असामान्य तापमान, डीएपी संकट और रिजर्व बैंक की मुश्किलें

ऐसे में जब रिजर्व बैंक अपनी द्विमासिक मौद्रिक नीति की समीक्षा बैठक में नीतिगत ब्याज दरों और कैश रिजर्व रेश्यो जैसे मुद्दों पर फैसला लेगा तो समिति के जेहन में खाद्य महंगाई दर और कृषि उत्पादन सबसे ऊपर रहेंगे।

असामान्य तापमान, डीएपी संकट और रिजर्व बैंक की मुश्किलें

पिछले सप्ताह जीडीपी के सात तिमाही के निचले स्तर पर पहुंचने के आंकड़ों ने पहले से ही परेशान भारतीय रिजर्व बैंक और सरकार की मुश्किलें बढ़ी दी हैं। महंगाई दर पहले ही रिजर्व बैंक की तय सीमा से ऊपर है वहीं अक्तूबर और नवंबर में तापमान का स्तर सामान्य से अधिक रहने के चलते गेहूं समेत रबी की फसलों के उत्पादन को लेकर भी अनिश्चितता बन रही है। बुवाई सीजन लंबा चल रहा है और अनुकूल तापमान नहीं होने से बोई गई कई फसलों में समस्या पैदा हो रही है। दूसरे भले ही सरकार तमाम दावे करे लेकिन यह बात सच है कि चालू रबी सीजन में किसानों को डाई अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) की उपलब्धता के संकट का सामना करना पड़ रहा है।

ऐसे में जब रिजर्व बैंक अपनी द्विमासिक मौद्रिक नीति की समीक्षा बैठक में नीतिगत ब्याज दरों और कैश रिजर्व रेश्यो जैसे मुद्दों पर फैसला लेगा तो समिति के जेहन में खाद्य महंगाई दर और कृषि उत्पादन सबसे ऊपर रहेंगे। ताजा आंकड़ों में खाद्य महंगाई दर दहाई में चली गई है। इसमें गेहूं, दालों, खाद्य तेलों के साथ आलू, प्याज और दूसरी सब्जियों व फसलों की कीमतें काफी अधिक बढ़ी हैं। किसानों का मानना है कि अक्तूबर के शुरू से ही आलू की बुवाई के समय डीएपी की उपलब्धता का संकट और उसके बाद बुवाई के बाद तापमान का अधिक बना रहना आलू उत्पादन पर असर डालेगा। हालांकि सरकार ने आठ नवंबर के बाद दो दिन पहले रबी सीजन के बुवाई के आंकड़े जारी कर दिये हैं और उनमें गेहूं का रकबा पिछले साल से ज्यादा है, लेकिन करीब 60 फीसदी आयात निर्भरता वाले खाद्य तेलों में सबसे अहम तिलहन फसल सरसें के क्षेत्रफल में गिरावट दर्ज की गई है। दालों के मोर्चे पर भी स्थिति बहुत बेहतर नहीं है।

वहीं पिछले सीजन के बाद चालू चीनी सीजन (2024-25) में भी चीनी उत्पादन में गिरावट आना तय  माना जा रहा है। दिसंबर के पहले सप्ताह तक तापमान का सामान्य से अधिक रहना गन्ने में चीनी की रिकवरी को प्रभावित कर रहा है। चीनी उद्योग सूत्रों के मुताबिक, पिछले साल नवंबर के शुरू में उत्तर भारत में गन्ने में चीनी की रिकवरा जो स्तर था वह अभी तक भी नहीं आ पाया है। अभी भी चीनी की रिकवरी करीब आधा फीसदी कम चल रही है। वहीं महाराष्ट्र में भी चीनी उत्पादन पिछले साल करीब 10 लाख टन कम रहने का अनुमान उद्योग ने लगाया है।

एक तरह से देखा जाए तो जिस कृषि क्षेत्र की 3.5 फीसदी वृद्धि दर के चलते ही जीडीपी की वृद्धि दर 5.4 फीसदी तक पहुंची है उसके मामले में भी रबी सीजन में खऱीफ जैसे नतीजे आएं यह जरूरी नहीं है। यह बात सही है कि बेहतर मानसून के चलते रिजवायर्स में पानी की स्थिति बेहतर है, लेकिन सामान्य से अधिक तापमान को जलवायु परिवर्तन के असर के रूप में देखा जा रहा है। दो साल पहले मार्च माह में तापमान बढ़ने से गेहूं की उत्पादकता में 15 से 20 फीसदी तक की गिरावट आई थी।

इस सबके बीच रिजर्व बैंक पर ब्याज दरों में कटौती का दबाव है क्योंकि सरकार के वरिष्ठ मंत्री भी ब्याज दरों में कमी के पक्ष में बयान दे चुके हैं। वहीं जीडीपी के कमजोर आंकड़ों के पीछे उद्योग ऊंची ब्याज दरों को बड़ा कारण मानता है। हालांकि पहली छमाही में सरकारी खर्च का रहना भी इकोनॉमी में सुस्ती का एक कारण रहा है। लेकिन रबी सीजन की फसलों की स्थिति, डीएपी की किल्लत और महंगाई की ऊंची दर का रिजर्व बैंक के फैसले पर असर रहेगा।  

   

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