सेबी ने 7 कृषि जिंसों में वायदा व्यापार पर प्रतिबंध 31 जनवरी तक बढ़ाया, रोक हटने का संकेत
जिन कृषि जिंसों के वायदा कारोबार पर प्रतिबंध बढ़ाया गया है उनमें धान (गैर-बासमती), गेहूं, चना, सरसों व इसके उत्पाद, सोयाबीन व इसके उत्पाद, क्रूड पाम तेल और मूंग शामिल हैं।
मार्केट रेगुलेटर सेबी ने सात कृषि जिंसों में डेरिवेटिव्स ट्रेडिंग (वायदा व्यापार) पर प्रतिबंध को 31 जनवरी, 2025 तक बढ़ा दिया है। यह प्रतिबंध 19 दिसंबर, 2021 में एक साल के लिए लगाया गया था और तब से दो बार एक-एक साल के लिए इसे बढ़ाया गया। लेकिन तीसरी बार यह प्रतिबंध सिर्फ एक महीने के लिए बढ़ाया गया है। इसे संकेत माना जा रहा है कि संभवत: अगले साल की शुरुआत में निलंबित कृषि जिंसों में वायदा कारोबार की अनुमति मिल सकती है। नेशनल कमोडिटी और डेरिवेटिव्स एक्सचेंज (एनसीडीईएक्स) की ओर से लगातार इस प्रतिबंध को हटाने की मांग की जा रही है।
जिन कृषि जिंसों के वायदा कारोबार पर प्रतिबंध बढ़ाया गया है उनमें धान (गैर-बासमती), गेहूं, चना, सरसों व इसके उत्पाद, सोयाबीन व इसके उत्पाद, क्रूड पाम तेल और मूंग शामिल हैं। सेबी की ओर से जारी नोटिफिकेशन के अनुसार, सात कृषि जिंसों में वायदा व्यापार के निलंबन को 31 जनवरी, 2025 तक बढ़ाया गया है।
कई कृषि जिंसों में वायदा व्यापार पर प्रतिबंध के पीछे महंगाई व सट्टेबाजी रोकने और कमोडिटी बाजार में स्थिरता लाने की कोशिशों को वजह बताया जाता है। हालांकि, डेरिवेटिव ट्रेडिंग के बिना भी खाद्य वस्तुओं कीमतें अधिक रही हैं और खाद्य महंगाई रोकना सरकार के लिए चुनौती बना हुआ है। रिकॉर्ड उत्पादन के दावे के बावजूद गेहूं के दाम 3200 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गये। दलहन व खाद्य तेलों के दाम भी उपभोक्ताओं को अधिक चुकाने पड़ रहे हैं।
कई अध्ययनों में सामने आया है कि कृषि उपजों के खुदरा मूल्य में उनके वायदा कारोबार के निलंबन के बाद गिरावट नहीं आई। इसके विपरीत, कई वस्तुओं में अस्थिरता काफी बढ़ गई, जो दर्शाता है कि खुदरा कीमतें वायदा कारोबार की तुलना में घरेलू और अंतरराष्ट्रीय मांग-आपूर्ति से अधिक प्रभावित होती हैं। वायदा अनुबंधों के पक्ष में यह भी तर्क दिया जाता है कि इससे कृषि वस्तुओं की कीमतों का पता लगाने और बाजार के उतार-चढ़ाव से बचने में मदद मिल सकती है।
भारतीय वनस्पति तेल उद्योग की ओर से भी वायदा कारोबार पर प्रतिबंध हटाने की मांग की जा रही है, ताकि खाद्य तेलों की कीमतों में होने वाले उतार-चढ़ाव का संकेत मिल सके और आयातकों को अपने जोखिम से बचाव करने में मदद मिले।