एग्री स्टार्टअप नर्चर ने चावल मूल्य श्रृंखला को टिकाऊ बनाने के लिए आंध्र-तेलंगाना में शुरू किया पायलट प्रोजेक्ट
एग्रीटेक स्टार्टअप नर्चर डॉट फार्म ने चालू रबी सीजन 2023-24 के लिए सतत चावल कार्यक्रम शुरू किया है। इस कार्यक्रम का मकसद खेती के तरीकों को सुव्यवस्थित करने वाली तकनीकों को लागू करके चावल मूल्य श्रृंखला को टिकाऊ बनाना है। साथ ही आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और पानी संरक्षण प्रौद्योगिकियों का लाभ उठाकर किसानों की ज्यादा से ज्यादा मदद करना, डाटा इकट्ठा करना, मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार करना और कृषि उत्पादकता को बढ़ावा देकर किसानों, खरीदार और पर्यावरण के लिए स्थायी परिणाम हासिल करना है।
एग्रीटेक स्टार्टअप नर्चर डॉट फार्म ने चालू रबी सीजन 2023-24 के लिए सतत चावल कार्यक्रम शुरू किया है। इस कार्यक्रम का मकसद खेती के तरीकों को सुव्यवस्थित करने वाली तकनीकों को लागू करके चावल मूल्य श्रृंखला को टिकाऊ बनाना है। साथ ही आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और पानी संरक्षण प्रौद्योगिकियों का लाभ उठाकर किसानों की ज्यादा से ज्यादा मदद करना, डाटा इकट्ठा करना, मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार करना और कृषि उत्पादकता को बढ़ावा देकर किसानों, खरीदार और पर्यावरण के लिए स्थायी परिणाम हासिल करना है। तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के धान किसानों के लिए इसे शुरू किया गया है।
नर्चर डॉट फार्म (Nurture.farm) के सस्टेनेबिलिटी हेड हर्षल सोनावणे ने रूरल वॉयस से कहा, "सैकड़ों किसानों ने धान की खेती के तरीके को बदलकर बदलाव का नेतृत्व करने का संकल्प लिया है और हमारे कार्यक्रम में शामिल हुए हैं। कार्यक्रम के कार्यान्वयन की निगरानी आंध्र प्रदेश के मरुतेरु के रीजनल एग्रीकल्चर स्टेशन के एसोसिएट डायरेक्टर डॉ. एम. भरतलक्ष्मी के नेतृत्व और मार्गदर्शन में कृषि-उद्योग विशेषज्ञों और शोधकर्ताओं की मदद से की जा रही है।"
कार्यक्रम को सफल बनाने में मदद करने के लिए इस संस्थान की साझेदारी के अलावा यूपीएल एसएएस के सीईओ आशीष डोभाल जैसे कृषि-उद्योग के बड़े लोग अपना समर्थन, मार्गदर्शन और संसाधन दे रहे हैं। डोभाल ने कहा, "भारत चावल का सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता है, जो दुनिया के कुल चावल उत्पादन का 21 फीसदी उत्पादित करता है। अकेले धान की खेती कुल जीएचजी उत्सर्जन में 1.5% का योगदान देती है। इसके अलावा, इसकी खेती में बहुत अधिक पानी की आवश्यकता होती है। पानी से भरे खेतों में मिट्टी के कार्बनिक पदार्थों का अपघटन होता है, जिससे मीथेन उत्सर्जन होता है और मिट्टी की गुणवत्ता पर असर पड़ता है। इससे अक्सर पोषक तत्वों का रिसाव होता है और मिट्टी का क्षरण होता है जिससे कृषि उत्पादकता कम हो जाती है। इसे रोकने या कम करने के लिए टिकाऊ खेती प्रथाओं में परिवर्तन की आवश्यकता है।"
उन्होंने कहा, "सतत चावल कार्यक्रम एक उज्जवल, समावेशी और बेहतर कल के लिए लचीली और टिकाऊ कृषि पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण का मुख्य मिशन है। यह कार्यक्रम महत्वाकांक्षी है क्योंकि यह शुरू से अंत तक कार्यान्वयन प्रदान करने और सुधार में मदद करने का वादा करता है। उपज की गुणवत्ता, मिट्टी का स्वास्थ्य, रकबा, इनपुट उपयोग और पानी की खपत को अनुकूलित करना, फसल चक्र को छोटा करना, कृषि उत्पादकता को बढ़ावा देना और जीएचजी पर लाभप्रदता और मापने योग्य स्थायी प्रभाव को सुनिश्चित करते हुए खेती की लागत को कम करने में यह कार्यक्रम मददगार है।"
सोनावणे ने कहा, "हमें इस पहल को शुरू करने पर गर्व है क्योंकि यह इतिहास बनाने और टिकाऊ कृषि के बड़े नैरेटिव में योगदान करने का एक अवसर है, जो प्रकृति के साथ सद्भाव में विकास के एक नए युग की शुरुआत करने में मदद करता है। यह कार्यक्रम टिकाऊ चावल के दूसरे कार्यक्रमों से अलग है।"
उन्होंने बताया कि किसानों को नर्चर डॉट फार्म ऐप पर सीधे और डिजिटल टच प्वॉइंट के माध्यम से कार्यक्रम में शामिल किया जाता है। हम सुनिश्चित करते हैं कि हिस्सा लेने वाले किसानों को बड़े पैमाने पर अच्छी कृषि प्रथाओं और टिकाऊ चावल की खेती की तकनीकों के लिए प्रशिक्षित किया जाए और जमीनी स्तर पर प्रथाओं के कार्यान्वयन की लगातार निगरानी की जाए। इसके अलावा, इस कार्यक्रम में भाग लेने वाले किसानों को प्रतिस्पर्धी वित्तीय प्रोत्साहन मिलेगा, वे उपज अनुकूलन तकनीकों के बारे में सीखेंगे, मिट्टी के स्वास्थ्य को लेकर उनकी समझ बढ़ेगी और चावल की लाभदायक और टिकाऊ खेती सुनिश्चित करने के लिए जमीन पर हमारी टीम के लोगों से उन्हें सलाह और समर्थन दिया जाएगा।
यह कार्यक्रम मीथेन उत्सर्जन को 50 फीसदी तक कम करने, धान की खेती में पानी के उपयोग को 30 फीसदी तक कम करने, किसानों के लिए इनपुट लागत को 500 रुपये प्रति एकड़ तक कम करने और उपज में 10 फीसदी तक सुधार करने में मदद करेगा।
नर्चर डॉट फार्म के सस्टेनेबल राइस कार्यक्रम का उद्देश्य छोटे किसानों को शिक्षित और प्रशिक्षित करना, प्रौद्योगिकी और जानकारी तक उनकी पहुंच बढ़ाना और उपज, मिट्टी के स्वास्थ्य और पर्यावरण से समझौता किए बिना लाभकारी खेती करने में उनकी मदद करना है। इस पायलट प्रोजेक्ट को आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में 10,000 एकड़ तक लागू किया जा रहा है।2030 तक इसे 10 लाख एकड़ से अधिक करने का लक्ष्य रखा गया है। इस कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए अभी तक 5,000 से अधिक किसानों ने रजिस्ट्रेशन करा लिया है। इस कार्यक्रम को पूरे चावल मूल्य श्रृंखला को टिकाऊ बनाने और बड़े पैमाने पर किसानों के लिए उचित मूल्य सुनिश्चित करने के लिए डिजाइन किया गया है।