पूर्वोत्तर में ऑयल पॉम मिशन के जरिये खाद्य तेलों में आत्मनिर्भरता की तैयारी
केंद्र सरकार खाद्य तेलों के मामले में आयात पर निर्भरता को कम करने के लिए ऑयल पॉम मिशन शुरू करने जा रही है जिसके तहत ऑयल पॉम प्लांटेशन को बढ़ावा देने की तैयारी की जा रही है। इस मिशन के तहत पूर्वोत्तर के राज्यों में साल 2025-26 तक तीन लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्रफल में ऑयल पॉम के प्लांटेशन की योजना है। इस योजना में केवल ऑयल पॉम का प्लांटेशन ही नहीं बल्कि इसके प्रसंस्करण के लिए जरूरी क्षमता स्थापित करना भी इसका हिस्सा है
केंद्र सरकार खाद्य तेलों के मामले में आयात पर निर्भरता को कम करने के लिए ऑयल पॉम मिशन शुरू करने जा रही है जिसके तहत ऑयल पॉम प्लांटेशन को बढ़ावा देने की तैयारी की जा रही है। इस मिशन के तहत पूर्वोत्तर के राज्यों में साल 2025-26 तक तीन लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्रफल में ऑयल पॉम के प्लांटेशन की योजना है। मिजोरम में पहले से ही करीब 29 हजार हेक्टेयर में ऑयल पॉम का प्लांटेशन हो चुका है और इसे दूसरे राज्यों में बढ़ाना इस योजना का मकसद है। इस योजना में केवल ऑयल पॉम का प्लांटेशन ही नहीं बल्कि इसके प्रसंस्करण के लिए जरूरी क्षमता स्थापित करना भी इसका हिस्सा है। इस योजना को ऑयल पॉम मिशन का नाम दिया गया है। इस संबंध में कृषि मंत्रालय द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को प्रेजेंटेशन दिया जा चुका है।
देश में खाद्य तेलों की 200 लाख टन से अधिक की खपत के मुकाबले करीब 80 लाख टन का ही उत्पादन देश में होता है और बाकी जरूरत आयात से पूरी की जाती है। इस साल अंतरराष्ट्रीय बाजार में खाद्य तेलों की कीमतों में भारी बढ़ोतरी की वजह से खाद्य तेलों का आयात एक लाख करोड़ रुपये को पार कर सकता है। इसमें सबसे अधिक आयात पॉम ऑयल को होता है। इसके उत्पादक देशों मलयेशिया और इंडोनेशिया में उत्पादन में भारी गिरावट के चलते पॉम ऑयल की कीमतें दस साल के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई थीं। जिसकी वजह से घरेलू बाजार में खाद्य तेलों की कीमतों में भारी बढ़ोतरी दर्ज की गई है। इस आयात के विकल्प के रूप में ही सरकार पूर्वोत्तर के राज्यों असम, मिजोरम, मणिपुर और त्रिपुरा में ऑयल पॉम मिशन को लागू करने की तैयारी में है।
नीति आयोग के सदस्य (कृषि) प्रोफेसर रमेश चंद ने रूरल वॉयस को बताया कि इस प्रोजेक्ट पर कृषि मंत्रालय और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) काम कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि इस बारे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी प्रेजेंटेशन दिया गया है। सरकार का लक्ष्य है कि साल 2025-26 तक देश में ऑयल पॉम का प्लांटेशन क्षेत्रफल 3.2 लाख हेक्टेयर तक पहुंचाया जाए। उनका कहना है कि हमने इसका ब्ल्यू प्रिंट तैयार कर लिया है। साथ ही ऑयल पॉम की प्रोसेसिंग कंपनियां भी पूर्वोत्तर में निवेश में रूचि दिखा रही हैं। वह कहते हैं कि ऑयल पॉम का समान क्षेत्रफल सामान्य तिलहनों के मुकाबले कई गुना अधिक खाद्य तेल का उत्पादन करता है। एक तरह से तीन लाख हेक्टेयर का ऑयल पॉम प्लांटेशन क्षेत्रफल सामान्य तिलहनों के 30 लाख हेक्टेयर के बराबर माना जाता है क्योंकि ऑल पॉम में तेल की मात्रा बहुत अधिक होती है।
