पीएयू में आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन में सस्टेनेबल कृषि के लिए फसल विविधीकरण पर जोर

पंजाब कृषि विश्वविद्यालय ने मीडिया हाउस रूरल वॉयस और गैर-सरकारी संगठन विलेजनामा के सहयोग से ‘फसल विविधीकरण और जलवायु परिवर्तन’ विषय पर राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया। विशेषज्ञों ने फसल विविधीकरण को सस्टेनेबल कृषि के लिए महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि यह पर्यावरण को होने वाले नुकसान को रोकने के लिए जरूरी है, और यह पंजाब के किसानों के लिए आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित कर सकता है।

पीएयू में आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन में सस्टेनेबल कृषि के लिए फसल विविधीकरण पर जोर

पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) ने मीडिया हाउस रूरल वॉयस और गैर-सरकारी संगठन विलेजनामा के सहयोग से ‘फसल विविधीकरण और जलवायु परिवर्तन’ विषय पर राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया। इसमें भाग लेने वाले विशेषज्ञों ने फसल विविधीकरण को सस्टेनेबल कृषि के लिए महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि यह पर्यावरण को होने वाले नुकसान को रोकने के लिए जरूरी है, और यह पंजाब के किसानों के लिए आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित कर सकता है। इस सम्मेलन में बड़ी संख्या में किसान, नीति निर्माता, सरकारी अधिकारी, वैज्ञानिक और विशेषज्ञ शामिल हुए।

पंजाब के मुख्यमंत्री के विशेष मुख्य सचिव वी.के. सिंह ने सम्मेलन का उद्घाटन किया। उन्होंने पंजाब की गेहूं-धान की सघन कृषि प्रणाली के पर्यावरणीय प्रभाव को रेखांकित करते हुए फसल विविधीकरण को आवश्यक बताया। श्री सिंह ने सरकारी निकायों, अनुसंधान संस्थानों और किसानों के बीच सहयोग की अपील की, ताकि जल प्रबंधन, बाजार पहुंच और किसान शिक्षा से जुड़े मुद्दों का समाधान किया जा सके। उन्होंने पंजाब के सहकारी ढांचे को मजबूत करने और फसल विविधीकरण को बढ़ावा देने के लिए एक समर्पित एजेंसी के गठन की भी वकालत की।

कृषि प्रदर्शनी में जानकारी लेते पंजाब के मुख्यमंत्री के विशेष मुख्य सचिव वी.के. सिंह।

पीएयू के कुलपति डॉ. सतबीर सिंह गोसल ने जलवायु परिवर्तन के जोखिमों पर प्रकाश डाला, जिनमें चरम मौसम घटनाएं शामिल हैं। डॉ. गोसल ने बताया कि PAU ने 950 से अधिक वैकल्पिक फसल किस्मों का विकास किया है। मिट्टी को समृद्ध करने के लिए मल्च के उपयोग और पानी बचाने के लिए कम अवधि वाले धान की किस्मों को बढ़ावा देने जैसे तरीकों पर शोध जारी है। उन्होंने किसानों को गेहूं-धान फसल चक्र के विकल्प के रूप में कपास, मक्का और सब्जियों जैसी फसलों के साथ विविधता लाने का सुझाव दिया, जो पारिस्थितिकी को समृद्ध करने के साथ आर्थिक लाभ भी प्रदान करती हैं।

भारत कृषक समाज के चेयरमैन अजय वीर जाखड़ ने पंजाब के किसानों की चुनौतियों के समाधान के लिए उचित नीतियों की आवश्यकता बताई, गुड गवर्नेंस और पारदर्शिता पर बल दिया। उन्होंने गुणवत्ता पूर्ण कृषि शिक्षा और ग्राम सभा प्रशासन में जवाबदेही बढ़ाने की बात भी कही। उन्होंने कहा कि किसानों की समस्याओं के हल के लिए नए कानूनों की आवश्यकता नहीं है। यदि प्रशासन में सुधार किया जाए, तो मौजूदा कानूनों से भी सकारात्मक बदलाव लाया जा सकता है।

अपने स्वागत भाषण में विलेजनामा की सह-संस्थापक डॉ. रश्मि सिन्हा ने भावी पीढ़ियों पर जलवायु संकट के प्रभाव को लेकर चेतावनी दी और भारत में जलवायु संबंधी आपदाओं में वृद्धि के चिंताजनक आंकड़ों का हवाला दिया। उन्होंने देश के युवाओं के लिए एक सस्टेनेबल धरती बनाने के मकसद से सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता पर भी जोर दिया।

