ज्यों ज्यों दवा की मर्ज बढ़ता गया, कुछ इसी राह पर है चावल की महंगाई
अखिल भारतीय स्तर पर चावल की औसत खुदरा कीमत 42.26 रुपये प्रति किलो है जो एक महीने पहले 41.12 रुपये और एक साल पहले 38.25 रुपये किलो थी। अखिल भारतीय स्तर पर चावल की औसत थोक कीमत इस समय 3727.04 रुपये प्रति क्विंटल है जो पिछले महीने 3639.69 रुपये और एक साल पहले 3351.42 रुपये प्रति क्विंटल थी।
25 अगस्त, 2023- गैर-बासमती पारबॉयल्ड राइस (सेला चावल) के निर्यात पर 20 लगा फीसदी शुल्क लगाने और बासमती चावल का न्यूनतम निर्यात मूल्य 1200 डॉलर प्रति टन करने का फैसला।
9 अगस्त, 2023- खुले बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) के तहत ई-नीलामी के जरिये केंद्रीय पूल से 31 मार्च, 2024 तक 25 लाख टन चावल बेचने एवं ई-नीलामी के लिए चावल का रिजर्व प्राइस 200 रुपये घटाकर 2900 रुपये प्रति क्विंटल करने का फैसला।
20 जुलाई, 2023- गैर-बासमती सफेद चावल के निर्यात पर लगी रोक।
12 जून, 2023- ओएमएसएस के तहत राज्यों को गेहूं एवं चावल देने पर भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) ने लगाई रोक।
8 सितंबर, 2022- टूटे चावल का निर्यात बंद करने और गैर-बासमती सफेल चावल के निर्यात पर 20 फीसदी शुल्क लगाने का फैसला।
ये वो फैसले हैं जो घरेलू बाजार में चावल की बढ़ती कीमतों पर अंकुश लगाने के मकसद से मोदी सरकार ने किए हैं। इसके बावजूद चावल की कीमतें कम होने की बजाय लगातार बढ़ रही हैं। खुद केंद्र सरकार के आंकड़े इसकी गवाही दे रहे हैं। केंद्रीय उपभोक्ता मामले विभाग के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, पिछले एक महीने (12 अगस्त-12 सितंबर तक) में चावल (सामान्य) की खुदरा कीमतों में 2.77 फीसदी और थोक कीमतों में 2.4 फीसदी की वृद्धि हुई है। जबकि पिछले एक साल (12 सितंबर, 2022 से 12 सितंबर, 2023 तक) में चावल के दाम खुदरा में 10.48 फीसदी और थोक में 11.21 फीसदी बढ़े हैं।
केंद्रीय उपभोक्ता मामले विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, अखिल भारतीय स्तर पर चावल की औसत खुदरा कीमत 42.26 रुपये प्रति किलो है जो एक महीने पहले 41.12 रुपये और एक साल पहले 38.25 रुपये किलो थी। अखिल भारतीय स्तर पर चावल की औसत थोक कीमत इस समय 3727.04 रुपये प्रति क्विंटल है जो पिछले महीने 3639.69 रुपये और एक साल पहले 3351.42 रुपये प्रति क्विंटल थी। 12 सितंबर को ही सरकार ने अगस्त 2023 के खुदरा महंगाई के आंकड़े भी जारी किए हैं। उन आंकड़ों में भी यह स्पष्ट है कि अनाजों की महंगाई दोहरे अंक में 11.85 फीसदी पर बनी हुई है। वहीं खाद्य महंगाई 9.94 फीसदी रही है।
इन सबके अलावा एक हकीकत और है कि ओएमएसएस के तहत की जा रही ई-नीलामी में चावल के लिए बहुत कम बोली लग रही है। घरेलू बाजार में चावल की उपलब्धता बढ़ाने और दाम को नियंत्रित करने के लिए केंद्र सरकार ने न सिर्फ राज्यों को इसमें बोली लगाने से प्रतिबंधित कर दिया है, बल्कि बड़े व्यापारियों की बजाय छोटे व्यापारियों को बोली लगाने को तरजीह दी है ताकि ज्यादा से ज्यादा व्यापारी इसमें हिस्सा ले सकें और बड़े व्यापारियों द्वारा की जाने वाली जमाखोरी को रोका जा सके। इसके बावजूद एफसीआई के चावल का उठान बहुत कम है। उदाहरण के तौर पर, 11वें दौर की पिछली नीलामी (6 सितंबर) में एफसीआई की ओर से 4.89 लाख टन चावल बिक्री की पेशकश की गई थी जिसके मुकाबले सिर्फ 17 हजार टन यानी 3.47 फीसदी के लिए खरीदारों ने बोली लगाई। यही हाल इससे पहले की 10 नीलामियों का रहा है।
इस बारे में पूर्व कृषि सचिव और एफसीआई के पूर्व चेयरमैन सिराज हुसैन ने रूरल वॉयस से कहा, “ओएमएसएस के तहत चावल की ई-नीलामी में निजी व्यापारियों का रुझान पहले भी कम ही रहा है। राज्य सरकारों की ओर से ही चावल का उठान किया जाता रहा है। चूंकि अब राज्यों को ओएमएसएस की नीलामी में हिस्सा लेने से रोक दिया गया है इसलिए चावल का उठान कम है। निजी व्यापारी महंगा चावल खरीदेंगे तो किस भाव पर बेचेंगे, उनकी मुश्किल यह होती है।”
सरकार के तमाम प्रयासों के बावजूद घरेलू बाजार में चावल के दाम क्यों नहीं घट रहे हैं? रूरल वॉयस के इस सवाल के जवाब में ऑल इंडिया राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के पूर्व प्रेसीडेंट और चमन लाल सेतिया एक्पोर्ट्स लिमिटेड के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर विजय कुमार सेतिया कहते हैं, “चावल के मामले में सरकार को उपभोक्ता और किसान दोनों का ध्यान रखना होता है। किसानों के हितों की सुरक्षा करने को जहां गैर बासमती धान के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) तय किया जाता है और उसकी सरकारी खरीद की जाती है, वहीं सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के जरिये गरीब उपभोक्ताओं को सस्ते दाम पर चावल दिया जाता है। इस तरह से कीमत नियंत्रण का मैकेनिज्म बना हुआ है। दूसरी तरफ, इसी किस्म के अतिरिक्त चावल का जब ज्यादा निर्यात होने लगता है तो घरेलू दाम बढ़ने लगते हैं। गैर-बासमती चावल निर्यात पर पाबंदी लगाने से पहले यह बात कही जा रही थी कि दाम 30 फीसदी तक बढ़ गया है लेकिन उसमें सच्चाई कुछ और है।”
उन्होंने बताया, “कोरोना के दौर में और उसके बाद भी सरकार पीडीएस का चावल गरीबों को मुफ्त में दे रही थी। वह चावल किसी भी तरीके से खुले बाजार में आ रहा था और 20-25 रुपये किलो मिल रहा था। जैसे ही सरकार ने मुफ्त में देना बंद किया और उसकी कीमत 3100 रुपये प्रति क्विंटल तय कर राज्यों से उसे बांटने को कहा, खुले बाजार में दाम बढ़ गए। जो चावल पहले 2000-2500 रुपये क्विंटल पर मिलता था उसकी थोक कीमत 2800-2900 रुपये प्रति क्विंटल हो गई।”