खाद्य तेल उद्योग के मुताबिक इसकी उत्पादकता 17 से 21 टन प्रति हैक्टेयर तक होती है। वहीं प्रति हेक्टेयर पॉम तेल उत्पादन पांच टन तक होता है जो पारंपरिक तिलहनों के मुकाबले कई गुना अधिक है। अगर यह महत्वाकांक्षी मिशन कामयाब रहता है तो हम खाद्य तेलों के मामले में आत्मनिर्भर हो सकेंगे।
मिजोरम में ऑयल पॉम का प्लांटेशन 29 हजार हेक्टेयर तक पहुंच गया है। बाकी पूर्वोत्तर राज्यों में इसके लिए बहुत संभावनाएं मौजूद हैं। पूर्वोत्तर के अलावा तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में ऑयल पॉम का प्लांटेशन है। वहां निजी क्षेत्र की कंपनियों के प्रोसेसिंग प्लांट भी हैं। गोदरेज समूह और रूचि सोया ऑयल पॉम की प्रोसेसिंग में पहले से ही काम कर रही हैं।
वहीं सरकारी सूत्रों का कहना है कि ऑयल पॉम मिशन की सफलता के लिए प्रोसेसिंग क्षमता का उसी क्षेत्र में स्थापित होना जरूरी है क्योंकि फ्रेश फ्रूट बंचेज की हार्वेस्टिंग के बाद जितना जल्दी हो सके उसकी प्रोसेसिंग होना जरूरी है। साथ ही किसानों को ऑयल पाम की कीमत क्या मिले इसको लेकर भी पहले से फार्मूला तय होना है जो इसको बढ़ावा देने के लिए जरूरी है। ऑयल पॉम के प्लांटेशन के चौथे साल में उत्पादन शुरू होता है और इसके दो साल बाद उत्पादकता बेहतर स्थिति में पहुंचती है। अधिक नमी और बारिश इसकी फसल के लिए जरूरी है और इस लिहाज के पूर्वोत्तर के राज्य बेहतर स्थिति में हैं।
भारत में हर साल देश की खाद्य तेलों की खपत का लगभग दो तिहाई खाद्य तेल आयात का जाता है जिसका मूल्य 70 हजार से 80 हजार करोड़ रुपये के आसपास होता है। साथ ही भारत के अधिक आयात के चलते अंतरराष्ट्रीय कीमतें भी तय होती हैं। मांग और आपूर्ति के अंतर को पूरा करने के लिए सबसे अधिक पॉम ऑयल का आयात होता है क्योंकि वैश्विक बाजार में यह सबसे सस्ता खाद्य तेल है।
पॉम ऑयल का अधिकांश आयात इंडोनेशिया और मलयेशिया से होता है क्योंकि यह दुनिया के सबसे बड़े पॉम ऑयल उत्पादक देश हैं और विश्व का 72 फीसदी पॉम ऑयल उत्पादन इन दो देशों में होता है। इंडोनेशिया दुनिया का 57 फीसदी और मलयेशिया 27 फीसदी पॉम ऑयल उत्पादन करता है। पिछले सीजन में वहां सूखे के चलते उत्पादन में भारी गिरावट आई थी और पॉम ऑयल की कीमतें दस साल के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गई। इसका नतीजा यह रहा कि भारत में खाद्य तेलों का आयात महंगा हो गया और घरेलू बाजार में खाद्य तेलों की कीमतों में दो गुना तक की बढोतरी हो गई। इनकी खुदरा कीमतें 200 रुपये प्रति लीटर को पार गईं। बढ़ी कीमतों पर इस तेल सीजन (नवंबर, 2020 से अक्तूबर,2021) में आयात एक लाख करोड़ रुपये को पार कर जाएगा।
यही वजह है कि हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने एक संबोधन में कहा कि हमें खाद्य तेलों पर आयात निर्भरता समाप्त करनी चाहिए। लेकिन यह बात भी सच है कि पारंपरिक तिलहनों के जरिये खाद्य तेलों के उत्पादन में भारी बढ़ोतरी बहुत जल्दी संभव नहीं है। ऐसे में ऑयल पॉम मिशन अगर कामयाब हो जाता है तो जहां भारत खाद्य तेलों में आत्मनिर्भर हो सकेगा वहीं खाद्य तेलों पर खर्च होने वाला पैसा देश के किसानों की जेब में जाएगा। साथ ही कीमतों में गैर जरूरी बढ़ोतरी बढ़ोतरी पर भी अंकुश लगाया जा सकेगा।