पश्चिमी यूपी गन्ने की सीओ-0238 वैरायटी के लिए डॉ. बक्शी राम का ऋणी रहेगाः संजीव बालियान
गन्ने की सीओ 0238 वैरायटी का जिक्र करते हुए बालियान ने कहा कि इसके लिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश कृषि विज्ञानी डॉ बक्शी राम का ऋणी रहेगा। वह बोले, उन्होंने जो वैरायटी हमें दी उससे रिकवरी 2% बढ़ गई। इससे चीनी मिलों को तो फायदा हुआ ही, गन्ना उत्पादन भी करीब डेढ़ गुना हो गया जिसका सीधा लाभ किसानों को हुआ। इस तरह यह पहली वैरायटी है जिसका फायदा किसानों और चीनी मिलों दोनों को हुआ। लेकिन दुर्भाग्यवश इस वैरायटी में अब बीमारी लग गई है
डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म रूरल वॉयस ने 23 दिसंबर को एग्रीकल्चर कॉन्क्लेव और अवार्ड का आयोजन किया। इस मौके पर केंद्रीय श्री पशुपालन और डेयरी राज्यमंत्री डॉ संजीव बालियान ने कहा कि इस दिन हम देश के सबसे बड़े किसान नेता चौधरी चरण सिंह को याद करते हैं। उन्हें याद करते समय रूरल वॉयस भी याद आता है। जिस तरह चौधरी चरण सिंह को किसानों से अलग करके नहीं देखा जा सकता, उसी तरह रूरल वॉयस को भी किसानों से अलग नहीं किया जा सकता।
उन्होंने कहा, अक्सर ऐसा लगता है कि चौधरी चरण सिंह को पर्याप्त मौका नहीं मिला। वे दो बार मुख्यमंत्री बने, देश के प्रधानमंत्री बने। उनका कार्यकाल बहुत छोटा था। उनके समय नेता अपनी जातियों का प्रतिनिधित्व नहीं करते थे, अपने पेशे का करते थे। उनके बाद कोई दूसरा किसान नेता नहीं हुआ। जो भी हुए, वे अपनी जातियों के बीच फंसकर रह गए।
रूरल वॉयस के 2 साल पूरे होने पर उन्होंने इस डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म के एडिटर इन चीफ हरवीर सिंह को बधाई देते हुए कहा कि पत्रकारिता में इतना सम्मान बहुत कम लोगों को मिल पाता है। दिल्ली में अनेक पत्रकार हैं, लेकिन हरवीर सिंह ऐसे पत्रकार हैं जिन पर हर कोई भरोसा करता है। चाहे वह जिस राजनीतिक दल से जुड़ा हो। इसका कारण यह है कि हरवीर जी हमेशा राजनीति से दूर रहे और दिल्ली में रहने के बावजूद हमेशा किसानों की बात की।
दिल्ली में अपने 9 साल के बारे में डॉ बालियान ने कहा, सच कहूं तो मुझे हमेशा यही लगता रहा कि दिल्ली फर्जी किसानों से घिरी है। यहां आपको किसानों की बात करते ऐसे अनेक लोग मिल जाएंगे जो कभी खेत गए तक नहीं।
बालियान जब 2014 में केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री बने, उन्होंने दिल्ली के किसान नेताओं की एक सूची मांगी थी ताकि उनसे मुलाकात कर सकें। अभी वह पश्चिमी उत्तर प्रदेश की मुजफ्फरनगर सीट से लोकसभा सांसद हैं। यह क्षेत्र किसान आंदोलन और किसान नेताओं के लिए जाना जाता है। उनकी पढ़ाई-लिखाई हरियाणा में हुई है। वहां भी किसान नेताओं के बीच वे जाना-माना चेहरा हैं। उन्होंने बताया, जब मुझे वह सूची मिली तो मैंने पाया कि उनमें एक भी किसान नेता ऐसा नहीं था जो जमीनी स्तर पर काम करता हो।
उन्होंने कहा, ऐसे विपरीत वातावरण में दिल्ली में हरवीर सिंह मिले जो रूरल वॉयस के माध्यम से किसानों और सरकार के बीच लगातार संपर्क बने हुए हैं। केंद्रीय मंत्री ने नैनो यूरिया बनाने के लिए इफको के मैनेजिंग डायरेक्टर डॉ यू एस अवस्थी को भी बधाई दी। कार्यक्रम में डॉ अवस्थी ने नैनो डीएपी, नैनो पोटाश, नैनो एनपीके जैसे उर्वरक भी आने वाले समय में लॉन्च करने की बात कही।
गन्ने की सीओ 0238 वैरायटी का जिक्र करते हुए बालियान ने कहा कि इसके लिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश कृषि विज्ञानी डॉ बक्शी राम का ऋणी रहेगा। वह बोले, उन्होंने जो वैरायटी हमें दी उससे रिकवरी 2% बढ़ गई। इससे चीनी मिलों को तो फायदा हुआ ही, गन्ना उत्पादन भी करीब डेढ़ गुना हो गया जिसका सीधा लाभ किसानों को हुआ। इस तरह यह पहली वैरायटी है जिसका फायदा किसानों और चीनी मिलों दोनों को हुआ। लेकिन दुर्भाग्यवश इस वैरायटी में अब बीमारी लग गई है। अभी तक उसकी जगह लेने वाली कोई दूसरी वैरायटी नहीं है। नई वैरायटी आने में कितना समय लगेगा यह किसी को नहीं मालूम।
-कई राज्यों के किसानों ने डॉ. संजीव बालियान को अपनी सिफारिशें सौंपीं
उन्होंने कहा, अब यह बात स्पष्ट हो गई है कि टेक्नोलॉजी से किसानों को फायदा हो सकता है। लेकिन वैज्ञानिक प्रयोगशालाओं तक ही सीमित हैं। ग्रामीण पृष्ठभूमि से कृषि संस्थानों में जाने वाले छात्रों की संख्या बहुत कम है। वैज्ञानिकों और किसानों के बीच की कड़ी कमजोर हुई है। हमारे संस्थानों में शोध प्रकाशित करना ही प्राथमिकता हो गई है।
बालियान ने मीडिया की भूमिका पर सवाल उठाते हुए कहा कि जब मैं 2014 में मंत्री बना तब किसानों का बकाया 25000 करोड़ रुपए था और चीनी 22 रुपए किलो थी। उस समय एक समिति बनाई गई और हमने कच्ची चीनी पर आयात शुल्क बढ़ाकर 25% किया (अभी यह 100% है)। जब रामविलास पासवान जी और मैंने यह घोषणा की तो चीनी की कीमत 22 रुपए से बढ़कर 24 रुपए किलो हो गई। उन्होंने कहा, “उस समय आज तक पर प्रसारित खबर की एक लाइन मुझे आज भी याद है। उन्होंने लिखा था मोदी सरकार ने चाय भी कड़वी कर दी।”
उन्होंने कहा कि खाने-पीने की चीजों के दाम में मामूली बढ़ोतरी पर भी इस तरह शोर मचाना और अन्य चीजों के नाम बढ़ने पर चुपचाप रहना, जब तक ऐसा चलता रहेगा तब तक किसान राजनीति के शिकार होते रहेंगे।