सोयाबीन का सही भाव नहीं मिला, किसान ने 10 बीघा में खड़ी फसल पर चला दिया ट्रैक्टर
मध्य प्रदेश के गरोठ में किसान कमलेश पाटीदार ने अपनी 10 बीघा सोयाबीन फसल को ट्रैक्टर से नष्ट कर दिया, क्योंकि उन्हें सही दाम नहीं मिला। सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे एक वीडियो उन्हें कहते हुए सुना जा सकता है कि सोयाबीन की कीमतें कम और लागतें ऊंची हैं, इसलिए खेत खाली रखना ही बेहतर है
मध्य प्रदेश के एक किसान की निराशा ने उसे अपनी 10 बीघा सोयाबीन की फसल को ट्रैक्टर से नष्ट करने पर मजबूर कर दिया। दरअसल, मन्दसौर जिले के देवरिया गांव के किसान कमलेश पाटीदार अपनी पिछले साल की फसल मंडी में बेचने गए थे, लेकिन उन्हें उसका सही दाम नहीं मिला। जिसके चलते उन्होंने 10 बीघा में खड़ी सोयाबीन की फसल पर ट्रैक्टर चला दिया। इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है, जिसमें किसान को अपनी आपबीती बताते हुए सुना जा सकता है।
वीडियो में कमलेश पाटीदार बताते हैं कि वे मन्दसौर जिले की गरोठ तहसील के देवरिया गांव के निवासी हैं और उन्होंने लगभग 10 बीघा जमीन पर सोयाबीन की फसल लगाई थी। उन्होंने फसल को नष्ट करने का निर्णय इसलिए लिया क्योंकि उन्हें सोयाबीन की खेती घाटे का सौदा लग रही थी। कमलेश ने बताया कि उनके पास पिछले साल की 140 क्विंटल सोयाबीन बची थी, जिसे उन्होंने 16 अगस्त को मंडी में 3800 रुपये प्रति क्विंटल के भाव में बेचा। जिससे उन्हें नुकसान हुआ और वह लागत तक नहीं निकाल पाए।
#मंदसौर के #गरोठ में चौंकाने वाला, फिर से चिंता बढ़ाने वाला घटनाक्रम हुआ! किसान श्री कमलेश पाटीदार जी ने #सोयाबीन की फसल पर केवल इसलिए ट्रैक्टर चला दिया, क्योंकि बाजार का भाव नफा की बजाय नुकसान का सौदा दे रहा था!@DrMohanYadav51 जी,
— Jitendra (Jitu) Patwari (@jitupatwari) August 18, 2024
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उन्होंने कहा कि मौजूदा परिस्थिति को देखते हुए सोयाबीन बोने से अच्छा है, खेत को खाली रख दिया जाए, ताकि खेत की उर्वरा शक्ति बची रहे। उन्होंने अन्य किसानों से अपील करते हुए कहा कि अगर आने वाले समय में सोयाबीन 3000 से 3500 रुपये प्रति क्विंटल बिकता है तो सोयाबीन की खेती पूरी तरह से घाटे का सौदा होगा। आज तमाम तरह की दवाईयां खाद बीज की कीमतें आसमान छू रही हैं, जबकि सोयाबीन को मिल रही कीमत से किसान लागत तक नहीं निकाल पा रहे। उन्होंने कहा कि सोयाबीन की फसल बोने से अच्छा है कि खेत खाली रख दें या ऐसी फसल बोये जिससे लागत निकालना आसान हो। सरकार और देश का पेट भरने के चक्कर में कब तक किसान अपने परिवार व जमीन का बलिदान देंगे।