में दो खेतों से शुरुआत की। प्रत्येक खेत दो या तीन एकड़ का था जिसका स्वामित्व एक किसान के पास था। इन खेतों का प्रबंधन किसान स्वयं करते थे।

आपने ये क्लस्टर कहां स्थापित किए और इनमें कितने किसान शामिल हैं? 
पहला क्लस्टर कर्नाटक के तुमकुर जिले के टिपटूर में, दूसरा तमिलनाडु के चेंगलपट्टू जिले में और तीसरा तेलंगाना के गडवाल जिले में है। टिपटूर में लगभग 1,200 किसान हमारे साथ हैं। चेंगलपट्टू क्लस्टर में 80 और गडवाल में लगभग 50 किसान हैं। कुल मिलाकर इन क्लस्टर में 4,000 एकड़ खेती योग्य भूमि है। वर्तमान में इन किसानों के पास लगभग 16,000 पशु हैं जिनसे हम प्रतिदिन 1.2 लाख लीटर दूध एकत्र करते हैं। टिपटूर क्लस्टर 10 किलोमीटर के दायरे में फैला हुआ है। चेंगलपट्टू और गडवाल के क्लस्टर भी लगभग इतने ही बड़े हैं। 

आप अपने दूध और दूध उत्पाद कहां बेचते हैं? आप तो अपने उत्पादों को प्रीमियम पर बेच रहे होंगे। 
हम अभी बैंगलोर, चेन्नई और हैदराबाद में दूध बेचते हैं। हमारे उत्पाद अक्षयकल्प ब्रांड नाम से बेचे जाते हैं। दूध हमारा मुख्य उत्पाद है। हम इससे पनीर, छाछ और दही जैसे मूल्यवर्धित उत्पाद भी बनाते हैं। हमारा लगभग 40% दूध इन मूल्यवर्धित उत्पादों में जाता है। हम दूध ₹85 प्रति लीटर पर बेचते हैं, जिसमें आम तौर पर लगभग 4% वसा और 8.5% SNF (ठोस-वसा नहीं) होता है। हमारे घी की कीमत ₹1,500 प्रति किलो, पनीर की लगभग ₹800 प्रति किलो, दही की ₹150 प्रति किलो और छाछ की कीमत ₹30 प्रति 200 ग्राम है।

क्या आप अपनी कंपनी का टर्नओवर और लाभ बता सकते हैं?
हमारा टर्नओवर लगभग ₹30 करोड़ प्रति महीना है। पिछले वित्तीय वर्ष में यह ₹286 करोड़ था। लाभ के मामले में, हम बहुत ज़्यादा पैसा नहीं कमा रहे हैं, लेकिन हम ब्रेक इवन (न लाभ, न नुकसान) में हैं। बैंगलोर हमारे लिए बहुत लाभदायक बाजार है, जबकि चेन्नई और हैदराबाद नए बाजार हैं जहां हम अभी कुछ घाटे में चल रहे हैं। 

आप यह कैसे सुनिश्चित करते हैं कि दूध जैविक है?
कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (APEDA) द्वारा नियुक्त प्रमाणन निकाय दूध को जैविक प्रमाणित करते हैं। इसके अतिरिक्त, इसका पालन सुनिश्चित करने के लिए 1,200 एक्सटेंशन अधिकारी किसानों को सेवाएं देते हैं। पशुओं का आहार पूरी तरह से जैविक होता है, जो जैविक रूप से उगाई गई खेती से प्राप्त होता है।

आपकी कंपनी में कर्मचारियों की संख्या कितनी है?
अक्षयकल्प में वर्तमान में करीब 1,000 लोग हैं। इसमें से 200 लोग एक्सटेंशन आउटरीच कार्यक्रमों में काम करते हैं, जिनमें 30 पैरामेडिक्स और 16 पशु चिकित्सक शामिल हैं। शेष विकास अधिकारी हैं जो किसानों के साथ मिलकर उनकी समस्याओं को समझते हैं और उनका समाधान करते हैं। जब कोई पशु बीमार हो जाता है और एंटीबायोटिक्स का उपयोग करना आवश्यक होता है, तो उसके दूध को अलग कर दिया जाता है। फार्म स्तर पर एंटीबायोटिक परीक्षण अनिवार्य है। चूंकि हम पशु चिकित्सा और पैरा चिकित्सा सेवाएं प्रदान करते हैं, इसलिए हमें पता रहता है कि किन फार्मों ने एंटीबायोटिक्स का उपयोग किया है। 

आपके प्रसंस्करण संयंत्र कहां हैं? क्या आप बल्क चिलर का उपयोग करते हैं?
हमारे पास दो प्रसंस्करण संयंत्र हैं। एक तुमकुर जिले के टिपटूर में, जिसकी क्षमता दो लाख लीटर है, और दूसरा चेंगलपट्टू के नीरपेयर में जिसकी क्षमता 40 हजार लीटर है। हम बल्क चिलर का उपयोग नहीं करते हैं। प्रत्येक फार्म में एक इंटीग्रेटेड चिलर है जिसकी क्षमता फार्म के आकार के आधार पर 50 से 200 लीटर तक होती है। दूध दुहने के तुरंत बाद उसे 4 डिग्री सेल्सियस तक ठंडा किया जाता है, जिससे संग्रह केंद्रों की आवश्यकता नहीं रह जाती है। प्रत्येक किसान अपना चिलर चलाता है, और हम उन्हें इसके लिए प्रति लीटर ₹1.50 का अतिरिक्त भुगतान करते हैं।

