जलवायु अनुकूल खेती में ग्राम उन्नति की पहल, किसानों को ज्यादा आय, प्रति एकड़ 4000 लीटर पानी भी बचाया
ग्राम उन्नति ने स्थानीय जिला प्रशासन, स्थानीय मक्का प्रोसेसर, इनपुट कंपनियों और प्रमुख किसानों के साथ मिलकर 18 महीने की अल्प अवधि में 2,000 किसानों को जलवायु के अनुकूल फसलों की ओर जाने के लिए प्रेरित किया जो व्यावसायिक रूप से भी व्यवहार्य हों। यह लाखों भारतीय किसानों के लिए एक सीख हो सकती है
ऐसे समय में जब दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाएं गिरते भूजल स्तर के कारण स्थायी खेती के रास्ते तलाश रही हैं, एकीकृत एग्रीटेक सॉल्यूशन कंपनी ग्राम उन्नति ने उत्तराखंड के उधम सिंह नगर जिले में इस दिशा में बड़ी पहल की है। इसने किसानों की मदद के लिए कई हितधारकों के साथ मिलकर काम किया जिससे 5,000 एकड़ से अधिक खेत में जलवायु के अनुकूल खेती करते हुए प्रति एकड़ 4,000 लीटर पानी बचाने में मदद मिली है।
ग्राम उन्नति ने स्थानीय जिला प्रशासन, स्थानीय मक्का प्रोसेसर, इनपुट कंपनियों और प्रमुख किसानों के साथ मिलकर 18 महीने की अल्प अवधि में 2,000 किसानों को जलवायु के अनुकूल फसलों की ओर जाने के लिए प्रेरित किया जो व्यावसायिक रूप से भी व्यवहार्य हों। यह लाखों भारतीय किसानों के लिए एक सीख हो सकती है।
ग्राम उन्नति के सीईओ और संस्थापक अनीश जैन ने कहा, “परियोजना की सफलता ऐसे समय में आई है जब हम दुनिया भर में पानी की गंभीर कमी से जूझ रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार 2050 तक पांच अरब से अधिक लोग पानी की कमी से प्रभावित हो सकते हैं। भारत, जहां विश्व की 16% आबादी रहती है, के पास विश्व के जल संसाधनों का केवल 4% है। उत्तराखंड में हमारी पायलट परियोजना की सफलता से अन्य किसान भी बिना उपज और रिटर्न पर प्रभाव डाले जलवायु के अनुकूल फसलों की ओर जाने के लिए प्रेरित होंगे।”
उधम सिंह नगर और उत्तर प्रदेश के आसपास के इलाकों (रामपुर, बरेली और पीलीभीत) में किसान परंपरागत रूप से रबी की फसल के बाद और खरीफ की बुवाई से पहले कम अवधि की धान की फसल लेते हैं। शोध के आधार पर ग्राम उन्नति ने मक्का को ग्रीष्मकालीन धान के एक उचित विकल्प के रूप में पहचाना। मक्का न केवल छोटी अवधि की फसल है, बल्कि इसमें धान की तुलना में कम पानी की आवश्यकता होती है। इस पर आय भी अधिक होती है। इसका इस्तेमाल भी भोजन के अलावा चारा और फीड में होता है।
जैन के अनुसार, “पायलट प्रोजेक्ट में 5,000 एकड़ भूमि में मक्का बुवाई की गई जिससे 4,000 लीटर प्रति एकड़ पानी की पर्याप्त बचत हुई। समान भूमि पर 25 प्रतिशत अधिक उपज मिली। यह 'प्रति बूंद अधिक फसल' का एक अच्छा उदाहरण है।” जैन ने कहा कि ऊधमसिंह नगर में परियोजना की सफलता ने ग्राम उन्नति को नई चुनौतियां स्वीकार करने के लिए प्रोत्साहित किया है।