कृषि इन्फ्रास्ट्रक्चर और वितरण में बड़े निवेश की जरूरतः अनुपम कौशिक
हाल ही नई दिल्ली स्थित इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में रूरल वॉयस और भारत कृषक समाज द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित ‘अमृत काल में कृषि’ पर एक दिवसीय सम्मेलन में कौशिक ने यह बात कही। ‘मार्केट एंड मार्केट प्लेस’ विषय पर बोलते हुए उन्होंने भारतीय कृषि की परिस्थिति पर प्रकाश डाला। उन्होंने जमीनी स्तर पर किसानों को परेशान करने वाले मुद्दों का भी जिक्र किया।
कृषि क्षेत्र में होने वाले निवेश में कम वृद्धि, विशेषकर मूल्य-संवर्धन और प्रसंस्करण में, इस सेक्टर की प्रमुख चुनौतियों में से एक है। यह कहना है ओलम इंडिया के वरिष्ठ उपाध्यक्ष अनुपम कौशिक का। भारतीय कृषि की विशेषताओं का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि यह एक तरह से भगवान, सरकार और किसान यानी अन्नदाता की त्रिमूर्ति के बीच एक त्रिपक्षीय समझौता है। उन्होंने कहा, कृषि सबसे बड़ा नियोक्ता है जिसमें लगभग 50% आबादी शामिल हैं। लेकिन सिर्फ गुजारे से वाणिज्यिक स्तर की ओर बढ़ने के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर और वितरण के मामले में भारी निवेश की आवश्यकता है।
हाल ही नई दिल्ली स्थित इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में रूरल वॉयस और भारत कृषक समाज द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित ‘अमृत काल में कृषि’ पर एक दिवसीय सम्मेलन में कौशिक ने यह बात कही। ‘मार्केट एंड मार्केट प्लेस’ विषय पर बोलते हुए उन्होंने भारतीय कृषि की परिस्थिति पर प्रकाश डाला। उन्होंने जमीनी स्तर पर किसानों को परेशान करने वाले मुद्दों का भी जिक्र किया।
1960 और 1970 के दशक की हरित क्रांति का उल्लेख करते हुए कौशिक ने कहा, कृषि क्षेत्र कमी की स्थिति से सरप्लस की स्थिति में पहुंच गया है। 1970 के दशक में ऑपरेशन फ्लड/श्वेत क्रांति ने दूध की कमी वाले भारत को दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश बना दिया। 1986-87 में लांच की गई पीली क्रांति/ऑपरेशन गोल्डन फ्लो से सरसों और तिल जैसे खाद्य तेलों का उत्पादन बढ़ा। उसके बाद 1991 से 2003 तक स्वर्णिम क्रांति हुई जिसमें बागवानी और शहद आदि का उत्पादन बढ़ा।
उन्होंने कृषि क्षेत्र की कुछ प्रमुख चुनौतियों की भी पहचान की। इनमें छोटी होती जोत, बड़े पैमाने पर कृषि मशीनीकरण की बाधाएं, मानसूनी बारिश पर निर्भरता (खेती का लगभग 50% क्षेत्र वर्षा पर आधारित) और अत्यधिक पूंजी-गहन सिंचाई परियोजनाएं शामिल हैं। दस लाख हेक्टेयर में सिंचाई के लिए लगभग चार अरब डॉलर का खर्च आता है।
उन्होंने यह भी कहा कि मूल्य संवर्धन और प्रसंस्करण उद्योगों में निवेश धीमी गति से हो रहा है। इसके अलावा, भूमि एक राष्ट्रीय संसाधन है जबकि कृषि राज्य का विषय है। बेहतर विकास के लिए केंद्र और राज्यों के बीच मजबूत समन्वय की आवश्यकता है।
कम मूल्यवर्धन का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, यहां से निर्यात प्रमुख रूप से कच्चे रूप में होता है। केवल 2-5% निर्यात मूल्यवर्धित रूप में किया जाता है। उन्होंने कहा कि फसल कटाई के बाद भारी नुकसान 5% से 30% तक होने वाला नुकसान कृषि क्षेत्र पर भारी पड़ रहा है। कौशिक ने कहा कि कृषि क्षेत्र की स्थिति पूरे विश्व स्तर पर समस्याग्रस्त है, लेकिन भारत में स्थिति अधिक गंभीर है क्योंकि आबादी का एक बड़ा भाग इसमें लगा हुआ है। इस वजह से अर्थनीति राजनीति बन जाती है। उन्होंने कहा कि कृषि संबंधी मुद्दों पर केंद्र और राज्य सरकारों के बीच समन्वय की कमी, असंतुलित निवेश और कम या नकारात्मक रिटर्न इस क्षेत्र के विकास में बाधक हैं।