क्या किसानों को चिलर में निवेश करने की जरूरत है?
किसानों को पहले से निवेश करने की जरूरत नहीं है। चिलर में निवेश लीजिंग कंपनी करती है या किसान और लीजिंग कंपनी मिलकर इसे लगाती हैं। तीन से पांच साल के बाद चिलर पूरी तरह किसान को हस्तांतरित कर दी जाती है। वर्तमान में लीजिंग सिस्टम इसी तरह काम करता है।

आप किसानों से किस कीमत पर दूध खरीद रहे हैं?
हम किसानों को लगभग ₹47 प्रति लीटर का भुगतान करते हैं, साथ ही चिलिंग के लिए अतिरिक्त ₹1.50 देते हैं। यह कुल मिलाकर लगभग ₹48 से ₹50 प्रति लीटर हो जाता है। कुछ खेत बेहतर पशु वंशावली के कारण और भी अधिक कमाते हैं। 

यह किसानों के लिए एक अच्छी कीमत है, लेकिन आप दूध ₹85 प्रति लीटर पर बेच रहे हैं। क्या आपको नहीं लगता कि आप किसानों को जो भुगतान करते हैं और आपकी बिक्री कीमत में बड़ा अंतर है? कुछ सहकारी समितियां उपभोक्ता मूल्य का 80% तक किसान को हस्तांतरित करने का दावा करती हैं।
यह दावा पूरी तरह से सही नहीं है। वे आम तौर पर तरल दूध की कीमत का उल्लेख करती हैं लेकिन औसत रियलाइजेशन पर विचार नहीं करती हैं। हमारे मामले में तरल दूध के लिए औसत रियलाइजेशन लगभग ₹72 प्रति लीटर है। हम स्किम्ड दूध ₹60 और फुल-फैट दूध ₹75 पर बेचते हैं।

किस तरह के लोग आपके उत्पाद को खरीद रहे हैं?
आम तौर पर माता-पिता अपने लिए तो पारंपरिक दूध खरीदते हैं, लेकिन अपने बच्चों के लिए इस जैविक दूध को चुनते हैं। हमारे खरीदार ₹80,000 मासिक आय सीमा में आते हैं। हमारे लगभग 5% ग्राहक उच्च-प्रोफाइल वाले हैं। वे अपना सारा दूध और डेयरी उत्पाद हमसे खरीदते हैं। शेष 95% मध्यम-वर्ग और उच्च-मध्यम-वर्ग के परिवार हैं।

जैविक उत्पादों का बाजार किस दर से बढ़ रहा है? इस वित्तीय वर्ष में आप कितनी वृद्धि की उम्मीद कर रहे हैं?
पिछले पांच सालों में हमने 60% की वृद्धि की है और वर्तमान में हम देश में सबसे बड़े जैविक दूध उत्पादक हैं। मेरा मानना ​​है कि बाजार में साल दर साल 30% वृद्धि की क्षमता है। इस वर्ष हमें लगभग 30-35% वृद्धि की उम्मीद है। हमारा लक्ष्य पिछले साल के ₹286 करोड़ से बढ़कर लगभग ₹400 करोड़ का रेवेन्यू हासिल करना है। इस साल हम प्रॉफिट में भी आ सकते हैं। हम पिछली तिमाही में भी प्रॉफिट में थे।

क्या आपने कुछ फंडिंग भी ली है, और किस वैल्यूएशन पर?
पहले नौ सालों में हम पैसे नहीं जुटा पाए क्योंकि हमारा ध्यान खेती पर था। लेकिन 2019 में जब हमने अपना ध्यान बाजार पर लगाया, तो मैंने ₹40 करोड़ की पूंजी जुटाई। 2022 में हमने ब्रिटिश सरकार और जीरोधा के नितिन कामथ से ₹117 करोड़ जुटाए। फिर दिसंबर 2023 में हमने A91 पार्टनर्स से ₹250 करोड़ जुटाए। वैलुएशन हमारे रेवेन्यू का 1.75 गुना है।

कंपनी में प्रमोटरों की इक्विटी कितनी है?
यह लगभग 5% है। मैं एकमात्र प्रमोटर हूं। मेरे दोस्तों ने 2010 से 2019 तक निवेश किया, उनके पास भी लगभग 25% हिस्सेदारी है।

अभी आपका बाजार तमिलनाडु, तेलंगाना और कर्नाटक में है। क्या आपके पास विस्तार की कोई योजना है?
हम महाराष्ट्र में पुणे बेल्ट में जाने पर विचार कर रहे हैं, जहां से हम मुंबई और पुणे दोनों बाजारों को आपूर्ति कर सकते हैं।

आप पारंपरिक रिटेल चेन के माध्यम से बेच रहे हैं या अन्य प्लेटफॉर्म का भी उपयोग करते हैं?
अभी, हमारा सबसे बड़ा चैनल तीन शहरों में अक्षयकल्प ऐप है। ऐप से हर महीने ₹18 करोड़ का राजस्व आता है। लोग ऐप डाउनलोड करते हैं, अग्रिम भुगतान करते हैं और सदस्यता लेते हैं। अक्सर 30 दिन पहले भुगतान करते हैं क्योंकि हमारे पास सरप्लस नहीं है। इसलिए उन्हें अपना ऑर्डर सुरक्षित करना होता है। दूसरा चैनल बिगबास्केट, ब्लिंकिट और जोमैटो जैसे ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म हैं, जो लगभग ₹10 करोड़ का राजस्व देते हैं। हम एक डिजिटल-फर्स्ट ब्रांड हैं, और भारत में पहली बार कोई डेयरी कंपनी डिजिटल-फर्स्ट हुई है। आम तौर पर डेयरी ऑफलाइन बाजार है, लेकिन हम सब कुछ ऑनलाइन बेचते हैं। लगभग 8-10% रेवेन्यू ही ऑफलाइन स्टोर से आता है।

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