रिजर्व बैंक ने रेपो रेट को 6.5 फीसदी पर रखा बरकरार, महंगाई 5 फीसदी से ऊपर बनी रहेगी, विकास दर में आएगी गिरावट
खुदरा महंगाई अगली कई तिमाही तक 5 फीसदी से ऊपर बने रहने के आसार हैं। भारतीय रिजर्व बैंक ने अपनी मौद्रिक नीति की समीक्षा में वित्त वर्ष 2023-24 के लिए खुदरा महंगाई 5.4 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया है। इस वर्ष जुलाई से सितंबर की तिमाही में खुदरा महंगाई 6.4 फीसदी, तीसरी तिमाही में 5.6 फीसदी और चौथी तिमाही में 5.2 फीसदी रहने का अनुमान है। अगले वित्त वर्ष 2024-25 की पहली तिमाही के लिए इसका अनुमान 5.2 फीसदी का है। इसने आने वाली दो तिमाहियों में जीडीपी विकास दर में गिरावट का अंदेशा भी जताया है।
खुदरा महंगाई अगली कई तिमाही तक 5 फीसदी से ऊपर बने रहने के आसार हैं। भारतीय रिजर्व बैंक ने अपनी मौद्रिक नीति की समीक्षा में वित्त वर्ष 2023-24 के लिए खुदरा महंगाई 5.4 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया है। इस वर्ष जुलाई से सितंबर की तिमाही में खुदरा महंगाई 6.4 फीसदी, तीसरी तिमाही में 5.6 फीसदी और चौथी तिमाही में 5.2 फीसदी रहने का अनुमान है। अगले वित्त वर्ष 2024-25 की पहली तिमाही के लिए इसका अनुमान 5.2 फीसदी का है। इसने आने वाली दो तिमाहियों में जीडीपी विकास दर में गिरावट का अंदेशा भी जताया है।
आरबीआई ने शुक्रवार को जारी मौद्रिक नीति की समीक्षा में सर्वसम्मति से रेपो दर को लगातार चौथी बार 6.5 प्रतिशत पर बरकरार रखने का फैसला किया। आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने बताया कि मौद्रिक नीति समीक्षा समिति (एमपीसी) के सभी सदस्यों - डॉ. शशांक भिड़े, डॉ. आशिमा गोयल, प्रो. जयंत आर. वर्मा, डॉ. राजीव रंजन और डॉ. माइकल देबब्रत पात्रा ने सर्वसम्मति से नीतिगत रेपो दर को 6.5 फीसदी पर अपरिवर्तित रखने के लिए मतदान किया।
समीक्षा में कहा गया है कि सब्जियों की कीमतों में गिरावट और एलपीजी सिलेंडर की कीमतों में हालिया कटौती के कारण निकट अवधि में मुद्रास्फीति के परिदृश्य में सुधार होने की उम्मीद है। भविष्य की गति कई कारकों पर निर्भर करेगी जैसे, कम रकबे में दालों की बुआई, जलाशयों के स्तर में गिरावट, अल नीनो की स्थिति और वैश्विक ऊर्जा और खाद्य कीमतों में अस्थिरता। रिजर्व बैंक के सर्वेक्षण के अनुसार, मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों को पिछली तिमाही की तुलना में तीसरी तिमाही में इनपुट लागत अधिक बढ़ने लेकिन बिक्री कीमतों में मामूली वृद्धि की उम्मीद है।
सेवाओं में निरंतर उछाल, ग्रामीण मांग में सुधार, उपभोक्ताओं और व्यापारी वर्ग की उम्मीदों, पूंजीगत व्यय पर सरकार के जोर और बैंकों और कॉरपोरेट्स की स्वस्थ बैलेंस शीट से घरेलू मांग की स्थिति को लाभ होने की उम्मीद है। लेकिन भू-राजनीतिक तनाव, अस्थिर वित्तीय बाजार और ऊर्जा की कीमतें और जलवायु संकट जैसे वैश्विक कारकों से प्रतिकूल परिस्थितियां विकास को बाधित कर सकती हैं। इन सभी कारकों को ध्यान में रखते हुए पूरे 2023-24 में वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि 6.5 फीसदी होने का अनुमान है। इसके दूसरी तिमाही में 6.5 फीसदी, तीसरी में 6 फीसदी और चौथी तिमाही में 5.7 फीसदी रहने के आसार हैं। 2024-25 की पहली तिमाही के लिए जीडीपी वृद्धि 6.6 प्रतिशत अनुमानित है।
एमपीसी ने पाया कि खाद्य पदार्थों की कीमतों में अभूतपूर्व झटके मुद्रास्फीति पर प्रभाव डाल रहे हैं। वैश्विक खाद्य और ऊर्जा की कीमतों में वृद्धि और वैश्विक वित्तीय बाजार में अस्थिरता के मौजूदा माहौल को देखते हुए एमपीसी ने हाई अलर्ट पर रहने का निर्णय लिया है। घरेलू बाजार में सब्जियों की कीमतों में और गिरावट संभव है, साथ में महंगाई दर भी कम हो रही है। एमपीसी के अनुसार, फिर भी महंगाई दर ऊपरी सीमा से अधिक बनी हुई है। इसलिए मौद्रिक नीति को महंगाई को नियंत्रित करने वाला बनाए रखने की आवश्यकता है।
समिति का कहना है कि घरेलू आर्थिक गतिविधियां अच्छी चल रही हैं और त्योहारी मांग, निवेश के इरादों में तेजी और उपभोक्ता और व्यावसायिक दृष्टिकोण में सुधार से इसे और बढ़ावा मिलने की उम्मीद है। रिजर्व बैंक पिछले साल मई से कई चरणों में रेपो रेट में 2.5 फीसदी की बढ़ोतरी कर चुका है। इसका कहना है कि अर्थव्यवस्था में इसका पूरा असर अभी दिखना बाकी है। इसलिए एमपीसी ने इस बैठक में नीतिगर रेपो दर को 6.5 फीसदी पर अपरिवर्तित रखने का फैसला किया।