दूध की कीमतों में दो रुपये लीटर की बढ़ोतरी, डेयरी और किसानों के लिए बढ़ती लागत मुख्य वजह
अमूल ने दूध की कीमतों में दो रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी कर दी है। दूध के सभी वेरिएंट की कीमतों में बढ़ोतरी की गई हैं और नई कीमतें 1 जुलाई यानी गुरूवार से देश भर में लागू हो जाएंगी। कीमतों में इस वृद्धि की मुख्य तमाम तरह की लागतों में पिछले कुछ माह में हुई भारी बढ़ोतरी है। इसके चलते जहां किसानों के लिए दूध की उत्पादन लागत बढ़ गई है वहीं पैकेजिंग, लॉजिस्टिक्स और इनर्जी लागतों में भारी इजाफा हुआ है।
अमूल ब्रांड के नाम से दूध और दूध उत्पाद बेचने वाली सहकारी संस्था गुजरात को-आपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन (जीसीएमएमएफ) ने दूध की कीमतों में दो रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी कर दी है। दूध के सभी वेरिएंट की कीमतों में बढ़ोतरी की गई हैं और नई कीमतें 1 जुलाई यानी गुरूवार से देश भर में लागू हो जाएंगी। इसके चलते की ताजा दूध की अधिकतम कीमत 60 रुपये प्रति लीटर तक पहुंच गई है। डेयरी कंपनियों पर पिछले कई माह से लागतों में वृद्दि के चलते दूध की कीमत में बढ़ोतरी का दबाव बना हुआ था। यही वजह है कि अमूल के साथ ही बाकी डेयरी कंपनियों ने भी दूध की कीमतों में इजाफा कर दिया है। उद्योग सूत्रों ने रूरल वॉयस को बताया कि असल में देश में सबसे बड़े डेयरी ब्रांड अमूल के दाम बढ़ाने के इंतजार में ही अधिकांश कंपनियों ने कीमतों में इजाफे को रोक रखा था। कीमत बढ़ोतरी के बाद दूध की नई कीमतों को ऊपर चार्ट में दिखाया गया है।
कीमतों में वृद्धि की वजह के बारे में पूछने पर अमूल के मैनेजिंग डायरेक्टर आर.एस. सोढ़ी ने रूरल वॉयस को बताया कि हमने एक साल सात माह बाद दूध की कीमतों में बढ़ोतरी की है। इसके पहले दिसंबर, 2019 में दूध की कीमतों में बढ़ोतरी की गई थी। दूध किसानों से लेकर दूध प्रसंस्करण, पैकेजिंग और लॉजिस्टिक हर स्तर पर लागत में बढ़ोतरी हुई है। सोढ़ी कहते हैं कि पैकेजिंग की लागत 35 फीसदी बढ़ गई है। लॉजिस्टिक्स लागत 30 फीसदी बढ़ गई है। इनर्जी लागत भी 30 फीसदी बढ़ गई है। ऐसे में कीमत बढ़ोतरी के बिना हमारे लिए सस्टेन करना ( बिजनेस में टिके रहना) लगभग असंभव हो गया है। इसके बावजूद अमूल ने केवल चार फीसदी की बढ़ोतरी दूध की कीमतो में की है। वहीं किसानों के लिए भी लागत बढ़ रही है। एक साल के भीतर अमूल ने किसानों के लिए दूध की खरीद कीमत में छह फीसदी की बढ़ोतरी है। यह इसलिए जरूरी है क्योंकि महंगाई केवल शहरों में ही नहीं बढ़ती किसान को भी महंगाई का असर सहना पड़ता है। उसके लिए भी खाद्य महंगाई बढ़ी है। उसकी दूध उत्पादन लागत लगातार बढ़ी है।
असल में जिस तरह से थोक महंगाई दर (डब्ल्यूपीआई) दो अंकों में पहुंच कर एक दशक के उच्चतम स्तर पर है और उपभोक्ता मूल्य सूचकांक छह फीसदी को पार कर गया है। उससे साफ है कि कई उत्पादों कीमतों में इजाफा होना तय है। और दूध की कीमतों में यह ताजा वृद्धि उसी का परिणाम है। किसानों के लिए दूध की उत्पादन लागत बढ़ गई है। वहीं प्रसंस्करण, परिवहन और मार्केटिंग के साथ ही पैकेजिंग की कीमतों में भी इजाफा हुआ है। यानी पिछले एक साल में पेट्रोलियम उत्पादों की 60 फीसदी से अधिक की महंगाई का असर उपभोक्ताओं पर सीधे पड़ने लगा है। कई दूसरे उद्योग भी अपने उत्पादों की कीमतों में बढ़ोतरी कर रहे हैं।
अमूल ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा है कि अमूल ने बढ़ती उत्पादन लागत के चलते किसानों को भी राहत दी है और उनके लिए दूध के खरीद मूल्य में पिछले साल के मुकाबले छह फीसदी तक की बढ़ोतरी की है। अमूल ने किसानों से दूध की खरीद कीमत में पिछले एक साल में 45 रुपये से 50 रुपये प्रति किलो फैट की वृद्धि की है। इस कीमत बढ़ोतरी से होने वाली आय का सीधा फायदा किसानों को होगा क्योंकि अमूल दूध की बिक्री से मिलने वाले हर एक रुपये में 80 पैसे दूध उत्पादक किसान को मिलते हैं।
कोविड महामारी की पहली लहर के बाद लॉकडाउन के दौरान किसानों को दूध कीमतों के मामले में भारी नुकसान उठाना पड़ा था। इसके साथ ही डेयरी उत्पादों की बिक्री में भारी गिरावट आई थी। ऐसे में अमू्ूल और कुछ दूसरी सहकारी संस्थाओं को छोड़कर अधिकांश डेयरी कंपनियों ने किसानों के लिए दूध की कीमतों मेें भारी कटौती कर दी थी। पिछले दिनों महाराष्ट्र में प्राइवेट डेयरी कंपनियों ने किसानों के दूध के खरीद मूल्य में भारी कटौती कर दी थी और वहां किसानों को गाय के दूध की कीमत 28 रुपये प्रति लीटर से घटकर 18 से 20 रुपये प्रति लीटर तक आ गई थी। लेकिन अमूल किसानों के लिए दूध की कीमतों में कटौती करने की स्थिति में नहीं है क्योंकि यह किसानों की ही संस्था है। ऐसे में बढ़ोतरी लागतों के चलते कीमत वृद्धि ही एक उपाय है जिस पर अमूल ने अमल किया है। पिछले साल प्राइवेट डेयरी कंपनियों और उत्तर प्रदेश समेत कुछ दूसरे राज्यों की सहकारी समितियों ने जिस तरह से किसानों के लिए दूध के दाम कम किये थे, उसके चलते किसानों को दूध उत्पादक पशुओं पर निवेश कम कर दिया। इसका नतीजा दूध उत्पादन पर पड़ने लगा है। ऊपर से जिस तरह से किसानों के लिए और डेयरी उद्योग के लिए लागतें बढ़ी हैं उसमें कीमतों में बढ़ोतरी होना तय था।