रूरल वॉयस के एडिटर-इन-चीफ हरवीर सिंह ने इस सम्मेलन की चर्चाओं के महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि इस तरह के सम्मेलन का उद्देश्य सभी हितधारकों को एक मंच पर लाना है, ताकि जलवायु परिवर्तन और कृषि संकट से निपटने का व्यावहारिक समाधान खोजा जा सके। उन्होंने कहा कि रूरल वॉयस और विलेजनामा की तरफ से आयोजित इस सम्मेलन का उद्देश्य ऐसे संवाद को आगे बढ़ाना है।

सम्मेलन में तीन तकनीकी सत्र थे। पहला सत्र ‘फसल विविधीकरण की आवश्यकता’ पर आधारित था, जिसमें फसल विविधीकरण के आर्थिक और पारिस्थितिकी से जुड़े पहलुओं पर चर्चा की गई। दूसरे सत्र में ‘वैकल्पिक फसलों के माध्यम से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाना’ विषय पर विचार-विमर्श हुआ। अंतिम सत्र में टेक्नोलॉजी में इनोवेशन पर चर्चा की गई। इसमें कृषि प्लानिंग और डेयरी सेक्टर में उन्नत प्रजनन तकनीक पर प्रजेंटेशन भी दिया गया।

सम्मेलन में कृषि जगत की अनेक मशहूर हस्तियों ने भाग लिया।

पहले तकनीकी सत्र में विलेजनामा की अर्थशास्त्री और विजिटिंग फेलो डॉ. श्वेता सैनी ने सम्मेलन की थीम पर चर्चा की। डॉ. नवतेज सिंह बैंस ने ‘पंजाब में फसल विविधीकरण: अर्थशास्त्र बनाम पारिस्थितिकी’ पर अपने विचार साझा किए। नेशनल रेनफेड एरिया अथॉरिटी के पूर्व अध्यक्ष डॉ. जे.एस. सामरा ने विशेषज्ञ टिप्पणी की।

दूसरे सत्र में ग्रीन वैली स्टेविया के अध्यक्ष आर.पी.एस. गांधी ने फसल विविधीकरण के लिए नए अवसरों पर केस स्टडी प्रस्तुत की। अवतार सिंह ढींडसा ने फूलों की खेती को एक संभावित कृषि उद्योग के रूप में बताया। डॉ. स्वामी पेंटयाला ने रूरल मार्केटिंग में कृषि डिजिटल प्लेटफार्मों की भूमिका पर चर्चा की। पीएयू के शोध निदेशक डॉ. ए.एस. ढट ने पंजाब में विविधीकरण के लिए वैकल्पिक फसलों पर बात की।

तीसरे सत्र में, एग्री मैट्रिक्स प्राइवेट लिमिटेड के सह-संस्थापक श्रीधर कोत्रा ने विविधीकृत कृषि के लिए सैटेलाइट इमेजरी के उपयोग पर चर्चा की। डॉ. दलजीत सिंह गिल ने आधुनिक प्रजनन तकनीकों के माध्यम से डेयरी उद्योग में प्रगति के बारे में बताया। पीएयू के निदेशक (एक्सटेंशन एजुकेशन) डॉ. एम.एस. भुल्लर ने सम्मेलन के प्रमुख बिंदुओं का सारांश प्रस्तुत किया, और कार्यक्रम का समन्वयन एसोसिएट डायरेक्टर (इंस्टीट्यूशन रिलेशंस) डॉ. विशाल बेक्टर ने किया। अपने समापन वक्तव्य में डॉ. एम.एस. भुल्लर ने पंजाब में एक स्थायी और लचीली कृषि अर्थव्यवस्था के लिए फसल विविधीकरण को आवश्यक बताया।

विलेजनामा के संस्थापक और भारतीय खाद्य निगम (FCI) के पूर्व सीएमडी आलोक सिन्हा ने धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया, जिसमें उन्होंने नीतिगत प्रक्रिया में किसानों को केंद्र में रखने के महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि यह सम्मेलन कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों पर संवाद शुरू करने की दिशा में पहला कदम है।

Subscribe here to get interesting stuff and updates!