उर्वरकों की वैश्विक कीमतों में तेजी से उपलब्धता के संभावित संकट को टालने में जुटी सरकार
पिछले कुछ माह में अंतरराष्ट्रीय बाजार में उर्वरकों और उनके कच्चे माल की कीमतों में भारी तेजी ने सरकार को परेशान कर दिया है। सरकार घरेलू उर्वरक उत्पादकों की मदद से और कूटनीतिक विकल्पों का इस्तेमाल कर इस संकट का हल खोजने की कोशिश कर रही है। अगर स्थिति नहीं संभलती को देश के किसानों को आगामी रबी सीजन में उर्वरकों की किल्लत का सामना करना पड़ सकता है। सरकार में उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक इसी सप्ताह रसायन एवं उर्वरक मंत्री ने घरेलू उर्वरक उत्पादकों के साथ इस मुद्दे पर लंबी बैठक की
पिछले कुछ माह में अंतरराष्ट्रीय बाजार में उर्वरकों और उनके कच्चे माल की कीमतों में भारी तेजी ने सरकार को परेशान कर दिया है। सरकार घरेलू उर्वरक उत्पादकों की मदद से और कूटनीतिक विकल्पों का इस्तेमाल कर इस संकट का हल खोजने की कोशिश कर रही है। अगर स्थिति नहीं संभलती को देश के किसानों को आगामी रबी सीजन में उर्वरकों की किल्लत का सामना करना पड़ सकता है। सरकार में उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक इसी सप्ताह रसायन एवं उर्वरक मंत्री ने घरेलू उत्पादकों के साथ इस मुद्दे पर लंबी बैठक की। इसके साथ ही सरकार की कोशिश है कि कूटनीतिक विकल्पों का इस्तेमाल कर रूस, मोरक्को और ईरान से मदद लेकर देश में उर्वरकों के आयात में वृद्धि की राह आसान की जा सके ताकि रबी सीजन में उर्वरकों की उपलब्धता का संकट पैदा न हो।
जिस तरह से उर्वरकों और इनके कच्चे माल की कीमतों में इजाफा हुआ है वह सरकार और घरेलू उर्वरक उत्पादों के लिए एक बड़ी परेशानी लेकर आया है। इस स्थिति में अगर सरकार सब्सिडी में भारी बढ़ोतरी नहीं करती है तो उस स्थिति में किसानों को उर्वरकों की अधिक कीमत देनी पड़ सकती है। उद्योग सूत्रों के मुताबिक अमेरिका जैसा देश एमएपी के लिए 700 डॉलर प्रति टन चुका रहा है।
असल में वैश्विक बाजारों में कृषि जिन्सों और खासतौर से सोयाबीन की कीमतों में भारी तेजी आई है। इसके चलते अमेरिका, ब्राजील अर्जेंटीना और चीन में फसलों के रकबे में भारी बढ़ोतरी दर्ज की गई है। इसमें सबसे अधिक बढ़ोतरी सोयाबीन और मक्का के रकबे में हुई है। इसके चलते वैश्विक बाजार में उर्वरकों की मांग में अप्रत्याशित बढ़ोतरी हुई है जिसके चलते उर्वरकों के कच्चे माल और तैयार उर्वरकों की कीमतें नई ऊंचाइयों पर पहुंच गई हैं। इसी बीच दुनिया के सबसे बड़े डाई अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) उत्पादक देश चीन ने इसके निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है। साथ ही अपने देश में उर्वरकों की कीमतों में अप्रत्याशित बढ़ोतरी पर जांच भी बैठा दी है। वहीं मानवीय अधिकारों के उल्लंघन और दूसरे मुद्दों के चलते यूरोपीय संघ ने सबसे बड़ी फास्फेट उत्पादक देशों में शुमार पूर्वी यूरोपीय देश बेलारूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिये हैं। इसके चलते वहां से निर्यात बंद हो गया है। मांग में भारी इजाफे और आपूर्ति में कमी के इस दोहरे घटनाक्रम ने उर्वरकों की कीमतों में भारी इजाफा किया है। भारत रॉक फॉस्फेट और सल्फयूरिक एसिड और डीएपी के साथ ही यूरिया का भी बड़ा आयातक देश है। इसलिए हमारे लिए यह बढ़ी कीमतें सब्सिडी पर भारी दबाव और आपूर्ति का संकट पैदा कर सकती हैं।
