टमाटर बिक रहा कौड़ियों के दाम, किसानों को 2-5 रुपये का रेट
सही दाम नहीं मिलने के कारण किसान टमाटर की उपज को मंडी ले जाने की बजाय खेत में ही उखाड़कर फेंक रहे हैं। क्योंकि मंडी ले जाने का खर्च टमाटर के दाम से अधिक है।
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कुछ दिनों पहले तक उपभोक्ता की जेब पर भारी पड़ रहा टमाटर अब किसानों के लिए घाटे का सबब बन गया है। मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, तेलंगाना और ओडिशा के टमाटर उत्पादक इलाकों में किसानों को टमाटर की गिरती कीमतों के कारण लागत निकालना भी मुश्किल हो गया है। टमाटर की उपज का भाव 2-5 रुपये प्रति किलोग्राम तक गिर गया है जबकि खुदरा बाजार में टमाटर 15-20 रुपये किलो के रेट पर बिक रहा हैं।
उपभोक्ता मामले विभाग के अनुसार, पिछले एक महीने में देश में टमाटर की औसत थोक कीमतों में 39.47 फीसदी और औसत खुदरा कीमतों में 36.06 फीसदी की गिरावट आई है। यह राष्ट्रीय औसत है जबकि टमाटर उत्पादक क्षेत्रों में खेत के स्तर पर टमाटर की कीमतों में और भी अधिक गिरावट आई है।
हालात ये है कि सही दाम नहीं मिलने के कारण किसान टमाटर की उपज को मंडी ले जाने की बजाय खेत में ही उखाड़कर फेंक रहे हैं क्योंकि मंडी ले जाने का खर्च टमाटर के दाम से अधिक है। पिछले दिनों मध्यप्रदेश के सिहोर से किसानों का ऐसा वीडियो सामने आया था। राज्य के शहडोल, सतना, सिहोर सहित कई इलाकों के किसान इस संकट से जूझ रहे हैं। ओडिशा के गंजम जिले में भी टमाटर किसानों को 3 से 5 रुपये प्रति किलोग्राम का भाव मिल पा रहा है। हालात यह है कि इतने कम भाव को देखकर किसान कटाई पर खर्च करने से भी कतरा रहे हैं।
मध्य प्रदेश के सिहोर जिले के किसान श्यामदेव सिंह बताते हैं कि इस साल टमाटर की लागत निकालना भी मुश्किल हो गया है। एक एकड़ पर टमाटर की खेती करने में लगभग 30-40 हजार रुपये का खर्च आता है। जबकि मंडियों में टमाटर के रेट 2-3 रुपये किलो तक गिर गये है। इतने में मजदूरी और भाड़ा भी नहीं निकलता है। इसलिए कई किसान खेत में ही फसल छोड़ रहे हैं।
टमाटर की इस स्थिति के पीछे बंपर उत्पादन प्रमुख वजह है। कृषि मंत्रालय की ओर से जारी 2024-25 के बागवानी उत्पादन के अग्रिम अनुमानों के अनुसार, टमाटर का उत्पादन पिछले वर्ष के लगभग 213.23 लाख टन की तुलना में लगभग 215.49 लाख टन होने की उम्मीद है। टमाटर का बंपर उत्पादन सरकार और उपभोक्ताओं के लिए राहत की बात है लेकिन किसानों के लिए यह मुसीबत बन गया है।
दो साल पहले भी टमाटर उगाने वाले किसानों के सामने ऐसे ही स्थिति पैदा हुई थी, जब उन्होंंने फरवरी-मार्च में टमाटर खेतों में छोड़ दिया था या फिर निराश होकर सड़कों पर टमाटर फेंक दिया था लेकिन मई-जून आते-आते टमाटर का रेट 100 रुपये किलो तक पहुंच गया था। कहीं ऐसा तो नहीं कि किसानों द्वारा फसल खेत में छोड़ देने से दो साल पहले की स्थिति दोबारा पैदा हो जाएगी। टमाटर जल्दी खराब होने वाली फसल है और उसके भंडारण की सुविधाएं बहुत कम हैं।
जब टमाटर के दाम खुदरा बाजार में 80 रुपये किलो तक पहुंच गये थे तो केंद्र सरकार ने तुरंत सहकारी संस्थाओं के जरिए रियायती दरों पर टमाटर की बिक्री शुरू कर दी थी। लेकिन अब टमाटर कौड़ियों के दाम बिक रहा है तो किसानों को घाटे से बचाने वाला कोई नहीं है। किसानों को कीमतों के उतार-चढ़ाव से बचाने के लिए शुरू की गई योजनाएं भी बहुत कारगर साबित नहीं हो पा रही हैं।
टमाटर किसानों का संकट केंद्र सरकार की ऑपरेशन ग्रीन्स (टॉप स्कीम) की नाकामी को भी दर्शाता है। आलू, प्याज और टमाटर के किसानों को कीमतों में उतार-चढ़ाव की मार से बचाने के लिए 2018 में टॉप स्कीम शुरू गई थी। इसके तहत कोल्ड स्टोरेज, पैकेजिंग, छंटाई, ग्रेडिंग और प्रोसेसिंग के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर और वैल्यू चेन को विकसित करना था। 2021-22 में योजना में 22 जल्द खराब होने वाली फसलों को शामिल करते हुए टॉप टू टोटल करार दिया गया था। लेकिन आलू, प्याज और टमाटर के किसानों का इस योजना से कितना भला हुआ, इस पर सवालिया निशान है।
हालांकि, आगामी वित्त वर्ष 2025-26 के बजट में केंद्र सरकार ने फल और सब्जियों के लिए 500 करोड़ रुपये का मिशन फॉर वेजिटेबल्स एंड फ्रूट्स घोषित किया है। लेकिन पुराने अनुभवों से लगता है कि इस तरह के मिशन और योजनाएं किसानों को गिरती कीमतों से संरक्षण की बजाय उपभोक्ताओं को ऊंची कीमतों से बचाने के मकसद से ही बनाई जाती है।