गेहूं खरीद में सरकार को संकट से पंजाब और हरियाणा ने ही उबारा, कुल खरीद 250 लाख टन तक पहुंचने की संभावना
पिछले साल की मुश्किल स्थिति के बाद सरकार को गेहूं के मोर्चे पर इस साल राहत मिलती दिख रही है। अभी तक सरकारी खरीद का ट्रेंड देखें तो चालू रबी मार्केटिंग सीजन (2023-24) में गेहूं की सरकारी खरीद 250 लाख टन से अधिक रहने का अनुमान है। 28 अप्रैल तक गेहूं की सरकारी खरीद 213.10 लाख टन पर पहुंच गई थी। पिछले साल (2022-23) गेहूं की कुल सरकारी खरीद ही 187.92 लाख टन रही थी। इस साल की खरीद में करीब आधा हिस्सा पंजाब का और करीब एक चौथाई हिस्सा हरियाणा का है। मध्य प्रदेश पिछले कुछ साल में पंजाब के करीब पहुंच गया था, वहां इस साल गेहूं की सरकारी खरीद हरियाणा से भी कम हुई है। बाकी राज्य मिलकर पूरे सीजन में शायद 10 लाख टन का आंकड़ा भी न छू सकें। इनमें सबसे अधिक गेहूं उत्पादन करने वाला उत्तर प्रदेश भी है। इन राज्यों में कुल खरीद अभी ढाई लाख टन तक भी नहीं पहुंची है।
पिछले साल मार्च में तापमान में अचानक बढ़ोतरी के चलते गेहूं उत्पादन पर प्रतिकूल असर पड़ा था। शुरुआत से ही बाजार में कीमतें 2,015 रुपये प्रति क्विटंल के न्यूतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से अधिक चल रही थीं। यही वजह है कि सरकार द्वारा गेहूं के निर्यात पर रोक लगाने और मानकों में छूट देने के बाद भी गेहूं की सरकारी खरीद 187.92 लाख टन पर अटक गई थी। वहीं दिसंबर आते-आते गेहूं की कीमत 3000 रुपये प्रति क्विंटल को पार कर गई थी। इसी से चिंतित सरकार ने गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध को बरकरार रखा है। साथ ही जनवरी से मार्च तक ओपन मार्केट स्कीम के तहत करीब 40 लाख टन गेहूं की बिक्री भी की, जिससे गेहूं की कीमतों में गिरावट आई। इस बार गेहूं का एमएसपी 2,125 रुपये प्रति क्विंटल है।
इस साल की फसल भी प्रतिकूल मौसम से प्रभावित हुई है और मार्च में असमय बारिश के चलते पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश में फसल को नुकसान हआ है। इस साल भी गेहूं की फसल सामान्य नहीं है, लेकिन यह नुकसान पिछले साल से कम है। रूरल वॉयस के साथ एक अनौपचारिक बातचीत में एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, “मेरा मानना है कि करीब 10 फीसदी फसल में नुकसान हुआ है और नुकसान वाली फसल में 30 फीसदी तक उत्पादन प्रभावित हुआ है। ऐसे में गेहूं का उत्पादन करीब 10.80 करोड़ टन के आस पास रहेगा।” वहीं कृषि मंत्रालय ने 11.2 करोड़ टन उत्पादन का अनुमान लगाया गया है।
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केंद्रीय पूल में सबसे अधिक गेहूं देने वाले पंजाब के कृषि विभाग के क्रॉप कटिंग एक्सपेरिमेंट का अनुमान है कि इस साल गेहूं की उत्पादकता 47.7 क्विंटल प्रति हैक्टेयर रही है। यह पिछले साल के 42.17 टन प्रति हैक्टेयर तो बेहतर है लेकिन इसके पहले तीन साल के स्तर 50.08 क्विंटल, 51 क्विंटल और 51.88 क्विंटल से कम है। इससे साफ हो जाता है कि इस साल की फसल सामान्य से कमजोर है। हालांकि अभी और परिणाम आने हैं। अंतिम परिणाम में उत्पादकता का स्तर 47 क्विंटल तक रहने की उम्मीद कुछ एक्सपर्ट कह रहे हैं।
इसके बावजूद 28 अप्रैल 2023 तक के आंकड़ों के मुताबिक कुल 213.12 लाख टन गेहूं की सरकारी खरीद में पंजाब से 99.86 लाख टन की खरीद हुई है। यह पिछले साल उक्त तिथि तक 85.71 लाख टन रही थी। दूसरे नंबर पर 56.73 लाख टन की सरकारी खरीद हरियाणा में हुई है। वहीं मध्य प्रदेश में उक्त तिथि तक 54.47 लाख टन गेहूं की सरकारी खरीद हुई है। सबसे बड़े गेहूं उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश में गेहूं की सरकारी खरीद केवल 1.19 लाख टन तक पहुंची है। राजस्थान में 82,770 टन, हिमाचल में 1568 टन, बिहार में 255 टन और उत्तराखंड में 145 टन गेहूं की ही सरकारी खरीद हुई है।