सूत्रों के मुताबिक सरकार ने उर्वरक उद्योग के साथ हुई बैठक में उत्पादन जारी रखने और सरकार के अगले कदम का इंतजार करने के लिए कहा है। रबी सीजन शुरू होने में करीब डेढ़ माह बाकी है। इसके लिए उर्वरक की खपत वाले क्षेत्रों में आपूर्ति के लिए भी समय की जरूरत है। वहीं उद्योग से जुड़े लोगों का कहना है कि सरकार इस मोर्चे पर तेजी से कदम उठाने होंगे। रूस जैसे देश से अगर आयात होता भी है तो उसके भारत पहुंचने में दो माह का समय लगता है। सबसे अधिक दबाव डीएपी और कॉम्प्लेक्स उर्वरकों पर है क्योंकि इनके मामले में आयात निर्भरता काफी अधिक है।
उद्योग सूत्रों के मुताबिक पिछले साल इसी अवधि में यूरिया के आयात सौदे 290 डॉलर प्रति टन की कीमत (कॉस्ट और भाड़ा मिलाकर) हो रहे थे। लेकिन अभी यह कीमत बढ़कर 510 से 515 डॉलर प्रति टन पर पहुंच गई है। डीएपी की आयातित कीमत पिछले साल के 330 डॉलर प्रति टन से बढ़कर 630 डॉलर प्रति टन पर पहुंच गई हैं। वहीं फॉस्फोरस एसिड की कीमत 625 डॉलर प्रति टन से बढ़कर 998 डॉलर प्रति टन पर पहुंच गई हैं। अमोनिया की कीमत 205 डॉलर प्रति टन से बढ़कर 670 डॉलर प्रति टन पर पहुंच गई हैं। सल्फर की कीमत 75 डॉलर प्रति टन से बढ़कर 210 डॉलर प्रति टन पर पहुंच गई हैं। साल भर पहले एमओपी का आयात 230 डॉलर प्रति टन पर हो रहा था जबकि भारतीय आयातकों ने दिसंबर, 2021 की सप्लाई के लिए वैश्विक उत्पादकों के साथ 280 डॉलर प्रति टन की कीमत पर सौदे किये हैं। लेकिन अमेरिका और यूरोपीय देशों द्वारा बेलारूस के खिलाफ आर्थिक प्रतिबंध लगाने के चलते कीमतें 280 डॉलर प्रति टन की कीमत 400 डॉलर प्रति टन तक पहुंच गई हैं। पूर्वी यूरोपीय देश बेलारूस कनाडा के बाद भारत के लिए दूसरा सबसे बड़ा एमओपी सप्लायर है।
इस मसले पर रूरल वॉयस ने 6 अगस्त, 2021 को एक विस्तृत खबर की थी जिसे इस लिंक पर क्लिक कर पढ़ा जा सकता है। https://www.ruralvoice.in/latest-news/Higher-global-fertilizer-prices-can-create-a-problem-of-shortage.html
कीमतों में इस इजाफे के चलते घरेलू आयातक आयात को लेकर सुस्त हो गये हैं। इसका नतीजा रबी सीजन में उर्वरकों की उपलब्धता की किल्लत के रूप में सामने आ सकती है। इसी आशंका के चलते उर्वरक मंत्रालय ने उद्योग के साथ बैठक की है। इसलिए आने वाले दिनों में सरकार क्या कदम उठाती है यह महत्वपूर्ण होगा। उर्वरकों की किल्लत सरकार के लिए राजनीतिक रूप से भी मुश्किलें खड़ी करेगी क्योंकि पांच राज्यों के विधान सभा चुनाव आने वाले हैं और इनमें उत्तर प्रदेश जैसा बड़ा राज्य और पंजाब जैसा उर्वरकों की बड़ी खपत वाला राज्य भी शामिल है।