सरकार ने चालू सीजन के लिए 341.50 लाख टन की सरकारी खरीद का लक्ष्य रखा है। इसके पूरा होने की संभावना बहुत कम दिख रही है। पंजाब से खरीद के लिए 132 लाख टन, हरियाणा से 75 लाख टन, उत्तर प्रदेश से 35 लाख टन और मध्य प्रदेश से 80 लाख टन गेहूं की सरकारी खऱीद का लक्ष्य रखा गया है। पंजाब में खरीद लक्ष्य के कुछ करीब 120 लाख टन तक पहुंचने की संभावना है। हरियाणा और मध्य प्रदेश में इसके 60-60 लाख टन के आसपास ही रहने की उम्मीद है। ऐसे में बाकी राज्य अगर 10 लाख टन तक भी पहुंचते हैं तो चालू रबी मार्केटिंग सीजन की कुल गेहूं खरीद 250 लाख टन से कुछ अधिक रहने की संभावना है। हालांकि स्थिति पिछले साल से बेहतर है जब (2022-23 में) 187.92 लाख गेहूं की सरकारी खरीद 2007 के बाद सबसे कम रही थी। साल 2007 में यह 111.3 लाख टन रही थी।
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इसके चलते केंद्रीय पूल में एक अप्रैल 2023 को गेहूं का स्टॉक 83.45 लाख टन रह गया था जो 2017 के 80.59 लाख टन के बाद सबसे कम था। इस साल का स्टॉक एक अप्रैल के लिए बफर मानक 74.60 लाख टन से मामूली अधिक था। वह भी तब जब पिछले वित्त वर्ष के बाद के कुछ माह में सरकार ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के तहत आवंटन में चावल की हिस्सेदारी बढ़ा दी थी।
केंद्रीय पूल में एक अप्रैल को खाद्यान्नों का स्टॉक (लाख टन)
|
गेहूं |
चावल |
कुल खाद्यान्न |
2017 |
80.59 |
297.84 |
378.43 |
2018 |
132.31 |
300.43 |
432.74 |
2019 |
169.92 |
398.16 |
568.08 |
2020 |
247.00 |
491.49 |
738.49 |
2021 |
273.04 |
499.29 |
772.33 |
2022 |
189.90 |
550.37 |
740.27 |
2023 |
83.45 |
433.81 |
517.26 |
बफर मानक |
74.60 |
135.80 |
210.40 |
(स्रोतः भारतीय खाद्य निगम)
मौजूदा आंकड़े साफ करते हैं कि सरकार को खाद्यान्नों की महंगाई के मोर्चे से राहत पंजाब और हरियाणा में बेहतर उत्पादन और सरकारी खरीद से ही मिलती दिख रही है। यह तथ्य साबित करता है कि देश की खाद्य सुरक्षा के लिए यह दोनों राज्य क्यों अहम हैं। पिछले साल उत्पादन गिरने से खाद्यान्न महंगाई दर मार्च, 2023 में 15.27 फीसदी तक पहुंच गई थी, जबकि सामान्य मुद्रास्फीति 5.66 फीसदी पर थी। खाद्यान्न कीमतों को नियंत्रण में रखने के लिए सरकार के पास अधिक स्टॉक का होना जरूरी है। ऐसे में इस साल गेहूं की खरीद में सुधार होने से सरकार और महंगाई को नियंत्रित रखने का जिम्मा संभालने वाले भारतीय रिजर्व बैंक दोनों को राहत मिलेगी।
हालांकि इस साल मानसून के सामान्य रहने के अनुमान पर अल-नीनो की बढ़ती संभावना ने सवाल खड़े कर दिये हैं। अमेरिका के नेशनल ओशनिक एंड एटमोस्फिरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) की 13 अप्रैल की रिपोर्ट में मई से जुलाई के बीच अल-नीनो के होने संभावना 62 फीसदी बताई है। जून से अगस्त की अवधि में 75 फीसदी और जुलाई से सितंबर की अवधि में अल-नीनो होने की 82 फीसदी संभावना बताई गई है। अल-नीनो की स्थिति में भारत में मानसून प्रभावित होता है। असामान्य मानसून से चावल के उत्पादन पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है। ऐसे में गेहूं के मोर्चे पर तो कुछ राहत भरी स्थिति बनी है। वहीं अगर मानसून सामान्य नहीं रहता है तो चावल और खरीफ की दूसरी फसलें, जिनमें तिलहन और दालें हैं, महंगाई के मोर्चे पर मुश्किलें खड़ी कर सकती हैं।